भगवान श्रीकृष्ण ने जुड़ी अनेक कथाओं के पीछे भी उनके साधक होने की कथा ही निहित है, जिसे अलौकिकता का आवरण दे दिया गया है और उनसे जुड़ा साधना पक्ष भुला दिया गया है। अनेक राक्षसों का वधा या अपने गुरू के मृत पुत्र को जीवित करना जैसी अनेक घटनाएं उनकी इसी विलक्षणता की पारिचायक हैं और ऐसे अलौकिक युग पुरूष के जन्म का अवसर तो स्वतः सिद्ध मुहूर्त है ही।
वस्तुतः ‘कृष्ण’ शब्द ही अपने-आप में जीवन का अत्यंत गम्भीर रहस्य समेटे है। इन शब्द में जहां ‘‘क’’ काम सूचक है, वहीं ‘ऋ’ श्रेष्ठ शक्ति का प्रतीक है, ‘‘ष्’’ षोडश कलाओं का रहस्य समेटे है तो ‘‘ण’’ निर्वाण का बोध कराने में समर्थ है, और इस प्रकार ‘कृष्ण’ शब्द तात्पर्य है जो सामर्थ्य पूर्वक पूर्ण भोग व मोक्ष दोनों में समान गति बनाये रखे और इसी कारणवश भगवान कृष्ण की साधना-आराधना अपने-आप में संपूर्ण साधना कही गई है।
प्रत्येक देवी या देवता वस्तुतः मंत्र स्वरूप होते हैं और भगवान श्री कृष्ण भी इसके अपवाद नहीं है। बीज स्वरूप में भगवान श्री कृष्ण को ‘क्लीं’ स्वरूप माना गया है अर्थात् उनके स्वरूप में काम तत्व ही सर्वोपरि है। इस कारणवश यदि इस सिद्ध पर्व पर साधक अपने जीवन के इस पक्ष से संबधित कोई भी साधना करता है, तो वह निश्चय ही सौ गुना अधिक तीव्र एवं प्रभावशाली होती है।
वशीकरण संबंधी साधनाएं, शीघ्र विवाह संबंधी साधनाएं, कामदेव-रति संबंधित साधनाओं के साथ-साथ यह दिवस समस्त सौंदर्य साधनाओं, अप्सरा अथवा यक्षिणी साधनाओं के लिए भी सिद्ध पर्व माना गया है। यदि कोई अप्सरा अथवा यक्षिणी साधना किसी पूर्णिमा अथवा पर्व विशेष पर संपन्न करने का निर्देश हो उसे भी उस रात्रि में निःसंकोच संपन्न किया जा सकता है।
जन्माष्टमी के पर्व को सही रूप में उत्साह, उल्लास व विविधा सौंदर्य साधनाओं के द्वारा मनाया जाना चाहिए और शास्त्रों का कथन है कि साधक इस दिवस विशेष का प्रयोग एक से अधिक साधनाओं में करें। यह प्रबल तांत्रोक्त पर्व भी है, किंतु साधक जहां तक संभव हो इस दिवस का प्रयोग सौंदर्य साधनाओं हेतु ही करे। बिना अपने मनोभावों को दबाये अथवा मन पर कोई बोझ रखे यदि साधक उन्मुक्त भाव से इस दिवस पर साधनाएं संपन्न करता है, तो कोई कारण ही नहीं कि वह सफ़लता के अत्यंत निकट न हो।
यहां हम इस दिवस विशेष की चैतन्यता से मेल खाती हुई कुछ ऐसी गोपनीय साधनाएं प्रकाशित कर रहे हैं जो भगवान श्री कृष्ण के ही स्वरूप की भांति विविधता को समाए हुए हैं। जिस प्रकार वे कूटनीतिज्ञ, योद्धा, प्रेमी, कला प्रवीण, वाक्पटु एवं मनोहर थे, उसी अनुकूल साधक के जीवन में भी विविध कलाओं से सौंदर्य भर सके इसका ही प्रयास इन साधनाओं के चयन में किया गया है।
यह भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित प्रारम्भिक साधना है। भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण स्वरूप ‘क्लीं’ स्वरूप होने के कारण एक प्रकार से आवश्यक ही होता है कि साधक इस प्रारम्भिक साधना को अवश्य ही करे। जीवन की प्रत्येक सौंदर्य साधना का मूल भी यही साधना को विशेष रूप से जन्माष्टमी की रात्रि में ही संपन्न करने के कारण साधक को अवश्य ऐसी प्रबलता मिल जाती है जिससे वह स्वयं रूप-सौंदर्य के साथ-साथ एक विचित्र प्रकार के सम्मोहन से भरे चुम्बकत्व को प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है।
भगवान श्री कृष्ण का रोम-रोम ‘क्लीं’ कामबीज से इस प्रकार आबद्ध था, जिससे उन्हें कुछ करने की अथवा किसी पर अपना प्रभाव डालने की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती थी। व्यक्ति स्वतः उनका प्रशंसक और अनुयायी हो जाता था। केवल मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी, केवल उनके मित्र पांडव ही नहीं उनके विराधी कौरव भी उनके आकर्षण में समान रूप से बंधे थे।
इस साधना के लिए आवश्यक है कि साधक के पास ताम्र पत्र पर अंकित प्रामाणिक ‘क्लीं’ यंत्र अवश्य हो, जो गोपाल मंत्रों से मंत्र-सिद्ध हो तथा सहयोगी रूप में कामकला माला हो। इन दोनों सामग्रियों को साधक जन्माष्टमी की रात्रि में अपने समक्ष पीले वस्त्र पर स्थापित कर दे, वह स्वयं भी पीले वस्त्र धारण करे और पीले आसन पर पश्चिम की ओर मुख करके बैठे। सामने राधा-कृष्ण का संयुक्त चित्र स्थापित करे और कक्ष को सुसज्जित करें।
साधक यथा संभव रात्रि के दस बजे के बाद ही यह साधना प्रारंभ करे। तदुपरांत भोज पत्र पर निम्न प्रकार से अष्टदल कमल बनाकर उसके प्रत्येक दल में चित्र के अनुसार केसर से काम गायत्री के मंत्र को अंकित करे तथा मध्य में क्लीं बीज अंकित करे।
पूजन साधक ‘क्लीं’ यंत्र के साथ करे। घी का दीपक लगाए और सुगन्धित अगरबती प्रज्ज्वलित करे। यंत्र, चित्र, माला आदि का पूजन केसर, पुष्प की पंखुडियों व अक्षत से कर, कामकला माला से निम्न मंत्र की एक माला मंत्र जप करे।
मंत्र जप के उपरांत कुछ देर वहीं स्थिर चित्त बैठे रहे और भावना करे कि इस तेजस्वी मंत्र का प्रभाव आपके रोम-रोम में व्याप्त हो रहा है, यदि संभव हो तो रात्रि शयन भी वहीं करे। दूसरे दिन प्रातः जल्दी उठकर ताम्र पात्र पर अंकित ‘क्लीं’ यंत्र एवं काम कला माला किसी पवित्र सरोवर में विसर्जित कर दे, जब कि भोजपत्र पर अंकित यंत्र को ताबीज में भर कर दाहिनी भुजा में अथवा गले में धारण कर ले। साधक कुछ समय के बाद ही अपने रोम-रोम में होने वाले परिवर्तन और लोगों के व्यवहार में परिवर्तन देखकर खुद ही साधना की अनुकूलता को समझ सकता है, यद्यपि यह साधना वर्ष में कभी भी की जा सकती है, किंतु जन्माष्टमी के अवसर पर करने से इसके प्रभाव में अतिरिक्त तीव्रता और तीक्ष्णता उतर आती है।
यह प्रयोग किसी विशेष पुरूष अथवा स्त्री को पूर्णरूप से सम्मोहित करने का प्रयोग है। कुंआरी कन्याओं द्वारा यह प्रयोग संपन्न करने से उन्हें इच्छित वर की प्राप्ति होती है तथा अविवाहित युवकों द्वारा प्रयोग विधि-विधान सहित संपन्न करने से प्रेमिका पूर्ण-रूप से उसके वश में हो जाती है अथवा मनोवांछित कन्या के साथ विवाह संपन्न होने की स्थिति बनती है। यह साधना कृष्ण अष्टमी के दिन प्रातः ही संपन्न कर लेनी चाहिए। स्नान कर अपने शरीर पर सुगंधित द्रव्य लगाकर, पीले वस्त्र धारण कर, पूजा स्थान में पश्चिम की ओर मुख करके बैठें और अपने सामने लाल वस्त्र पर आकर्षण यंत्र स्थापित कर दें। उचित तो यह माना गया है जिसको सम्मोहित करना हो उसका चित्र स्थापित करे किंतु उसके अभाव में उसके नाम को भी लिखा जा सकता है। यंत्र की पूजा, धूप, दीप से कर मोहिनी माला के द्वारा निम्न मंत्र की एक माला मंत्र जप करें।
यह मंत्र अत्यंत ही सिद्ध, प्रभावशाली एवं अभीष्ट फ़ल देने वाला है। इस मंत्र-जप के पश्चात् आकर्षण यंत्र धारण करने से जिसे वश में करना चाहते हों, वह शीघ्र ही पूर्णरूप से प्रभाव में आबद्ध होता ही है। मंत्र जप के उपरांत मोहिनी माला का प्रयोग अन्य किसी साधना में करना वर्जित है जबकि आकर्षण यंत्र निरंतर धारण किए रहना चाहिए।
यदि साधक किसी स्त्री अथवा व्यक्ति विशेष को सम्मोहित करने के स्थान पर इस बात में रूचि रखता हो कि समाज के प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति उससे प्रभावित हों, उसकी आज्ञा का पालन करें या स्पष्ट शब्दों में कहें कि उसे देखकर सम्मोहित हों, तो उसे यह प्रयोग करना ही चाहिए। इस प्रयोग की विशेषता यह है कि इसे सामान्य रूप से सिद्ध किया जाता है, फ़ल स्वरूप व्यक्ति को चतुर्दिक सफ़लता और ख्याति तो मिलती ही है साथ ही उसके अंदर चुम्बकीयता और अधिकार तत्व भी पुष्ट होता है, जिससे उसकी वाणी और व्यक्तित्व में एक अनोखी सी गंभीरता और आकर्षण उतर आता है।
यह प्रयोग केवल जन्माष्टमी की रात्रि में ही संपन्न किया जा सकता है। साधक को चाहिए कि वह इस दिवस विशेष की सांयकाल से सर्वथा एकांत में साधनारत हो। उसके वस्त्र, आसन, सामने बिछा कपड़ा सभी पीले रंग के हों और वह स्वयं गोरोचन अथवा केसर का तिलक करके साधना में प्रवृत्त हो। इस साधना में एकाग्रता का विशेष महत्व है। साधना कक्ष में एक बड़े घी के दीपक के अतिरिक्त प्रकाश की कोई भी व्यवस्था न रखे और इसी प्रकाश में अपने सामने ऋषिकेश यंत्र स्थापित कर उस पर काजल का टीका लगाए एवं विश्व मोहिनी माल्य से निम्न मंत्र को 108 बार जपे।
इस मंत्र को एक साफ़ कागज पर लिख कर उसे दीपक के समीप ही रख ले। जहां तक संभव हो मंत्र जप के काल में यंत्र पर ही दृष्टि टिकाएं रहें। मंत्र जप के उपरांत यंत्र पर लगे संपूर्ण काजल को सम्भाल कर रख लें और कुछ भाग अपने मस्तक पर लगा लें। यंत्र एवं माला को भविष्य में पुनः प्रयोग में न लें तथा जब कोई विशेष आवश्यकता हो, किसी सभा आदि में प्रवेश करना हो तो इस काजल की बहुत थोड़ी सी मात्रा अपने माथे अथवा वक्षस्थल पर लगा दें। समूह सम्मोहन का यह अचूक एवं अद्वितीय प्रयोग माना गया है।
इस साधना हेतु साधक मध्य रात्रि के बीत जाने के पश्चात् साधना क्रम प्रारंभ करें, इस साधना हेतु इच्छा पूर्ति गोविंद यंत्र, दो गोविंद कुण्डल तथा आठ शक्ति विग्रह आवश्यक है।
अपने सामने सर्वप्रथम बाजोट पर पुष्प ही पुष्प बिछा दें और उन पुष्पों के बीचों-बीच इच्छापूर्ति यंत्र स्थापित करें, तथा इस यंत्र का पूजन केवल चंदन तथा केसर से ही संपन्न करें, अपने सामने कृष्ण का एक सुंदर चित्र फ्रेम में मढ़कर स्थापित करें, चित्र पर भी तिलक करें तथा प्रसाद स्वरूप पंचामृत हो, जिसमें घी, दूध, दही, शक्कर तथा गंगाजल हो। इसके अतिरिक्त अन्य नैवेद्य भी अर्पित कर सकते हैं। इच्छा पूर्ति यंत्र के दोनों ओर गोविंद कुण्डल पर केसर का टीका लगायें और दोनों हाथ जोडकर कृष्ण भगवान का ध्यान करें। कृष्ण का ध्यान कर इनके शक्ति स्वरूप आठ शक्ति विग्रह स्थापित करें, ये आठ शक्तियां लक्ष्मी, सरस्वती, रति, प्रीति, कीर्ति, कांति, तुष्टि एवं पुष्टि हैं, प्रत्येक शक्ति विग्रह को स्थापित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ लक्ष्म्यै नमः पूर्वदले,
ऊँ सरस्वत्यै नमः आग्नेयदले,
ऊँ रत्यै नमः दक्षिणदले,
ऊँ प्रीत्यै नमः नैत्यदले,
ऊँ कीर्त्ये नमः पश्चिमदले,
ऊँ कान्त्यै नमः वायव्यदले,
ऊँ तुष्टयै नमः उत्तरदले,
ऊँ पुष्टयै नमः ईशानदले।
शक्ति पूजन के पश्चात् इच्छा पूर्ति मंत्र का जप प्रारंभ किया जाता है, इसकी भी विशेष विधि है, इसमें अपने दोनों हाथों में एक पुष्प अथवा पुष्प की पंखुड़ी लें, और इच्छा पूर्ति मंत्र का उच्चारण करते हुए उसे अर्पित कर दें।
इस प्रकार 108 बार यह मंत्र उच्चारण इसी विधि से संपन्न करना है, यह तर्पण प्रयोग पूर्ण हो जाने के पश्चात् पहले से जला कर रखे हुए दीप, अगरबत्ती तथा धूप से आरती संपन्न कर प्रसाद ग्रहण करें।
यदि कोई साधक एक महीने तक प्रतिदिन एक माला मंत्र जप संपन्न करे, तो उसका इच्छित कार्य अवश्य ही संपन्न हो जाता है।
कृष्ण का पूरा जीवन शत्रुओं को कभी युद्ध से, कभी नीति से परास्त कर, शांति स्थापित कर धर्म की स्थापना करना रहा है। जहां धार्म है, वहीं श्रीकृष्ण हैं। जब शत्रु बाधा बहुत बढ़ जाए, तो अपने सामने इस साधना दिवस के दिन अद्धर्रात्रि के पश्चात् शत्रु हंता प्रयोग संपन्न करना चाहिए, श्री कृष्ण सुदर्शन यंत्र के साथ मंत्र सिद्ध कृष्ण पाश तथा कृष्ण अंकुश की स्थापना कर विधि-विधान सहित पूजन करना चाहिए, अद्धर्रात्रि के पश्चात् साधक अपने पूजा स्थान में एक बड़ा दीपक लगायें, दूसरी ओर धूप, अगरबत्ती जलाएं, दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर सर्वप्रथम कृष्ण आयुधों को पूजन करें, प्रथम पूजन कृष्ण पाश तथा द्वितीय पूजन कृष्ण अंकुश का करें और पूजन करते समय पूरे समय ‘‘ऊँ सुचक्रायै स्वाहा’’ का मंत्र जप करते रहें।
इस पूजन के पश्चात् सामने एक चावल की ढेरी पर श्रीकृष्ण सुदर्शन यंत्र स्थापित करें तथा चारों ओर कृष्ण के अस्त्र-शस्त्र प्रतीक आठ लघु नारियल स्थापित करें, ये आठ लघु नारियल आठ हाथों में स्थित शंख, चक्र, गदा, पद्म, पाश, अंकुश, धनुष तथा शर के प्रतीक हैं तथा प्रत्येक लघु नारियल पर कुंकुंम, केसर, चावल, चढ़ाते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
ऊँ शंखाय नमः,
ऊँ चक्राय नमः,
ऊँ गदायै नमः,
ऊँ पद्हमाय नमः
ऊँ पाशाय नमः,
ऊँ अंकुशाय नमः,
ऊँ धनुषे नमः,
ऊँ शराय नमः।
अब अपनी बाधा निवारण तथा शत्रु नाश की इच्छा व्यक्त करते हुए सुदर्शन यंत्र का अपनी सारी पूजन सामग्री से पूजन संपन्न कर निम्न मंत्र का जप संपन्न करें।
इस मंत्र की पांच माला उसी स्थान पर बैठे कर जप करें तथा दूसरे दिन प्रातः राई मिला कर कृष्ण आयुधों तथा आठों लघु नारियलों को एक लाल कपड़े में बांध कर शत्रु के घर की दिशा में गाड़ दें तो प्रबल से प्रबल शत्रु भी शांत हो जाता है।
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