कई बार व्यक्ति को ईश्वर पर क्रोध आता है और उसके न्याय पर सन्देह होने लगता है, कि कोई व्यक्ति जीवन भर दान, पुण्य, गुरू की सेवा, ईष्ट की पूजा करता हुआ सात्विक जीवन व्यतीत करता है, फिर भी वह गरीब और पैसे-पैसे के लिये मोहताज रहता है। जबकि दूसरी ओर बदमाश, ठग, हत्यारे, लूट खसोट करने वाले, झूठे और मक्कार व्यक्ति समाज में सम्माननीय कहे जाते हैं, उनके जीवन में कोई अभाव नहीं होता। तब हमें विधाता के न्याय पर सन्देह होने लगता है।
सत्य तो यह है, कि कर्मफल की एक बहुत बड़ी राशि पूर्व जन्मों से सम्बन्द्ध होती है। इस जन्म में आने वाली असफलताओं, परेशानियों का, बाधाओं का, रोग-शोक, निर्धनता एवं अपमान का कारण पूर्व जन्म में हुये पाप ही होते है अथवा किसी आत्मा का शाप होता है, जिसका प्रायश्चित इस जीवन में हमें करना पड़ता है।
यह दीक्षा तो एक तरह से सभी साधकों के लिये अनिवार्य ही है, क्योंकि बिना पूर्व जन्म के शापों का, पापों का उद्धार किये बिना सुखों की कल्पना करना ही मूर्खता है। कूड़े के ढेर पर सुगन्ध का स्थापन नहीं हो सकता है, अतः जब कर्म दोषों का सद्गुरू के शक्तिपात से, सद्गुरू के शक्ति प्रवाह से भस्मीकरण होता है तभी उसके जीवन में सौभाग्य का उदय होता है, फिर वह जिस भी दिशा में प्रयास करता है, उसे दैवीय कृपा, पितृ कृपा, गुरू कृपा, कुटुम्ब कृपा सभी सहयोग रूप में प्राप्त होती है और वह अल्प प्रयास से ही वह सब कुछ प्राप्त कर लेता है, जिस हेतु वह कर्मशील होता है।
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