मनुष्य बाह्य रूप से तो सौन्दर्य की विषय-वस्तु होता ही है, किन्तु जब वैसा सौन्दर्य, मस्ती, उमंग, जोश, दमखम आंतरिक रूप से न हो, तो व्यक्ति को सोचने के लिए मजबूर होना ही पड़ता है। उसके मस्तिष्क के सैकड़ों सवाल उसे यह विचारने के लिए मजबूर कर देते हैं, कि क्यों ऐसा हो रहा है, आखिर क्या वजह है कि हमारी आंखों में वह चमक, चेहरे पर वह तेज, आकर्षण नहीं है, जो पौरुषता की पहिचान होती है। फ़लस्वरूप वह मानसिक रूप से दुर्बल होता जाता है, असमय चिड़चिड़ाहट, अकारण क्रोध जैसे भावों के उद्वेलित होने के कारण वह खुल कर अपनी बात को किसी से कह भी नहीं पाता, उसकी यह वेदना, यह निराशा के फ़लस्वरूप समय पूर्व ही चेहरे पर झुर्रियां, बालों में सफ़ेदी आना, चेहरे पर कोई नूर या ताजगी न होना, न ही किसी कार्य करने की इच्छा या चेतना का भाव होना यह सब स्थितियां धीरे-धीरे जीवन को दीमक की तरह खोखला कर देती हैं और जीवन बिना किसी लक्ष्य या उद्देश्य के पश्ुवत रूप में ही व्यतीत करता रहता है। ये सब स्थितियां एक दिन उसे जीवन-लीला को समाप्त करने के लिए प्रेरित करने लगती है।
ऐसे में निराश होने की जरूरत नहीं है, जब आप हर उपाय करके थक जाये, और असफ़लता ही मिले, साधनात्मक चिन्तन से चिताएं समाप्त होती है और इस दीक्षा को प्राप्त कर पूर्ण पौरुषत्व प्राप्त किया जा सकता है, तथा असमय पड़ गये बूढ़े मन में रस की, आनन्द की, प्रेम की भावना को जागृत किया जा सकता है। शारीरिक और आत्मीक बल के साथ-साथ जीवन के सभी भोग-विलास, गृहस्थ सुखों और आनन्द को जीवन भर के लिए आत्मसात किया जा सकता है। पूर्ण पौरुष प्राप्ति दीक्षा के माध्यम से जीवन अनेक अनेक रसों से सरोबार हो जाता है।
स्त्री हो चाहे पुरुष, दोनों के लिए यह एक आवश्यक तत्व है, अतः दोनों ही इस दीक्षा के माध्यम से पूर्ण सौन्दर्य को प्राप्त कर पौरुषवान बन सकते है। पांच व्यक्तियों को सदस्य बनाकर यह दीक्षा प्राप्त की जा सकती है।
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