व्यक्ति के जीवन में समस्यायें मुख्यतः सांसारिक ही होती हैं। ये समस्यायें इस संसार में अन्य व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न की गयी है परिस्थितियों के परिणाम स्वरूप ही प्राप्त होती है। परिस्थितियों को अपने अनुरूप ढ़ालने वाला व्यक्ति ही सम्पूर्ण जीवनी शक्ति से आपूरित व्यक्तित्व कहा जा सकता है और वही व्यक्ति पूर्ण पुरूष बन सकता है, जिसमें जीवनी तत्व अर्थात् साहस, बल, बुद्धि, पराक्रम, शक्ति का उद्वेग निरन्तर संचारित होता रहता हो। ऐसे ही व्यक्ति लक्ष्य प्राप्ति के लिये अपना मार्ग स्वयं बनाने के लिये क्रियारत रहते हैं।
जीवन में असफल होने के तीन मुख्य कारण होते हैं- दैहिक शत्रु अर्थात् शरीर की कृषकायता, शरीर की क्षीण शक्ति, शरीर में रोग कष्ट। वे लोग जो आपकी आलोचना करते हैं आपकी उन्नति का मार्ग अवरूद्ध करते हैं। आन्तरिक शक्ति यदि न्यून है, कमजोर है, तो व्यक्ति मानसिक रूप से जड़ बन जाता है, उसके उत्साह की गति मंद पड़ जाती है। जिसके कारण ना जीवन के प्रति ना ही किसी कार्य के प्रति व्यक्ति में उत्साह रहता है।
सांसारिक जीवन में बाधायें और कष्ट तो जुड़ते रहते हैं। परन्तु यदि इन बाधाओं से वह ना लड़े, युद्ध से पूर्व ही हार मान लें, उसे संघर्ष से पूर्व ही निराशा अथवा पराजय की आशंका घेर ले तो वह व्यक्ति जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता है। संसारिक जीवन में लड़ना अर्थात् संघर्ष करना वर्तमान समय में बहुत ही आवश्यक बन गया है। सफलता या विजय केवल उन्हें ही मिलती है, जो लड़ना जानते हैं। जीवन कभी भी केवल फूलों से बिछा हुआ नहीं होता है, इसमें फूल हैं, तो कांटों का भी सामना करना पड़ता है और जो व्यक्ति विपरित परिस्थितियों में भी खड़ा रहता है, वही वास्तविक योद्धा कहलाता है और वही अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करने में सफल भी होता है जीवन को कोसने वाला व्यक्ति कायर और बुजदिल ही कहा जा सकता है, हर स्थिति में अपने भाग्य, समाज परिवार को दोष देना स्वयं को धोखा देने जैसा ही है।
सफलता का तात्पर्य है- जीवन की जो विपरित परिस्थितियां हैं, उनसे लड़ते रहना। ऐसी स्थिति में भी मैदान में डटकर मुकाबला करना और जितने भी कांटे हैं जिनके कारण असफलता मिल रही है। जो भी जीवन में कंकड़ हैं जिनसे मार्ग अवरूद्ध हो रहा है। जो न्यूनतायें और अवगुण हैं, जिनके कारण सही दिशा नहीं प्राप्त हो पा रही है, उन सभी का शमन कर सफलता का मार्ग प्रशस्त करना होता है। जैसे ही जीवन में उक्त सभी समस्याओं का समाधान होता है, उसी क्षण से ही सफलता प्राप्त होने लगती है।
यदि व्यक्ति प्राण ऊर्जा से संचारित है, यदि व्यक्ति के जीवन में चेतना है, विशिष्ट संस्कार हैं और एक अजस्र शक्ति का भण्डार जागृत है, तो वह व्यक्ति अपने जीवन में किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मान सकता, उसे विषम से विषम परिस्थितियों में भी ऐसा ही लगता है, कि मैं इस पराजय की स्थिति को विजय की स्थिति में बदल दूंगा और वह प्राणवान ऊर्जा से संचारित होकर पूर्ण चेतना युक्त होकर कार्य करता है, जिससे वह परिस्थितियों को अपना दास बना लेता है और फिर वही व्यक्ति जीवन को अपनी इच्छानुसार जी सकता है।
कार्तिकेय भगवान शंकर के ज्येष्ठ पुत्र और विजय प्रदायक, पराक्रमी देव हैं। दक्षिण भारत में इन्हें प्रधान देव माना जाता है। जहां कार्तिकेय की आराधना होती है, वहां ज्ञान, बल, विजय, ग्रह रक्षा, धर्म-वेद, सफलता, दुष्टों-बाधाओं का नाश और पराक्रम शक्ति का वास होता है। भगवान कार्तिकेय विजयकारक देव हैं, जिनकी आराधना, पूजा से साधक के भीतर एक विशिष्ट चेतना शक्ति का संचार होता है और वह एक कुशल पराक्रमी की तरह जीवन के रणक्षेत्र में सभी प्रकार की परिस्थितियों को पराजित करते हुए सफलता का परचम फहराता ही है।
सफला एकादशी युक्त नूतन वर्ष के प्रथम दिवस से ही ऐसी दिव्य ऊर्जा, चेतना शक्ति से आप्लावित होने से जीवन हर स्वरूप में सर्व सफलता प्रदायक स्थितियों से युक्त हो सकेगा, साथ ही सद्गुरूदेव नारायण व माँ भगवती के आशीर्वाद युक्त वरदहस्त से सुख-समृद्धि, आयु वृद्धि, संतान सुख-सौभाग्यमय हो सकेंगे।
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