दाद में ताँबे के पैसे से दाद को खुजावें और उसे नींबू के रस में मिला कर दाद पर लगावें।
दाद अवश्य मिट जायेगा। सूखी खुजली में सरसों के तेल में मिला कर लगावें तथा सब शरीर पर गोबर मल कर स्नान करें। पकी खुजली मे अच्छी तरह पानी से दाद को धोये फि़र घृत या मक्खन मिला कर लगावें।
नींबू का टुकड़ा काट कर दाद पर मलने से पहले कुछ जलन-सी प्रतीत होती है, किन्तु दाद की खुजली कम हो जाती है तथा कुछ दिनों में रोग मिट जाता है।
यदि पाँव में कंकड़-काँटा आदि लगने से वहाँ गाँठ बन जाये और उसमें दर्द हो तो हरड़ को हल्दी के स्वरस में घिस कर लेप करने से लाभ होता है। अथवा उस गाँठ पर सरसों का तेल गर्म करके मलें और पोटली में नमक बाँधकर उससे सेंकें।
चालमूँगरा के तेल को मलने से कुष्ठ, श्वेत कुष्ठ तथा अन्य चर्म रोग शीघ्र दूर हो जाते हैं।
असगन्ध, कुटकी, लोभ, कटफ़ल, मुलहठी, मंजीठ और धाय के फ़ूल को पीस कर लेप करने से व्रण का रोपण होता है तथा सूजन भी नष्ट हो जाती है।
यदि पित्त-दोष की अधिकता से सूजन वाला फ़ोड़ा या घाव हो तो उस पर अजवाइन, असगन्ध, मेहन्दी, चीड़, निशोध और कांकड़ासिंगी को पानी के साथ पीस कर लेप करें।
कब्ज न होने दें। यदि कब्ज हो तो मूलरूप से औषधोपचार आरम्भ करने से पूर्व उसकी कोष्ठ-शुद्धि के लिये सुख विरेचन करना चाहिए।
नेत्र पीड़ा होने पर अतीस के गुनगुने क्वाथ से हल्का सेंक करें तथा गुलाबजल के साथ अतीस को पीस कर आँखों के बाहर, चारों ओर 1-1 अंगुल छोड़ कर लेप करें और सूखने पर नेत्र धाने से जलन और दर्द में आराम मिलता है।
अतीस का चूर्ण दूध अथवा पानी के साथ औंट कर बालक को पिलाने से हरे-पीले अथवा अत्यन्त पतले दस्त भी रूक जाते हैं।
बालकों के श्वास, तमक श्वास और खाँसी में पिप्पली, हरड़ मुनक्का और जवासा के चूर्ण को समान भाग शहद और घृत के साथ सेवन कराना चाहिये।
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