जब पाडंव जुए में अपना राज्य हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी व्रत करने की सलाह दी थी। पांडवों ने अपने वनवास में हर साल इस व्रत का पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए। कहा जाता है कि सत्यवादी राजा हरिशचन्द्र को भी इस व्रत के प्रभाव से अपना राज्य वापस मिला था।
यूं तो यह व्रत नदी-तट पर किया जाना चाहिये और हरि की लोककथाएं सुननी चाहिये। लेकिन संभव ना होने पर घर में ही स्थापित मंदिर के सामने हरि से इस प्रकार की प्रार्थना की जाती है- ‘हे वासुदेव, इस अनंत संसार रूपी महासमुद्र में डुबे हुये लोगों की रक्षा करो तथा उन्हें अनंत के रूप का ध्यान करने में संलग्न करो, अनंत रूप वाले प्रभु तुम्हें नमस्कार है’ अनंत चतुर्दशी 14 गांठे हरि द्वारा उत्पन्न 14 लोकों का प्रतीक है। चतुर्दशी पर कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर से कही गई कौण्डिन्य एवं उसकी स्त्री शीला की गाथा भी सुनाई जाती है। कृष्ण का कथन है कि ‘अनंत’ उनके रूपों का एक रूप है और वे काल हैं जिसे अनंत कहा जाता है। व्रती विष्णु लोक की प्राप्ति कर सकता है।
इस दिन भगवान विष्णु की कथा होती है। इस व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रेत का पाठ करें। इसमें उदय तिथि ली जाती है। पूर्णिमा का सहयोग होने से इसका बल बढ़ जाता है। यदि मध्याह्न तक चतुर्दशी हो तो ज्यादा बेहतर है। जैसा इस व्रत के नाम से प्रतीत होता है कि यह उस अंत न होने वाले सृष्टि के कर्ता ब्रह्मा की भक्ति का दिन है। इस व्रत की पूजा दोपहर में की जाती है। यह व्रत धन-पुत्रदि की कामना से किया जाता है।
इस व्रत का पालन ब्राह्मण का दान करके करना चाहिये। भगवान सत्यनारायण के समान ही अनंत देव भी भगवान विष्णु का ही एक नाम है। यही कारण है कि इस दिन सत्यनारायण का व्रत और कथा का आयोजन प्रायः किया जाता है। जिसमें सत्यनारायण की कथा के साथ-साथ अनंत देव की कथा भी सुनी जाती है।
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