नवरात्रि का विशेष पर्व अपने भीतर से अज्ञानता, दोष, कमियां बाहर कर अपने भीतर शक्ति भरने का पर्व है। यदि संसार विपत्ति सागर है, तो उसमें से पूर्ण रूप से बाहर निकलने के लिये शक्तिवान होना ही पड़ेगा, अपने भीतर शक्ति सामर्थ्य भरता पड़ेंगा। शक्ति ही अपने भिन्न-भिन्न स्वरूपों में विद्यमान होकर साधक के कार्य सम्पन्न करती है।
स्व: आत्म शक्ति का निरन्तर चिंतन कर उसमें वृद्धि की चेतना का विस्तार हो सके, यह ठीक उसी प्रकार है, जिस प्रकार एक श्रेष्ठ भवन की मजबूत नींव स्थापित करना। अपने भीतर भावों की स्तुति का तात्पर्य जीवन निर्माण की क्रिया से जुड़ा होता है। भवन यदि पूर्ण रूप से मजबूत है, तो चाहे कितने भी तुफान क्यों न आयें, झटके लगें विपरीत स्थितियां आये, जीवन रूपी भवन को कोई क्षति नहीं पहुंच सकती, क्योंकि इसका आधार भीतर की आत्म शक्ति से संभव हो पाता है।
प्रत्येक मनुष्य बहुआयामी होता है। इस जीवन में हो विभिन्न प्रकार के रंग, तरंग, उमंग है, तो कभी हताशा-निराशा, परेशानी भी है। जहां जीवन में सुख है, तो दुःख भी है. जीवन में पीड़ा हैं, तो आनन्द भी है। ये सारी स्थितियां मनुष्य को विचलित भी करती हैं और ज्यादातर व्यक्ति अपने जीवन की समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं कर पाते, उन्हें अनुकूल स्थितियां नहीं प्राप्त होती हैं, जिसके कारण वे निराशामय अंधकार में चले जाते हैं। इन सब बाधाओं और समस्याओं को अनुकूल बनाने का उपाय केवल और केवल शक्ति के द्वारा संभव है।
त्री-शक्ति स्वरूप में महासरस्वती को ज्ञान शक्ति स्वरूपा कहा गया है। परन्तु केवल ज्ञान शक्ति ही भगवती महासरस्वती की परिभाषा नहीं है, महासरस्वती तो पोषण और वर्धन की अधिष्ठात्री हैं, परम पिता ब्रह्मा इन्हीं के द्वारा सृष्टि की रचना करते हैं, यही वह चेतना है, जिसके द्वारा संसार में निरन्तर वर्धन होता है और मातृ शक्ति का स्वरूप ही शीतल, कोमल, वातस्लयमय व पोषण-वर्धन स्वरूप में होता है, मां सरस्वती इसी शक्ति की अधिष्ठात्री हैं, जो प्रत्येक दशा में अपने भक्तों पर वरमुद्रा बनायें रखती हैं, यही वरदायिनी शक्ति हैं, इन्हों से सारे संसार को वर्धन की चेतना प्राप्त होती है और व्यक्ति अपने कार्यों में निरन्तर प्रगति, उन्नति, वृद्धि कर पाता है।
नवरात्रि और बसंत पंचमी के चेतनावान क्षणों में चिन्तन कर्म ज्ञान शक्ति स्वरूपा महासरस्वती के वरमुद्रा की चेतना से आप्लावित होकर अपने जीवन में पोषण, वर्धन की क्रियात्मक शक्ति से युक्त होकर जीवन की विसंगतियों पर विजय प्राप्त करने की ऊर्जा स्व: आत्म शक्ति पराम्बा वरदायिनी शक्तिपात दीक्षा से प्राप्त कर सकेंगे। जिससे साधक त्रयमयी स्वरूप में क्रिया, इच्छा, वर्धन शक्ति से युक्त होगें और पराम्बा शक्ति स्वरूप में जीवन की विषमताओं, बाधाओं का संहार निश्चित रूप से हो सकेगा। साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि आयु वृद्धि, कर्म शक्ति, उमंग, उत्साह, प्रसन्नता सम्पन्नता की प्राप्ति हो सकेगी।
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