पराम्बा मां जगत्जननी भुवनेश्वरी दस महाविद्याओं में से एक हैं। इनकी साधना धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष चारों पुरूषार्थों को प्रदान करने में सहायक है। महाकाली, महासरस्वती, महालक्ष्मी का सम्यक त्रिगुणात्मक रूप भुवनेश्वरी में समाहित है, इसीलिए इस साधना को सम्पन्न करना जीवन का सौभाग्य माना जाता है।
विश्व के सभी साधकों ने एक स्वर में स्वीकार किया है कि प्रत्येक गृहस्थ को जीवन में एक बार अवश्य ही भुवनेश्वरी देवी की पूजा या आराधना कर लेनी चाहिए, इससे उसके जीवन में सभी पाप समाप्त हो जाते हैं, पूर्व जन्मकृत दोष दूर हो जाते हैं और साधक इस जीवन में सभी प्रकार के भौतिक पदार्थों को भोगता हुआ पूर्ण सुख और सम्मान प्राप्त करता है।
जो वास्तव में ही साधक हैं, जो साधनाओं की ऊंचाइयों पर पहुंचना चाहते हैं, जो अपने जीवन में कुछ करके दिखाना चाहते हैं, उनको इस भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की पूर्वार्द्ध दिवसो का उपयोग कर पूर्ण प्रामाणिकता के साथ भुवनेश्वरी साधना सम्पन्न करनी चाहिए।
यः पठेच्छणुयाद्वापि स योगी नात्र संशयः
स्वच्छदमानसों भूत्वा स्तवमेतत्समुद्धरेत्।।
स दीर्घायुः सुखी वाग्मी वाणी तस्य न संशयः।
धनवान गुणवानश्रीमान् धीमानीय गुरुप्रिये।।
सर्वेषान्तु प्रियो भूत्वा पूजयेत्सर्व्वदा स्तवम्।
मंत्र सिद्धि कर स्थैव तस्य देवि न संशयः।
कुबेरवद्भवेत्तस्य तस्या वीना हि सिद्धयः।।
मृतपुत्र च या नारी दौर्भाग्यपरिपीडि़ता।
धनधान्यविहीना च रोग शोकाकुला चया।।
ताभिरेतन्महादेवि भूर्ज्जपत्रे विलेखयेत्।।
सब्ये भुजे च वघ्नीयात्सर्व्वसौख्यावती भवेत्।।
‘शाक्त प्रमोद’ तंत्र का प्रामाणिक और सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है और सभी विद्वानों ने यह स्वीकार किया है, कि शाक्त प्रमोद में पक्षपात रहित पूर्णता के साथ विवरण दिया हुआ है।
शाक्त प्रमोद के अनुसार जीवन की सर्वश्रेष्ठ और महत्वपूर्ण साधना भुवनेश्वरी साधना ही है, जीवन में अन्य साधनायें कर सकें या न कर सकें, जीवन में अन्य महाविद्याओं को सिद्ध भले ही न कर सकें, पर साधक को अपने जीवन में भुवनेश्वरी साधना तो अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए।
शाक्त प्रमोद के प्रामाणिक श्लोक के अनुसार भुवनेश्वरी साधना संपन्न करने पर निम्न लाभ निश्चय ही प्राप्त होते हैं-
1- इस साधना को सम्पन्न करने पर व्यक्ति दीर्घायु, सुखी और वाणी सिद्धि युक्त हो जाता है। वह दूसरों को पूर्ण रूप से प्रभावित करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
2- ऐसा व्यक्ति धनवान तो होता ही है, साथ ही साथ अनेक गुणों से विभूषित होकर अपने कार्य-व्यापार को कई गुना बढ़ा देता है।
3- इस साधना की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि दूसरे प्रकार में यह गुरु साधना ही है और इस साधना को सम्पन्न करने से स्वतः गुरु सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
4- इस साधना को सम्पन्न करने पर संसार में कितने भी मंत्र हो, उन मंत्रों में सिद्धि मिल जाती है और वह कुबेर के समान धनवान तथा सम्पत्तिवान बन जाता है।
5- यदि कोई स्त्री दुर्भाग्यशाली हो और उसके पुत्र नहीं हो या पुत्र आज्ञाकारी न हो तो यदि घर का कोई सदस्य इस साधना को सम्पन्न करता है तो उसका दुःख समाप्त हो जाता है और वह पुत्रवान बन जाती है।
6- इस साधना को सिद्ध करने से दस महाविद्याओं में सर्वश्रेष्ठ भगवती भुवनेश्वरी सिद्ध हो जाती हैं और उनके साक्षात् दर्शन संभव हो पाते हैं।
7- शास्त्रों में कहा गया है कि भगवती भुवनेश्वरी आद्याशक्ति हैं, अतः इसे सिद्ध करने पर महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती तीनों महादेवियां स्वतः सिद्ध हो जाती हैं।
8- इस साधना को सम्पन्न करने पर गृहस्थ व्यक्ति भी उसी प्रकार योगी कहला सकता है, जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण पूर्ण गृहस्थ और सोलह हजार रानियों के प्रियतम होते हुए भी योगीराज कहलाते है।
9- इस साधना को सिद्ध करने पर निश्चय ही व्यक्ति में विशेष क्षमता आ जाती है और वह अपने शरीर को लघु रूप बना कर संसार में कहीं पर भी विचरण कर सकता है और वापिस अपने मूल आकार में आ सकता है। जिस प्रकार हनुमान जी ने लंका जाते समय अत्यन्त लघु रूप धारण कर लिया था और समुद्र पार करने के बाद अपने मूल रूप में आ गये थे, यह साधना की सर्वश्रेष्ठ विशेषता है।
वस्तुतः भुवनेश्वरी-साधना जीवन की अनुपम और अद्वितीय साधना है और शास्त्रें में भुवनेश्वरी साधना के बारे में जितना लिखा गया है उतना और किसी साधना के बारे में नहीं कहा गया है। समस्त तांत्रिकों, योगियों और साधकों ने यह स्पष्ट रूप से बताया है कि भुवनेश्वरी साधना ही जीवन की पूर्ण और प्रामाणिक साधना है।
मैं आगे गोपनीय और परम दुर्लभ भुवनेश्वरी साधना रहस्य को स्पष्ट कर रहा हूं, इसका मंत्र अपने आप में अत्यन्त सरल है और कोई भी कम पढ़ा लिखा साधक भी इस साधना को सम्पन्न कर सकता है।
साधक प्रातः काल उठ कर स्नान कर सफेद वस्त्र धारण कर स्वयं या अपनी पत्नी के साथ पूजा स्थान में बैठ जाये और अपने सामने ‘त्रैलोक्य मोहिनी भुवनेश्वरी यंत्र’ को स्थापित कर दें। यह अपने आप में दुर्लभ और अद्वितीय यंत्र है क्योंकि यह भुवनेश्वरी यंत्र सती स्वरूप में दिव्यता और चेतना प्रदान करता है। जिससे कि साधक ऐसा दुर्लभ यंत्र अपने घर में स्थापित कर सकें। शास्त्र में तो यंत्र निर्माण के बारे में कहा गया है कि यह यंत्र जटिल है, कठिन है और सौभाग्यशाली स्त्रियों के घर में ही ऐसा यंत्र स्थापित हो सकता है। जिससे की उनके घर में अखण्ड सुहाग-सौभाग्य की वृद्धि हो सके।
त्रिकोणं षटकोणं वृत्तं अष्टदलं वीलिखयेत्
पद्ममष्टदलम्बाह्मे वृत्तं षोडशभिर्द्दलेः
विलिखेत्वकर्णिकामध्ये षट्कोणमतिसुन्दरम्
चतुरस्त्रश्चतुद् द्वारिमेवम्मण्डलमालिखेत्
उपरोक्त पंत्तिफ़यों को पढ़ कर आप अनुमान लगा सकेंगे, कि इस यंत्र का निर्माण कितना अधिक जटिल और कठिन है। इसके साथ भगवती भुवनेश्वरी का मंत्र चैतन्य चित्र भी अपने पूजा स्थान में स्थापित कर देना चाहिए।
इसके बाद ताम्र यंत्र को शुद्ध जल से धो कर पौंछे और किसी दूसरे पात्र में केसर से ‘ह्रीं’ अक्षर लिख कर उस पर यंत्र को स्थापित करें। यंत्र को उस पात्र में रख कर उसके चारों कोनों पर भी ‘ह्रीं’ अंकित करें और फिर साधक उसकी प्राण प्रतिष्ठा करें।
ऊँ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं हौं हंसः
सोमवती भुवनेश्वरी देवी प्राणाः इह प्राणाः, जीवः
इह स्थितः, सर्वेन्द्रियाणि इह स्थितानि,
वाड्-मनश्चक्षुः श्रोत्र-जिह्ना घ्राण पाद पायूपस्थानि
इहैवागत्य चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।
ऐसा करने के बाद तांत्रोक्त रूप से भुवनेश्वरी सिद्ध करने के लिए अपने आसन का शोधन करें, आसन के नीचे जो भूमि है, उस भूमि को दाहिने हाथ से छू कर यह मंत्र पढ़ें।
।। ऊँ पवित्र-वज्र-भूमे! हूं फट् स्वाहा।।
इसके बाद भूमि को मंत्र सिद्ध करने के बाद भूमि पर जल अक्षत चढ़ा कर निम्न मंत्र पढ़ते हुए उसका पूजन करें-
।। ऊँ आधार-शक्त्यै नमः जलाक्षत-चन्दनं समर्पयामि।।
आधार शक्ति अर्थात् भूमि की पूजा करने के बाद विनियोग करें। इसके लिए पहले दाहिने हाथ में जल ले कर निम्न मंत्र पढ़ते हुए जल जमीन पर छोड़ दें।
ऊँ अस्य आसन शोधन मंत्रस्य श्री मेरू-पृष्ठ ऋषिः
सुतलं छन्दः कूर्मो देवता, आसनोपवेशने विनियोगः।
विनियोग करने के बाद आसन के ऊपर दाहिना हाथ रख कर नीचे लिखे हुआ मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ पृथ्वि! त्वया घृता लोका, देवि! त्वं विष्णुना
घृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरू आसनम्।।
इसके बाद अपने दाहिनी ओर चावलों की ढेरी बना कर उस पर एक सुपारी रखें और कुंकुंम का तिलक करें। उसे भैरव मान कर उसके सामने गुड़ का भोग लगायें और हाथ जोड़ कर प्रार्थना करें कि वे निरन्तर साधक की रक्षा करते हुए सभी विघ्नों का नाश करें-
ह्रीं तीक्ष्ण-दंष्ट्र! महाकाय! कल्पान्त दहनोपम!
भैरवाय नमस्तुभ्यमनुज्ञां दातुर्महसि।।
ऐसा करने के बाद साधक अपना रक्षा विधान निम्न प्रकार से करें।
1- तीन बार दोनों हाथों की हथेली से आवाज करते हुए ‘फट्’ शब्द का उच्चारण करें और बांये पैर की एडी से तीन बार भूमि पर प्रहार करें या दूसरे शब्दों में भूमि का ताड़न करें, इससे भूमि पर होने वाले विघ्नों का निवारण होता है।
2- भूमि पर अपने दोनों हाथ रख कर तीन बार ‘फट्’ शब्द का उच्चारण करें और फिर अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर आकाश की ओर एकटक दृष्टि से देख कर ‘फट्’ शब्द का उच्चारण करें, इससे भूमि पर तथा अन्तरिक्ष से होने वाले विघ्नों का नाश होता है
फिर समस्त विघ्नों का नाश कर अपनी रक्षा का विधान करें और इसके लिए अपने चारों ओर लोहे की कील से गोल घेरा बना दें, घेरा बनाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ रं अग्नि प्राकाराय नमः
इसका तात्पर्य यह है कि अब साधक सभी प्रकार से सुरक्षित है और उसके चारों ओर अग्नि की दीवार बनी हुई है। इसके बाद साधक भगवान गणपति को अन्य पात्र में स्थापित कर उनका संक्षिप्त पूजन करें।
यदि घर में गणपति की मूर्ति या गणपति का चित्र हो तो उसका भली प्रकार से पूजन करें और यदि न हो तो गोल सुपारी पर मौली बांध कर उन्हें गणपति-मान कर स्थापित कर दें और उनकी पूर्ण पूजा करें। पूर्ण पूजा में जल से स्नान करा कर कुंकुम-अक्षत लगा कर नैवेद्य चढ़ायें और प्रार्थना करें।
साधक को चाहिए कि अपने सामने अपने गुरु की मूर्ति या गुरु का चित्र स्थापित करें और उनकी पूर्ण पूजा करें। पूजन करते समय प्रत्येक वस्तु समर्पित करते समय ‘ऊँ गुं गुरूभ्यो नमः’ का उच्चारण करता रहें।
इस प्रकार गुरुदेव का पूरा ध्यान कर साधक स्वगुरु, परम गुरु, परात्पर गुरु और पारमेष्ठि गुरु का नाम ले कर पूजन करें। अपने सामने एक पात्र में गंगा जल या शुद्ध जल ले कर रख लें, फिर गुरुदेव के चित्र के सामने ही जल, अक्षत, कुंकुंम, पुष्प आदि समर्पित करते हुए उच्चारण करें-
स्वगुरु निखिलेश्वरानन्दाय
श्री पादुकां पूजयामि नमः समर्पयामि नमः।
परम गुरु सच्चिदानन्दाय
श्री पादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि नमः।
परात्पर गुरु वेदव्यासाय
श्री पादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि नमः।
पारमेष्ठि गुरु ब्रह्माणे
श्री पादुकां पूजयामि नमः तर्पयामि नमः।
इस प्रकार गुरुदेव को स्मरण कर पंचोपचार से पूजन करें और फिर गुरुदेव का मानसिक पूजन निम्न प्रकार से करें-
लं पृथिव्यात्मकं गन्धं समर्पयामि नमः।
हं आकाशात्मकं पुष्पं समर्पयामि नमः।
यं वाय्वात्मकं धूपं आघ्रापयामि नमः।
रं बह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि नमः।
वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि नमः।
सं सर्वात्मकं ताम्बूलं समर्पयामि नमः।
अपने सामने जो ‘त्रैलोक्य मोहिनी भुवनेश्वरी यंत्र’ रखा है और जो सामने भुवनेश्वरी चित्र स्थापित कर साधक निम्न प्रकार से विनियोग, न्यास एवं ध्यान करें-
विनियोग
ऊँ अस्य श्री भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्र मंत्रस्य श्री
शक्ति ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री भुवनेश्वरी
देवता, हं बीजं, ईं शक्ति:, रं कीलकं, सकल
मनोवांछितं-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
त्रि-शक्ति न्यास- श्री शक्ति ऋषये नमः शिरसि।
गायत्री छन्दसें नमः मुखे।
श्री भुवनेश्वरी देवतायै मनः हृदि।
हं बीजाय नमः गुह्ये।
ईं शक्तये नमः नाभौ।
रं कीलकाय नमः पादयोः।
सकल-मनोवांछित सिद्धयर्थे
जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
इस प्रकार न्यास करने के बाद साधक दोनों हाथ जोड़ कर भगवती भुवनेश्वरी का ध्यान करे-
षडंग न्यास अंगन्यास कर न्यास
ह्रीं श्रीं ऐं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
ह्रीं श्रीं ऐं तर्जनीभ्यां स्वाहा शिरसे स्वाहा
ह्रीं श्रीं ऐं मध्यमाभ्यां वषट् शिखायै वषट्
ह्रीं श्रीं ऐं अनामिकाभ्या हुं कवचाय हुं
ह्रीं श्रीं ऐं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् नेत्र त्रयाय वौषट्
ह्रीं श्रीं ऐं करतल कर पृष्ठाभ्यां फट् अस्त्राय फट्
सरोजनयनां चलत् कनक कुण्डलां शैशवीं,
धनूर्जप वटी करामुदित सूर्य कोटि प्रभाम्।
शशांक कृत शेखरां शव शरीर संस्था शिवाम्
प्रातः स्मरामि भुवनेश्वरीं शत्रु गति स्तम्भनीम्।।
ध्यान करने के बाद साधक ‘भुवनेश्वरी खड्ग
माला’ से मंत्र जप प्रारम्भ करें, पर मंत्र जप से पूर्व भुवनेश्वरी यंत्र के सामने शुद्ध घृत का दीपक और अगरबत्ती लगा लें। इसके बाद शांत मनोयोग पूर्वक भुवनेश्वरी के बीजाक्षर मंत्र का जप करें और शास्त्रों के विधान के अनुसार यदि भुवनेश्वरी साधना के बीजाक्षर मंत्र का 11 दिनों तक नित्य 11 माला मंत्र जप किया जाये, तो निश्चय ही भुवनेश्वरी सिद्ध हो जाती है।
उपरोक्त मंत्र अपने आप में सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय है, इस मंत्र को चैतन्य करने के लिए प्रत्येक बार मंत्र से पहले पांच बार गुरु मंत्र उच्चारण और बाद में भी गुरु मंत्र का पांच बार उच्चारण करे। इस तरह से मंत्र जाप करने से सोमवती स्वरूप में त्रि-शक्तियुक्त भुवनेश्वरी साधक के जीवन में सदैव स्थापित रहती है।
जब माला पूरी हो जाये तब दोनों हाथ जोड़ कर भक्ति भाव से भगवती भुवनेश्वरी के दर्शन कर लें और प्रणाम कर आशीर्वाद प्राप्त करें, कि वह सिद्ध हों और साधक के जीवन के सारे मनोरथ पूर्ण करें। साधना समाप्ति के बाद यंत्र को अपने पूजा स्थान में स्थापित कर दे और माला को अपने गले में धारण कर लें।
मां भगवती भुवनेश्वरी अपने भक्तों को जीवन की अनेक विपत्तियों से उन्हें सुरक्षा प्रदान करती हैं। आपके जीवन के सम्पूर्ण पाप-दोषों का शमन हो सके और भौतिक जीवन निरन्तर गतिशील रहते हुए श्रेष्ठता की प्राप्ति कर सके, इस हेतु सती शक्ति चैतन्य दिवस सोमवती अमावस्या पर्व पर सोमवती भुवनेश्वरी महाविद्या शक्तिपात दीक्षा आप उपहार स्वरूप प्राप्त कर अपने जीवन की अंधकारपूर्ण कालिमामय स्थितियों से निवृत्ति प्राप्त कर सकेगे। अपने किन्हीं पांच रिश्तेदार या मित्रों को पत्रिका सदस्य बनाने पर आपको यह शक्तिपात दीक्षा और साधना सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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