भगवान शंकर के शरीर से उत्पन्न होने वाला रसश्रेष्ठ पारद रोगों को समाप्त करने में दक्ष है, दरिद्रता को समाप्त करने में सक्षम है, संसार के सभी व्यक्तियों के लिए अप्रिय वृद्धावस्था को समूल नष्ट कर नव यौवन प्रदायक है, इसके साथ ही सम्पूर्ण अष्ट सिद्धियों को देने में सक्षम है। क्योंकि पारद की तुलना किसी भी पदार्थ से नहीं की जा सकती है।
पारद का महत्व सर्वविदित है। इसके महत्व का आंकलन ‘रस रत्न समुच्चय’ नामक ग्रंथ की इस पंक्ति से किया जा सकता है-
अर्थात् यदि पारा सिद्ध हो जाये, तो यह संसार रोग और दरिद्रता से मुक्त हो जायेगा।
इसी रस रत्न समुच्चय में आगे कहा गया है- मानव शरीर को जरा रोग रहित रखने में कोई भी वनस्पति या धातु समर्थ नहीं है, क्योंकि सभी वस्तुएं पानी से भीगती है, आग में जलती है और ताप से सूखती है, किन्तु पारद ही एकमात्र ऐसी वस्तु हैं, जो इन सब से अप्रभावित रहता है। पारद को कुछ विशेष प्रक्रिया से बांधकर स्थिरीकरण प्रदान किया जाता है, तो वह अमृत हो जाता है और इस प्रकार के बद्ध पारद के द्वारा असम्भव को भी सम्भव बनाने की प्रक्रिया सम्पादित हो सकती है।
और इसी बद्ध पारे के द्वारा जब भगवान गणपति का विग्रह बनाया जाता है, तो उन पारद गणपति की आराधना करने वाले साधक को विद्या, बुद्धि, धन, बल और समस्त सिद्धियां स्वतः ही प्राप्त होने लगती है, क्योंकि ऋद्धि-सिद्धि के पति होने के साथ ही साथ मंगलमूर्ति भगवान श्री गणेश वेदविहित समस्त कर्मो में प्रथम पूजनीय देवता हैं।
सनातन हिन्दू धर्म का कोई भी मांगलिक कार्य बिना भगवान गणपति की पूजा के प्रारम्भ ही नहीं होता। इतना ही नहीं, प्रत्येक देवी-देवता की आराधना-साधना करने से पूर्व भगवान गणपति से ही प्रार्थना की जाती है, कि वे मेरी साधना पूर्ण होने में सहायक बनें। इतना महत्व किसी अन्य देवी-देवता को नहीं प्राप्त है, ऐसा ही उनका श्रेष्ठ उत्तम स्वरूप है।
गणेश का शाब्दिक अर्थ है-गणों का स्वामी। मानव शरीर पांच कर्मेन्द्रियों, पांच ज्ञानन्द्रियों और चार अन्तःकरण द्वारा संचालित होता है और इनके संचालित होने के पीछे जो शक्ति है, वह विभिन्न चौदह देवताओं की शक्ति है, जिनके मूल प्रेरणा स्त्रोत हैं-भगवान गणपति।
‘गाणपत्यर्थवशीर्ष’ नामक ग्रंथ के अनुसार-श्री गणेश का प्रधान देव के रूप में पूजित होने का प्रमुख कारण है, शब्द ब्रह्म ‘ओऽम्’ का प्रतीक होना। जिस प्रकार किसी भी श्लोक या मंत्र के उच्चारण के पूर्व ‘ऊँ’ का गुंजरण करना अनिवार्य है, उसी प्रकार भगवान गणपति का प्रथमतः पूजन होना अनिवार्य है।
भगवान गणपति का स्वरूप अत्यन्त मनोहर एवं मंगलप्रदा है। वे एकदन्त और चतुर्भुज हैं। वे अपने चारों हाथों में पाश, वीणा, धान्य मंजरी और वर मुद्रा धारण किये हुए हैं। वे रक्त वर्ण हैं, लम्बोदर हैं, शूर्पकर्ण तथा रक्त वस्त्रधारी हैं। रक्त चन्दन के द्वारा उनके समस्त अंग अनुलेपित हैं। उनकी पूजा रक्त पुष्पों द्वारा होती है। वे अपने साधकों पर कृपा करने के लिए साकार रूप में उपस्थित होते हैं। भक्तों की कामना पूर्ण करने के लिए ज्योतिर्मय जगत के कारण तथा प्रकृति और पुरूष से परे होकर वे आविर्भूत हुए हैं।
भगवान गणपति अपने साधक के लिए कल्पवृक्ष के समान फलप्रदायक हैं, उनकी साधना करने वाले साधक को समस्त भौतिक सुख, सम्पत्ति, समस्त नौ निधियां प्राप्त होती हैं। गणपति विद्या के आगार हैं, अतः वे अपने साधक को कुशाग्र बुद्धि प्रदान करते हैं और इसके साथ ही साथ ओंकारवत होने के कारण अपने साधक को आध्यात्मिक रूप से भी परिपूर्ण करते हैं।
भगवान गणपति के बारह नाम अत्यंत प्रसिद्ध हैं इन नामों का पाठ तथा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह प्रवेश, नगर प्रवेश अथवा गृह-नगर से निर्गम, किसी भी संकट का निवारण होता ही है। इनके अनन्त नामों में से ये बारह नाम अति प्रमुख हैं- सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्नहर्त्ता, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र तथा गजानन। इनके स्मरण मात्र से व्यक्ति के समस्त दुःखों का नाश होता है।
भगवान गणपति, जो मात्र अपने नाम का उच्चारण करने वाले साधक पर कृपा कर, उसके समस्त विघ्नों का नाश कर, उसके जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं, ऐसे श्री गणपति की आराधना साधना को यदि विशिष्ट क्रम से प्राण-प्रतिष्ठित ‘पारद गणपति’ के श्री विग्रह पर सम्पन्न किया जाये, तो उससे प्राप्त होने वाले लाभ की तो गणना करना ही सम्भव नहीं है।
मोदक प्रिय भगवान श्री गणेश के कर्म अद्भुत और अलौकिक होते हैं, इनकी साधना से, नाम स्मरण से, ध्यान, जप और आराधना से मेधा शक्ति का परिष्कार होता है, समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है और समस्त विघ्नों एवं दुखों का विनाश होकर परम कल्याण होता है।
साधक के मन की जो भी इच्छा हो, इस साधना को सम्पन्न करने पर निश्चित रूप से पूर्ण होती ही है। जब आपके व्यापार में घाटा होने लगे, जब लक्ष्मी आप से रूठने लगे, आपका व्यापार और कारोबार बन्द होने के कगार पर आ गया हो, शरीर रोगों से त्रस्त हो गया हो, निरन्तर परीक्षा में असफलता प्राप्त हो रही हो, पढ़ाई में मन नहीं लगता हो, अर्थात जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मिल रही असफलता की समाप्ति के लिए यह प्रयोग रामबाण है। भगवान गणेश के इन्हीं लाभों के कारण तो उन्हें विघ्नहर्ता कहा जाता है।
प्रथम पूज्य भगवान गणपति की साधना करना सरल है, इनकी साधना कोई भी व्यक्ति, नर-नारी बालक-बालिका, सम्पन्न कर सकता है। इनकी साधना में कोई विशेष विधि विधान की आवश्यकता नहीं होती है, आवश्यकता है, तो केवल शुद्ध भाव की, श्रद्धा की।
विघ्नहर्त्ता पारद गणपति, श्रीफल, विनायक माला से 29 अगस्त गणेश जयंती को सम्पन्न करे।
प्रातःकाल दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर गणेश जन्मोत्सव दिवस पर अपने साधना स्थल को स्वच्छ करें। स्वयं पीला वस्त्र पहिने तथा पीले आसन पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठ कर ही साधना सम्पन्न करें। पवित्रीकरण और न्यासादि दैनिक साधना विधि के अनुसार सम्पन्न करें। अपने सामने किसी ताम्र पात्र में हल्दी से स्वास्तिक अंकित कर, उस पर ‘विघ्नहर्त्ता पारद गणपति’ की स्थापना कर कुंकुम, अक्षत व पीले पुष्प से संक्षिप्त पूजन सम्पन्न करें।
अपने दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प लें तथा अपनी इच्छा, जिसकी पूर्ति के लिए आप यह साधना सम्पन्न कर रहे हैं, उसका उच्चारण कर पूर्ण होने की प्रार्थना करते हुए भगवान गणपति का निम्न प्रकार से ध्यान करें-
वीणां कल्पलतां च पाशं वरदं विधत्ते करे, वामे
तामरसं च रत्नकलशं सन्मंजरीं चाभयम्।
शुण्डादण्डल सन्मृगेन्द्रवदनः शंखेन्दुगौरः शुभोः
दीव्यरत्न निभांशुको गणपतिः पायात् पायात् स नः।।
अर्थात् भगवान गणपति जिन्होंने अपने दाहिने हाथ में वीणा, कल्पलता, पाश तथा वरद धारण कर रखा है और बाएं हाथ में रत्न कलश, अंकुश, कमल, धान्य मंजरी तथा अभय धारण किये हुये है, उनका सिंह सदृश्य मुख शुण्ड से सुशोभित है, शंख और चन्द्रमा के समान उनका वर्ण गौर है, उनके वस्त्र विभिन्न दिव्य रत्नों से सुसज्जित हैं, ऐसे शुभ स्वरूप वाले भगवान श्री गणेश मेरी समस्त बाधाओं का विनाश कर समस्त विपदाओं से मेरी रक्षा करें।
इसके बाद श्रीफल पर कुंकुम लगाकर उसे भगवान गणपति के सम्मुख अर्पित करें और विनायक माला से निम्न मंत्र का 3 माला मंत्र जप सम्पन्न करें।
इस प्रकार यह 11 दिवसीय साधना सम्पन्न करने वाले साधक पर भगवान गणपति प्रसन्न होकर अनंत-अनंत मनोकामनायें पूर्ण होने की क्रिया प्रारम्भ होती है। विघ्नहर्त्ता पारद गणपति को पूजा स्थान में ही रखें और 11 दिन बाद विनायक माला और श्रीफल को अनंत चतुर्दर्शी के दिन नदी, तालाब या कुंए में विसर्जित कर दें।
भगवान गणपति ही सर्वप्रथम पूजित देव हैं और शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त को मनोवांछित फ़ल प्रदान कर देते हैं। इस वर्ष गणेश जन्मोत्सव शुक्रवार 29 अगस्त से प्रारम्भ हो रहा है। गणपति शुक्र रस, वीर्य, सौन्दर्य तथा शक्ति के प्रदाता हैं। इस दिन साधना करने से निश्चित रूप से इन चारों सुखों से साधक युक्त होता है। भौतिक जीवन में आनन्द और उल्लास युक्त जीवन प्राप्त करने के लिए आप अपने किन्हीं तीन रिश्तेदारों, मित्रों या सगे-सम्बधियों को पत्रिका सदस्य बनायें। ऐसा करने पर आपको तांत्रोक्त विघ्नहर्ता शक्तिपात दीक्षा और साधना सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,