उस तरह चन्द्रमा शारीरिक पुष्टि, यात्रा में सफ़लता, विवाह, शुभ कार्य, मुहुर्त इत्यादि के लिये तथा मंगल का मिलान विवाह, कर्ज बाधा निवारण, गृहस्थ सुख की वृद्धि)। भाग्योदय व उन्नति हेतु ग्रहों को अनुकूल बनाया जाता है। लेकिन ग्रह दोष के कारण उत्पन्न बाधा से जीवन हर प्रकार से कष्ट कारक हो जाता है। मंत्र के माध्यम से, तंत्र के माध्यम से ग्रहों को अपने अनुकूल बनाया जाता है। यदि आपके जीवन में उक्त स्थितियां नहीं है तो इन्हें प्राप्त करने हेतु सरल रूप में ये साधना दी गई है। ऐसी ही श्रेष्ठतम साधनायें जिसे प्रत्येक साधक अवश्य सम्पन्न करें।
प्रत्येक राशि का स्वमी कोई न कोई ग्रह होता है। जब कोई ग्रह प्रतिकूल स्थान में बैठ कर विपरीत प्रभाव उत्पन्न करता है, तब मानव को कष्ट, पीड़ा और दुःख भोगना पड़ता है। जीवन के सुख-दुःख, लाभ-हानि आदि इन्हीं ग्रहों पर आधारित होते हैं। इन ग्रहों की शांति के लिए उनकी उपासना करने से ही जीवन में अनुकूलता आती है। भारतीय संस्कृति में नवग्रह उपासना का उतना ही महत्त्व है, जितना की भगवान विष्णु, शिव या अन्य देवताओं की उपासना का। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त जितने भी उपनयन, विवाह आदि संस्कार होते हैं, इन सब में नवग्रहों का विशेष महत्त्व है। किसी भी प्रकार का यज्ञ नवग्रह स्थापना के बिना अपूर्ण रहता है, क्योंकि यज्ञ की रक्षा नवग्रहों के माध्यम से ही होती है इसलिए गणेश आदि की स्थापना के साथ नवग्रह की स्थापना होना भी आवश्यक है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल बारह राशियां होती है और प्रत्येक राशि का स्वामी कोई न कोई ग्रह है। मेष और वृश्चिक राशियों का स्वामी मंगल, वृष और तुला का शुक्र, कन्या और मिथुन का बुध, कर्क का चन्द्रमा, सिंह का सूर्य, धनु और मीन का गुरु तथा मकर और कुम्भ राशियों का स्वामी शनि है।
मनुष्य की आयु 120 वर्ष की मानी गई है, इसमें से सूर्य की दशा छः वर्ष, चन्द्रमा की दस वर्ष, मंगल की सात वर्ष, राहु की अठारह वर्ष, गुरु की सोलह वर्ष, शनि की उन्नीस वर्ष, बुध की सत्रह वर्ष, केतु की सात वर्ष और शुक्र की बीस वर्ष मानी गई है। जन्म कुण्डली के अनुसार जब कोई ग्रह खराब स्थान में बैठ कर विपरीत प्रभाव उत्पन्न करता है, तब मानव को पीड़ा, कष्ट और दुःख भोगने के लिए विवश होना पड़ता है।
किस ग्रह की शान्ति के लिए क्या व्रत, पाठ, जप, तथा दान आदि करना चाहिए, वह निम्न है।
मंगल- शिव स्तुति, प्रवाल
दान- तांबा, सोना, गेहूं, गुड़, लाल वस्त्र, लाल चन्दन, लाल पुष्प, लाल वृषभ, मसूर की दाल, भूमि, विद्रुम।
बुध- अमावस्या व्रत, पन्ना
दान- कांसा, पन्ना, हरा वस्त्र, मूंग, सुवर्ण, दासी, कपूर, शस्त्र, फल, घृत, सर्व पुष्प।
गुरु- अमावस्या व्रत, पुखराज
दान- पीला वस्त्र, सोना, हल्दी, घृत, पीला अन्न, पीले पुष्प, पुखराज, अश्व, पुस्तक, मधु, लवण, शर्करा, भूमि।
शुक्र- गौ पूजा, हीरा
दान- चांदी, सोना, चावल, घी, सफेद वस्त्र, सफेद चन्दन, हीरा, सफेद अश्व, दही, गन्धद्रव्य, चीनी, गौ।
शनि- महामृत्युजंय जप, नीलम
दान- तिल, उड़द, लोहा, तेल, काला वस्त्र, नीलम, कुलथी, काली गौ, जूता, काला पुष्प, कस्तूरी, सुवर्ण।
राहु- मृत्युजंय जप, फिरोजा
दान- चांदी, सोना, चावल, घी, सफेद वस्त्र, सफेद चन्दन, हीरा, दही, गन्धद्रव्य, चीनी, गौ, भूमि।
केतु- मृत्युजंय जप, लहसुनिया
दान- कस्तुरी, तिल, लोहा, काला वस्त्र, ध्वजा, सप्त धान्य, कम्बल, उड़द, वैदूर्य, काला पुष्प, तेल, सुर्वण।
साधक को चाहिये वे स्वयं सम्बन्धित ग्रह का मंत्र जाप करें। बीज मंत्र का जप करने से विपरीत ग्रहों के प्रभाव में न्यूनता आती है और वे अनुकूल फल देने लगते हैं।
इसका मुख्य अधिकार आमाशय पर रहता है और इसके अलावा नेत्र, दिल, स्नायु आदि अवयवों पर इस ग्रह का विशेष प्रभाव पड़ता है। शारीरिक तथा मानसिक रोग, अवसाद, उदासीनता, अपमान, मंदाग्नि आदि रोगों का अध्ययन भी इसी ग्रह से किया जाता है।
यह आत्म सिद्धि, पिता, वन, भ्रमण, सिर दर्द तथा मानसिक चिंता का कारक ग्रह है। विवाह, यात्रा, मांगलिक कार्यों तथा व्यापार के लिये सूर्य का अध्ययन करना विशेष आवश्यक है, मनुष्य के आन्तरिक व्यक्तित्व में सूर्य देवत्व सदाचार, इच्छाशक्ति, प्रभुता, ऐश्वर्य, महत्वाकांक्षा, सहृदयता आदि का प्रतीक ग्रह है।
सूर्य परम तेजस्वी ग्रह है और प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तित्व के निर्माण में इसका प्रमुख योग है। सूर्य पराक्रम, तेजस्विता, हिम्मत को प्रकट करता है। वहीं यह व्यक्तित्व में क्रोध, हिसंक भाव, कार्य को भी प्रकट करता है। इन्हीं गुणों से तो व्यक्तित्व का निर्माण होता है प्रबल सूर्य वाला व्यक्ति निडर होकर जीवन में कार्य करता है। वास्तव में पुरूष के बल और पुरूषार्थ का प्रतीक सूर्य ही है। सूर्य कौन सी राशि में स्थित है, कौन से ग्रह की दृष्टि इस पर है इन सबका अध्ययन आवश्यक है। उनको जाने बिना फलादेश करना उचित नहीं है। लेकिन मोटे रूप में सूर्य के सम्बन्ध में उपरोक्त जानकारी आपको होनी चाहिए।
सूर्य साधना के लिये रविवार का दिन अनुकूल है। तिथियों में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि अथवा अमावस्या और रोहिणी नक्षत्र को भी सूर्य साधना के लिये श्रेष्ठ माना गया है। सप्तमी के साथ उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र को तो सूर्य साधना के लिये और भी अनुकूल दिवस माना गया है।
साधना प्रारम्भ करने वाले दिन साधक प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठ जायें। सूर्योदय से पूर्व ही अपने नित्य कर्म से निवृत्त होकर, स्नान कर, शुद्ध वस्त्र धारण कर लें। अपने सामने एक बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछा दें। गेहूं की एक ढेरी बनाकर उस पर ‘मंत्र सिद्ध प्राणप्रतिष्ठा युक्त सूर्य यंत्र’ स्थापित करें तथा गुलाल, कुंकुंम के साथ सिन्दूर भी अर्पित करें। अपने सामने सिन्दूर को शुद्ध जल में घोल कर, दोनों ओर सूर्य चित्र बनाएं। सूर्य के बारह आदित्यों का स्मरण कर यंत्र पर कुंकुंम से 12 बिन्दियां लगाते हुए सूर्य के बारह नामों का उच्चारण करें- आदित्य, दिवाकर, भास्कर, प्रभाकर, सहस्त्रांशु, लोचन, हरिदश्वश्च, विभावसु, दिनकर, द्वादशात्मक, त्रयोमूर्ति, सूर्य। यंत्र पर लाल रंग के पुष्पों से पुष्पांजलि अर्पित करें। इसके पश्चात् विनियोग करें।
विनियोग–
ऊँ अस्य सूर्यमंत्रस्य भृगुऋषिः। गायत्री छन्दः।
दिवाकरो देवता। ह्रीं बीजम्। श्रीं बीजम्।
श्रीं शंक्तिः। दृष्टा दृष्ट फल सिद्धये जपे विनियोगः।।
ध्यान-
भावस्य द्रत्नाद्य मौलिः स्फुर दधर रूचारंजत
श्चारूकेशी। भास्वान्यो दिव्यतेजो करकमलयुतः
स्वर्णवर्ण प्रभाभिः। विश्वा काशाव काशो ग्रहण
सहितो भाति यश्चोदयाद्रौ सर्व्वानन्द प्रदाता
हरिहर नमित पातु मां विश्वचक्षुः।।
उसके बाद ‘भास्कर माला’ से सूर्य गायत्री मंत्र की एक माला जप करें।
उसके बाद सूर्य बीज मंत्र की पांच माला जप करें।
यह साधना मूल रूप से आठ दिनों की है। साधना की समाप्ति के बाद साधना सामग्री को किसी नदी में प्रवाहित कर दें।
सूर्य स्तोत्र का पाठ साधना काल में नित्य 5 बार करें तथा साधक प्रातः काल सूर्य को अर्ध्य दे।
चन्द्रमा मन और मन से सम्बन्धित कार्य, जल, माता, आदर, सम्मान, श्री, सम्पन्नता, सर्दी, जुकाम, चर्म रोग, हृदय रोग का कारक ग्रह है। इसका अधिकार सीने पर रहता है और मनुष्य की प्रकृति का अध्ययन चन्द्रमा से ही किया जाता है। चन्द्रमा शीघ्र अपनी गति बदलता है और तुरन्त फल देने वाला या हानि देने वाला ग्रह माना गया है। पूरे महीने में मनुष्य के स्वभाव में जो परिवर्तन होता रहता है उसका कारण चन्द्रमा ही है। इसीलिये मनुष्य अपनी प्रकृति बार-बार बदलता रहता है। जब-जब रोहिणी, हस्त, श्रवण, पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र आते हैं, तो चन्द्रमा उत्तम फल देता है। गुरु के साथ तो यह उच्च फल देता है। इसके अलावा सूर्य और बुध के साथ भी श्रेष्ठ योग बनता है।
यात्रा, विवाह, शुभ कार्य, मुहुर्त इत्यादि के लिये चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार ही निर्णय किया जाता है। यह मूल रूप से पश्चिम उत्तर दिशा का स्वामी तथा स्त्री, रूप, श्वेत, वर्ण, जल तत्व प्रधान ग्रह है। मानव शरीर में जल रक्त रूप में रहता है। इस कारण ब्लड-प्रेशर, हृदय रोग इत्यादि का सम्बन्ध चन्द्रमा से है। स्त्री तत्व ग्रह होने के कारण इस ग्रह की प्रबलता से मनुष्य के स्वभाव में कोमलता, मधुरता, भावना, शील, संकोच इत्यादि गुण आते हैं। इसके साथ ही शारीरिक पुष्टि, राजयोग, चित्त, माता-पिता तथा सम्पत्ति इत्यादि की गणना और प्रभाव का अध्ययन इस ग्रह से किया जाता है।
चन्द्रमा की प्रतिकूल स्थिति में व्यर्थ भ्रमण, उदर रोग, जल-कफ आदि से सम्बन्धित बीमारियां होती है। वहीं स्त्री सम्बन्धी रोगों का मूल कारण चन्द्रमा ही है। जन्म कुण्डली में स्थिति चन्द्रमा का प्रभाव इतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना गोचर में फल देते समय चन्द्रमा की क्या स्थिति है।
साधना विधान
इस साधना को किसी भी शुक्ल पक्ष के सोमवार की रात्रि या पूर्णिमा से प्रारम्भ किया जा सकता है। रात्रि में स्नान कर शुद्ध श्वेत वस्त्र धारण कर, वायव्य दिशा (उत्तर और पश्चिम में मध्य वाली दिशा) की ओर मुख कर आसन पर बैठ जायें। साधना प्रारम्भ करने से पूर्व साधक एक माला गुरु मंत्र जप अवश्य सम्पन्न करें, गुरु से साधना में सफलता के लिये आशीर्वाद प्राप्त करें। अपने सामने चौकी पर एक सफेद वस्त्र बिछा दें। उस पर ‘मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त मनसो जातः यंत्र’ स्थापित करें। यंत्र का संक्षिप्त पूजन करने के पश्चात् चन्द्र विनियोग करें-
विनियोग
ऊँ अस्य मंगल मंत्रस्य, विरूपाक्ष ऋषिः, गायत्री
छन्दः, धरात्मजी भौमो देवता, हां बीजम्, हंसः
शक्तिः, सर्वेष्ट सिद्धये जपे विनियोगः।
इसके पश्चात् चन्द्रमा का ध्यान करें-
चन्द्र ध्यान
जपाभं शिवस्वे द्वजं हस्त पप्रैर्ग दाशूल शक्ति करे
धारयन्तम्। अवंती समुत्थं सुभेषासनस्थं वराननं
रक्तवस्त्रं समीडे।।
ध्यान के पश्चात् चन्द्र गायत्री मंत्र की ग्यारह माला जप ‘शिवस्वे माला’ से करें
अब शिवस्वे माला से बीज मंत्र की 9 माला नित्य अगले सोमवार तक जप करें-
यह साधना एक सोमवार से अगले सोमवार तक ही जाती है। इस दौरान साधक नित्य प्रति चन्द्र बीज मंत्र की 9 माला मंत्र जप करें। साधना की पूर्णता के बाद साधना सामग्री को किसी नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें।
चन्द्र स्तोत्र का पाठ करना विशेष फलदायी होता है अतः साधक को नियमित रूप से 9 पाठ इस स्तोत्र का अवश्य करना चाहिये।
पुरूष प्रधान ग्रह होने के कारण मंगल तामसिक ग्रह है और जब यह लग्न में स्थित होता है अथवा सप्तम भाव में स्थित होता है अथवा इसकी दृष्टि इन दो भावों पर होती है, तो वह कुण्डली मंगली कहलाती है तथा तीव्र प्रभाव के कारण, अग्नि तत्व के कारण, मंगल का मिलान विवाह के समय विशेष रूप से किया जाता है।
जीवन में ऋण इत्यादि से संबंधित जो बाधा आती है इसका मूल कारण मंगल ग्रह कि अनुचित स्थिति कुण्डली में होना है। अपने दुष्प्रभाव के कारण यह ग्रह व्यक्ति को कर्ज के बोझ से लाद देता है। इसीलिये कई ज्योतिषी कर्ज बाधा निवारण के लिये ऋणमोचक मंगल स्तोत्र की सलाह देते हैं। मंगल श्रेष्ठ होने पर मनुष्य को अत्यधिक धैर्य और पराक्रम प्रदान करता है। साथ की खतरों से खेलने की प्रेरणा भी देता है।
साधना विधान
इस साधना को जैसा कि नाम से स्पष्ट है, किसी मंगलवार के दिन ही प्रारम्भ किया जाता है। इसके लिये प्रातः शुद्ध वस्त्र धारण कर, दक्षिण दिशा की ओर मुख कर लाल रंग के आसन पर बैठ जाएं। सामने एक बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा कर, चावल से एक त्रिकोण बनाकर उसमें ‘भौम यंत्र’ स्थापित करें। फिर दाहिने हाथ में जल लेकर विनियोग करें।
विनियोग-
ऊँ अस्य श्री भौमस्तोत्रस्य गर्गऋषिः। मंगलो देवता।
त्रिष्टुप्छन्दः। ऋणापहरणे जपे विनियोगः।
ध्यान-
रत्नाष्टा पद वस्त्र राशिममलं दक्षात्किरंतं
करादासीनं विपणौ करं निदधतं रत्नादिराशौ
परम्।। पीता लेपन पुष्प वस्त्र मखिलालंकार
संभूषितम्। विद्या सागरपारगं सुरगुरुं वंदे सुवर्गप्रभम्।।
इसके पश्चात ‘संभूषित् माला’ से तीन माला
मंगल गायत्री मंत्र की करें।
इसके पश्चात् 9 माला भौम बीज मंत्र की ‘संभूषित्
माला’ से जप करें-
यह साधना मंगलवार से मंगलवार तक ही है। मंगल स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करना विशेष लाभदायक होता है अतः साधक को नित्य इस स्तोत्र का 3 पाठ अवश्य करना चाहिये।
प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में सुस्थितियां चाहता है परन्तु कठिन परिश्रम के पश्चात् भी वह अपनी मेहनत का भी पूर्ण फ़ल प्राप्त नहीं कर पाता है। जिसके कारण मनुष्य मानसिक और शारीरिक रूप से व्यथित हो जाता है। जिससे जीवन नारकीय युक्त हो जाता है। अपने जीवन को पूर्ण भौतिक सुखों से परिपूर्ण करने हेतु सूर्य ग्रह को बलशाली कर जीवन में तेजस्विता, शारीरिक ऊर्जा और शक्ति से संबल करने तथा चन्द्र ग्रह को प्रबल कर ओज,वीर्य,रस,गृहस्थ सुख की प्राप्ति और जीवन में सुमंगल स्थितियों के साथ सौभाग्य संतान सुख की वृद्धि हेतु मंगल ग्रह को अपने अनुकूल बनाने हेतु तीव्र नवग्रह शक्तिपात दीक्षा और साधना सामग्री तीन पत्रिका सदस्य बनाने पर उपहार स्वरूप भेजी जायेगी।
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