शिव भूतेश्वर रूप में महाकाली के साथ श्मशान में विचरण करते हैं। तंत्र साधना के साधक जानते हैं कि जो श्मशान वासिनी महाकाली को सिद्ध कर लेता है उसे अद्भुत तंत्र शक्ति प्राप्त हो जाती है। जीवन में भय-बाधा समाप्त हो जाती है। मां काली तो अपने भक्तों को अभीष्ट वर ही प्रदान करती है,
मां काली के श्री चरणों में प्रस्तुत यह स्तोत्र-
विरंच्यादि देवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीम्,
समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवुः।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।1।।
जगन्मोहिनीयम् तु वाग्वादिनीयम्,
सुहद पोषिणी शत्रु संहारणीयम्।
वचस्तम्भनीयम किमुच्चाटनीयम्,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।2।।
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली,
मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात्।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।3।।
सुरापानमत्ता सुभक्ता नुरक्ता,
लसत्पूतचित्ते सदा विर्भवस्ते।
जपध्यान पूजा सुधाधौतपंका,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।4।।
चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द,
शरच्चन्द्र कोटिप्रभा पुंज बिम्बम्।
मुनिनां कवीनां हदि योतयन्तं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।5।।
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा,
कदाचिद्विचित्र कृतिर्योगमाया।
न बाला न वृद्ध न कामातुरापि,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।6।।
क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं,
मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयमत्।
तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।7।।
यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य
स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च।
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्तिं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।8।।
ऊपर लिखे स्तोत्र के बारे में यदि यह कहा जाये कि यह मां काली का आवाहन मंत्र है तो कोई अनुचित बात नहीं है क्योंकि श्रेष्ठ साधकों ने जहां श्रद्धा युक्त होकर सस्वर पाठ करने से ‘मां काली’ का बिम्बवत अथवा साकार दर्शन भी प्राप्त किये हैं वहीं सामान्य रूप से भी इसका पाठ करने से सारे वातावरण में अद्भुत चैतन्यता और उत्साह का वातावरण बन जाता है। प्रत्येक स्तोत्र अपने अंदर कुछ न कुछ विशेषता छुपाये ही होता है और यह स्तोत्र भी इतना अधिक तीक्ष्ण प्रभाव युक्त है कि यदि साधक इसको सिद्ध कर किसी भी उग्र साधना में अथवा श्मशान साधना में प्रवृत होता है तो उसे सफलता मिलती ही है। मां काली तो श्मशानालयवासिनीम् कही गयी हैं और श्मशान की अधिष्ठात्री इस देवी की उपासना करने के उपरान्त साधक को कौन सी ऐसी विशिष्ठ साधना है जो सिद्ध न हो जाये। केवल श्मशान साधनायें ही नहीं, जीवन की वह प्रत्येक विपरीत स्थिति जो जीवन की जीवन्तता में बाधा बनकर जीवन को श्मशान तुल्य, नीरस एवं निश्चेष्ट बना गई हों, उसका निवारण भी मां भगवती महाकाली की कृपा से ही संभव होता है। स्तोत्र जहां मंत्र स्वरूप होते हैं, वहीं उनमें प्रार्थना एवं याचना का ऐसा मधुर स्वर होता है कि संबंधित देवी या देवता के भाव-पक्ष को स्पर्शित करने वाला होता है और यही विशेषता इस स्तोत्र में भी समाहित है।
इस स्तोत्र को सिद्ध करने की विधि अत्यंत सरल है। कृष्ण पक्ष के किसी भी मंगलवार अथवा अष्टमी की रात्रि को 11 बार करे साधना रूप में करने के लिए अवश्यक है कि नित्य 21 दिनों तक की जाने वाली इस सरल साधना में केवल इस स्तोत्र का नियम पूर्वक 11 पाठ किया जाता है। भूमि को साफ कर उस पर लकड़ी का बाजोट बिछाये और उस पर लाल वस्त्र बिछा कर तांबे के पात्र में यह यंत्र रखें। स्वयं भी लाल रंग के वस्त्र धारण कर, लाल रंग के आसन पर बैठे। उसका मुख दक्षिण दिशा की ओर हो। इस यंत्र पर सिन्दूर, काजल एवं कुंकुंम अर्पित करें। उतने दिनों तक साधक ब्रह्मचर्य पूर्वक रहे, यदि संभव हो तो एक समय ही भोजन करें, भोजन तामसिक न हो एवं भूमि शयन करें।
अनुष्ठान को सिद्ध कर यह यंत्र अपने शरीर पर धारण करता है तो उसे प्रत्येक आकस्मिक कष्ट एवं दुर्घटना से मुक्ति मिलती है।
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