महाअष्टमी को महागौरी का आवाहन किया जाता है, जो की कालीमा रूपी कष्ट पाप-ताप आदि दूर करके महागौरी स्वरूप में उज्वलता धवलता सुभ्रता आदि प्रदान करती है। महानवमी को सिद्धिदात्री दुर्गा जी का आवाहन किया जाता है, जो परम वैष्नवी, करूणामयी सिद्धिदायिनी स्वरूप है, भक्तों के सभी कार्य सिद्ध करने वाली है, सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करती है और उनको सभी ऋषि देवता, गर्न्धव सिद्ध यक्ष और असुर भी उनकी आराधना करते रहते हैं। भगवती दुर्गा जी का नाम सुबह स्मरण करने से सारे दिन के विपत्तियों से हमारी रक्षा होती है। नवरात्रि साधना का श्रेष्ठ और दुर्लभ समय दुर्गा अष्टमी और महानवमी के संध्या समय होता है, उसी समय भगवती जगदम्बा के सिद्धदायिनी स्वरूप का अविर्भाव समय होता है और साधकों को प्रत्यक्ष अनुभव भी होता है। दुर्गतिनाशनी सिद्धिदायनी जगदम्बा दुर्गा की आराधना करने से व्यक्ति एक सद्गृहस्थ जीवन के अनेक शुभ लक्षणों-धन, ऐश्वर्य, पत्नी, पुत्र, पौत्र व स्वास्थय से युक्त हो जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है। इतना ही नहीं बिमारी, महामारी, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक उपद्रव व शत्रु से घिरे हुए किसी राज्य, देश व संपूर्ण विश्व के लिए भी मां भगवती की आराधना परम कल्याणकारी है।
महानवमी के दिन पूजा साधना के उपरान्त हवन-पूर्ण आहुति की जाती है, नव दुर्गा स्वरूप में 9 कन्याओं की (2 से 10 साल के उम्र) चन्दन, कुंकुम, वस्त्र, अलंकार, आभूषण, श्रृंगार सामग्री, भोजन आदि से पूजन किया जाता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता।
साधना सामग्री- नवदुर्गा जगदम्बा यंत्र, नवमी शक्ति चैतन्य माला, सिद्धि चक्र, तांत्रोक, लघु नारियल और जल, पंच पात्र, चन्दन, कुंकुम, पुष्प, अक्षत, अगरबती, दीपक, भोग, फल आदि।
इस साधना में पवित्रता, नियम व संयम तथा ब्रह्मचर्य का विशेष महत्व है। प्रतिपदा से नवमी तक 9 दिवसीय साधना है। प्रतिपदा के दिन प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर पीला/लाल वस्त्र धारण कर पूजा कक्ष में उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुँह करके बैंठे। अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर लाल-पीला वस्त्र बिछायें। गुरू चित्र और जगदम्बा चित्र स्थापन करें, तांबा या स्टील के थाली में ” ऊँ ह्रीं ” कुंकुम से लिखकर पुष्प की पंखुडियां बिछायें और उसके ऊपर नवदुर्गा जगदम्बा यंत्र को स्थापित करें। नवमी शक्ति चैतन्य माला को 3 घेरा करके यंत्र के ऊपर गोलाकार भाव में रखें। यंत्र के सामने कुंकुम से रंगे हुआ 2 चावल का ढ़ेरी बनायें और उसी चावल की ढ़ेरी के ऊपर सिद्धि चक्र और लघु नारियल स्थापित करें। अगरबती जलायें, घी का दीपक प्रज्वलित करके थाली के सामने चावल के ढ़ेरी के ऊपर रखें। पवित्री करण करें-
बायें हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र पाठ करते हुये दायें हाथ से पूरे शरीर में छिड़कें।
ऊँ अपवित्रः पवित्रे वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाहृाभ्यन्तरः शुचिः।।
अक्षत और पुष्प आसन के नीचे रखें।
ऊँ पृथ्वि! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरू चासनम्।।
दायें हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
ऊँ विष्णु र्विष्णु र्विष्णुः भारतवर्षे (अपना गांव, जिला का नाम उच्चारण करें) संवत् 2078 आश्विन मासि नवरात्रि समये शुक्ल पक्षे अमुकतिथौ(तिथी का उच्चारण करें) अमुक वासरे(वार का उच्चारण करें), निखिल गोत्रेत्पन्न, अमुकदेव शर्मा(अपना नाम उच्चारण करें) अहम, मम सपरिवारस्य तंत्रबाधादि सर्वबाधा निवारणार्थं, धर्म अर्थ काम मोक्ष चतुर्बिध पुरूषार्थ सिध्यर्थं, शृति-स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं, अभीष्ट सिध्यर्थं, श्री गुरू कुलदेवता इष्टदेवता प्रीत्यर्थं, श्री नवदुर्गा ललिता सिद्धिदात्री महानवमी शक्ति चेतना प्रात्यर्थं दुर्गतिनाशिनी नवदुर्गा महानवमी साधना कर्माहम करिष्ये।
(जल भुमि में छोड़ दें)
हाथ में अक्षत, कुंकुम, पुष्प लेकर-
ऊँ ह्रीं गं गणपतये नमः।
(5 बार उच्चारण करें और सिद्धि चक्र के ऊपर अर्पित करें)
हाथ में अक्षत, कुंकुम, पुष्प लेकर-
ऊँ ह्रीं भं भौरवाय नमः।
(5 बार उच्चारण करें और लघु नारियल के ऊपर अर्पित करें)
हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्र उच्चारण कर यंत्र में अर्पित कर जगदम्बा का ध्यान करें-
ऊँ या देवी मधुकैटभप्रमथिनी या माहिषोन्मुलनी,
या धूम्रेक्षणचण्डमुण्ड मथिनी या रक्तबीजाशनी।
शक्तिः शुम्भनिशुम्भदैत्य दलिनी या सिद्धिदात्री परा,
सा देवीनवकोटी मूर्ति सहिता मम पातु विश्वेश्वरी।।
नवदुर्गा जगदम्बा यंत्र को निम्न मंत्र पढ़कर कुंकुम से
9 बार तिलक करे (3 धारी में 3-3 तिलक करें),
ऊँ ह्रीं शैलपुत्री, ऊँ ह्रीं ब्रह्मचारिणी, ऊँ ह्रीं चन्द्रघंटा,
ऊँ ह्रीं कुश्माण्डा, ऊँ ह्रीं स्कंधमाता, ऊँ ह्रीं कात्ययनि,
ऊँ ह्रीं कालरात्री, ऊँ ह्रीं महागौरी, ऊँ ह्रीं सिद्धिदात्री ।।
यंत्र के ऊपर चन्दन, पुष्प, अक्षत अर्पित करें। प्रसाद अर्पित करें, फल चढायें 2 आचमन जल अर्पित करें। नवमी शक्ति चैतन्य माला को हाथ में लेकर माला के सुमेरू में कुंकुम, पुष्प और 1 आचमन जल अर्पित करें। अब उसी माला से निम्न मंत्र प्रतिदिन 9 माला जप करें।
जप के उपरांत माला को पूर्ववत यंत्र के ऊपर रखदें और हाथ जोड़कर निम्न जप समर्पण मंत्र का पाठ करें-
ऊँ गुह्यति गुह्यगोप्त्र त्वं गृहाण् अस्मत् कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतू मे देवी! त्वत प्रसादान् महेश्वरी।।
जगदम्बा आरती, गुरू आरती सम्पन्न करें।
हाथ में पुष्प लेकर क्षमा प्रार्थना करें-
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी।
यत्पूजितं मया देवी! परिपूर्णं तदस्तु मे।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरणये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः।
गुरूः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः।।
इसी साधना को प्रति दिन नवरात्रि में प्रातः उषा से संध्या (5 से 7 घंटा) समय में सम्पन्न करें। यंत्र को पूजा स्थान में रखें, और नवमी शक्ति माला को नवमी हवन के समय में 1-1 मनका मंत्र उच्चारण करते हुये अग्नि में समर्पित करें। लघु नारियल एवं सिद्धि चक्र को पूजा स्थान या तिजोरी, पैसा रखने के स्थान में रख दिजिये।
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