उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमाः पितर सोम्यासः ।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञाः ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु ।।
धरती पर निवासित पूर्वज श्रेष्ठ स्थान को प्राप्त करें, जो पूर्वज स्वर्ग में हैं, जो एक उच्च स्थान है, वे वहीं निवास करें, जो पूर्वज मध्यम स्थल पर हैं वो और ऊचाइयों को प्राप्त करें। पूर्वज जो सत्य के प्रतीक हैं, हमारी रक्षा करें।
अश्विन मास क़ृष्ण पक्ष अर्थात पित़ृ पक्ष में किये जाने वाले श्राद्ध को महालय श्राद्ध कहते हैं। मृत्यु के पश्चात जीव को तुरन्त प्रेत देह प्राप्त होती है। कुछ काल व्यतीत होने के बाद यह जीव पितृ योनी में जाता है। पितृ पक्ष में पितर अपने परिजनों के घर आते हैं। इन 15 दिनों में एक दिन श्राद्ध करने से वे वर्ष भर तृप्त रहते हैं।
महर्षी जाबालि कहते हैं,
पुत्रनायुस्तथाऽऽरोग्यमैश्वर्यमतुलं तथा।
प्राप्नोति पंचमे कृत्वा श्राद्धं कामांचं पुष्कलान् ।।
अर्थात, पित़ृ पक्ष में श्राद्ध करने से पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुल ऐश्वर्य एवं वस्तुओं की प्राप्ति होती है।
पित़ृ पक्ष में श्राद्ध करने से पितर कृपा करते हैं और न करने से कष्ट भी देते हैं।
महर्जि काशर्णाजिनि कहते हैं,
वृश्चिके समनुप्राप्ते पितरो दैवतैः स।
निःश्वस्य प्रतिगच्छन्ति शापं दत्वा सुहारुणम्।।
अर्थात, सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने तक श्राद्ध न किया जाय तो पितृ दारुण्य श्राप देकर पितृ लोक में लौट जाते हैं। महालय श्राद्ध करने से पितरों के कारण परिवार में संभावित कष्ट कम होते हैं और पितरों को मुक्ति मिलती है। पित़ृ पक्ष के समय पितर हमारे अधिक निकट आते हैं। इस काल में भगवान दत्तात्रेय की उपासना का भी विशेष महत्व है ।
वर्तमान काल में अधिकांश परिवार पित़ृ पक्ष में पितरों की संतुष्टि के लिए कुछ भी नहीं करते और इसी कारण से कोई न कोई कष्ट होता ही है। हमारे पूर्वज राक्षस, यक्ष, नाग योनि, देव योनि जैसी विविधा योनियों में हो सकते हैं और उन्हें योनि के अनुसार अन्न की आवश्यकता होती है। पृथ्वी लोक के सिवा अन्य किसी भी लोक में अन्न नहीं मिलता। इस काल में विभिन्न देवताओं का आवाहन कर के पितरों तक अन्न पहुंचाया जाता है ताकि उनकी तृप्ति हो सके।
पितृ लोक धरती और स्वर्ग के बीच स्थित है। इस लोक में किसी भी मनुष्य की तीन पूर्व पीढि़यां निवास करती हैं। इस लोक का नेतृत्व यमराज करते हैं। जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो सबसे पुरानी पीढ़ी की आत्मा इस लोक से मुक्त हो कर स्वर्ग लोक में चली जाती है।
पितृ पक्ष में पुत्र के द्वारा श्राद्ध अनिवार्य माना गया है और यह पितरों को स्वर्ग प्रदान करने में सक्षम है। इसी प्रसंग के अनुसार गरुड़ पुराण में यह वर्णित है कि मोक्ष की प्राप्ति के लिए पुत्र का होना अनिवार्य है। शास्त्रों के अनुसार एक गृहस्थ को अपने पूवर्जों, देवताओं, भूतों व अतिथियों को संतुष्ट करना चाहिए। मार्कण्डेय पुराण में यह स्पष्ट वर्णित है कि यदि पूर्वज श्राद्ध से तृप्त हो जाते हैं तो वह उस व्यक्ति को स्वास्थ्य, धन, ज्ञान और दीर्घायु, और अंत में स्वर्ग और मोक्ष भी प्रदान करते हैं।
इस विधि से हमारे पूर्वज निम्न रुप से प्रभावित होते हैं –
श्राद्ध को पितृ पक्ष के उसी दिन संपन्न करना चाहिए जिस दिन हमारे पूर्वज का देहान्त हुआ था। यहां इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि यदि घर में किसी की मृत्यु सामान्य ढंग से नहीे हुई हो तो उसके लिए विशेष दिवस पर श्राद्ध सम्पन्न करना चाहिए।
चौथा भरनी और भरनी पंचमी – यह दिवस पितृ पक्ष के चौथे और पांचवे दिन आते हैं। इन दिनों में गत वर्ष में मृत पूर्वजों को श्राद्ध अर्पित किया जाता है।
अविधवा नौमी – यह दिवस पितृ पक्ष के नौवें दिन होता है। इस दिन उन महिलाओं को श्राद्ध अर्पित किया जाता है जो अपने पति से पहले मृत्यु को प्राप्त हो जाती हैं।
बारहवें दिन बच्चों के श्राद्ध के लिए।
घट चतुर्दशी – चौदहवां दिन, इस दिन उन लोगों को श्राद्ध अर्पित किया जाता है जिनकी मृत्यु युद्ध या किसी हथियार से हुई हो।
सर्वपितृ अमावस्या – इस दिन किसी भी पितर का श्राद्ध सम्पन्न किया जा सकता है। यह पितृ पक्ष का सबसे महत्वपूर्ण दिवस माना जाता है और यदि किसी कारण वश निर्धारित दिवस पर हम अपने पितृ को श्राद्ध अर्पण नहीं कर पाये हैं तो इस दिन वह श्राद्ध सम्पन्न किया जा सकता है।
मातामहा – इस दिन नाती अपने नाना को श्राद्ध अर्पण कर सकता है।
इन सभी तथ्यों से यह स्पष्ट है कि श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। इन दिवसों पर श्राद्ध सम्पन्न कर हमें अपने पूर्वजों को तृप्ति प्रदान करनी ही चाहिए।
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