आध्यात्मिक दृष्टि में सूर्य को प्राण ऊर्जा का महत् स्त्रोत कहा गया है। ऋग्वेद में सूर्य को जगत की आत्मा बताया गया है। इसका तात्पर्य है, कि पृथ्वी पर जो चेतना एंव हलचल हे, उसका उद्गम स्त्रोत सूर्य ही हे। सूर्य उपासना के माध्यम से शरीर की अलौकिक शक्तियों को सुप्त अवस्था से निकालकर जाग्रतमय चेतना की ओर क्रियाशील किया जा सकता है।
विशेष रूप से राहु केतु के वक़री होने पर सूर्य ग्रहण का प्रभाव सृष्टि में आच्छादित होता है तब सूर्य की उपासना सम्पन्त करने से साधक के व्यक्तित्व में स्वत: ही परिवर्तन आने लगता है और उसके अन्दर अडिगता तथा दृढ़ संकल्प जैसे गुणों का समावेश होने के फलस्वरूप गृहस्थ व आध्यात्मिक सुश्रेष्ठता आती हैं।
इस वर्ष के अन्तिम सूर्य ग्रहण महापर्व पर (LIVE रूप में उक्त समय पर सदगुरूदेव कैलाश श्रीमाली जी तांत्रोक्त तीक्ष्ण त्रिशक्ति, रवि तेजस व तारा महाविद्या को चेतन्यमय करने हेतु वैदिक मंत्रों से अनुष्ठान हवन जप पंत्र साधना सम्पन्न करेंगे। ग्रहण काल में गुरू सानिध्य में विशिष्ट मंत्रों से साधना करने से सांसारिक गृहस्थ जीवन में कोटि गुणा तेजस्थिता की वृद्धि होती है साथ ही अनेक विषमतायें भस्म हो जाती है।
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