भक्ति का तात्पर्य है, पूर्ण रूप से समर्पित कर उसी विचार में ध्यान लगाना, भक्ति में साधक अपने आराध्य के गुण-अवगुण तथा अन्य किसी बात पर विचार नहीं करता, वह तो अपने मन मस्तिष्क में जिस रूप को स्थिर कर लेता है, उसी के अनुसार हर समय पूजा, अर्चना, जप, ध्यान, साधना करता रहता है, मन को शान्ति मिलती है, उसे एक आधार मिलता है, कष्टों में एक मार्ग दिखाई देता है लेकिन क्या केवल भक्ति जड़ता नहीं है।
शक्ति तत्व व्यक्ति को चैतन्य करता है, उसे आगे बढ़ने के लिए कुछ ऐसा प्रयास करने की प्रेरणा देता है, उसके प्रयासों में अनुकूलता मिलती है, शक्ति हर समय साधक को जाग्रत करती हैं और यही जागरण उसकी क्रियाशीलता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष है, उसे कोई भी कार्य कष्टप्रद मालूम नहीं होता, शत्रु बाधा हो चाहे आर्थिक संकट हो, वह आगे बढ़ने के लिए तत्पर रहता है, लेकिन केवल शक्ति हर समय व्यक्ति को एक अव्यक्त क्रिया में जगाये रखती है, संतुष्टि जिसे आत्मसुख भी कहा जाता है, वह नहीं मिल पाती।
जहां भक्ति तथा शक्ति दोनों का संयोग है वही आधार है आत्मसुख का और क्रियाशीलता का इन दोनों का संयोग सुन्दर जीवन के निर्माण के लिए आवश्यक है, इसी लिए साधनाओं में जहां शिव की साधना होती है, वहीं शक्ति की साधना भी आवश्यक है, क्योंकि शिव और शक्ति का मिलना ही पूर्णता की साधना है, जहां यज्ञ पुरुष है वहीं अग्नि भी है, जहां विष्णु है वहीं लक्ष्मी भी है, और यही साधना के लिए भी आवश्यक है।
शालिग्राम श्री विष्णु का साक्षात् मूर्तिमान स्वरूप है, और इनका पूजा विधान अत्यन्त सरल है जिस घर में भी पूजा की सामान्य प्रक्रिया भी सम्पन्न होती है, वहां शालिग्राम अवश्य स्थापित किये जाते हैं, मांगलिक कार्यों में चाहे वह गृह प्रवेश हो, विवाह हो अथवा अन्य कोई शुभ कार्य, शालिग्राम पूजा तो आवश्यक ही मानी गई है।
शारदा तिलक – ग्रंथ में लिखा है कि- कोई साधक प्रतिदिन शालिग्राम पूजन कर चरणोदक अर्थात् उस पर चढ़ाया गया जल ग्रहण करता है, तो उसे किसी तीर्थ यात्रा की आवश्यकता नहीं हैं।
1- यदि किसी रोगी को 21 दिन शालिग्राम पूजन कर जल पिलाये तो उसका रोग पूर्ण रूप से शान्त हो जाता है।
2- यदि शालिग्राम का सात दिन पूजन कर नियमित जप किया जाय तो दुर्घटना एवं अकाल मृत्य का दोष पूर्ण रूप से दूर हो जाता है।
3- शालिग्राम पूजन में एक विशेष विधान लक्ष्मी पूजा का भी है, सामान्य रूप से शालिग्राम मूर्ति विग्रह को तुलसी पत्र पर स्थापित करते है, यह तुलसी पत्र लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है, इसके बिना शालिग्राम पूजा अधूरी ही है, क्योंकि लक्ष्मी के बिना विष्णु का स्वरूप भी आधा ही माना गया है।
शास्त्रोक्त पूजा में- शालिग्राम के साथ ही ‘श्री चक्र’ स्थापित किया जाता है और उसकी पूजा सम्पन्न की जाती है, तथा प्रतिदिन यदि पांच बार मंत्र का जप कर साधक किसी भी कार्य के लिए रवाना हो तो उसे उस कार्य में निश्चित पूर्णता मिलती है।
इस महत्वपूर्ण साधना के लिए लक्ष्मी साधना भी अत्यन्त आवश्यक है, अतः लक्ष्मी स्वरुप ‘श्री चक्र’ स्थापित कर पूजन करना चाहिए।
‘अभिभाष्कर संहिता’ के अनुसार-शालिग्राम तथा श्री चक्र के दर्शन मात्र से ही सभी तीर्थों का फल प्राप्त होता है क्योंकि इन दोनों में ही सभी तीर्थ, देवता, पर्वत, समुंद्र देवता तथा विष्णु की शक्तियों का वास है।
यह साधना 19 सितम्बर विष्णु एकादशी या किसी भी शुक्रवार को प्रारम्भ की जा सकती है और विशेष बात यह है कि इस साधना का कोई अन्त नहीं है एक बार साधना प्रारम्भ करने के पश्चात् दर्शन कर पांच बार भी मन्त्र जप करें तो पूर्ण पूजन का फल प्राप्त होता है।
शुक्रवार के दिन प्रातः स्नान कर साधक शुद्ध जल शालिग्राम पर अर्पित करें, फिर पौछ कर इसे दूसरे पात्र में पुष्प पर स्थापित कर दें, हाथ में जल लेकर शालिग्राम का ध्यान करते हुए विनियोग मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ अस्य श्री द्वादशाक्षर मन्त्रस्य प्रजापति-ऋषिः,
गायत्रीछन्दः, शालिग्रामः परमात्मा देवता, ऊँ बीजं,
नमः शक्तिः चतुर्विध पुरूषार्थ सिद्धये, सर्व मनोरथ
प्राप्यर्थे जपे विनियोगः
इस जल को अपने मस्तक, नेत्र, मुख, कान तथा हृदय पर लगाएं।
शालिग्राम पर अर्पित किया गया जल चरणोदक को प्रसाद स्वरूप साधना के बाद ग्रहण करें। अब उसी पात्र में मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त ‘श्री चक्र’ भी स्थापित करें, श्रीचक्र के पूजन में उस पर कुंकुंम, गुलाल, अबीर, चावल अर्पित करें और घी का दीपक जलाये, लक्ष्मी बीज मंत्र द्वारा लक्ष्मी का आह्नान करें, सर्वप्रथम इस साधना में लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
‘विष्णु वैभव लक्ष्मी माला’ से निम्न लक्ष्मी बीज मंत्र की एक माला जप करे।
अब एक दूसरे बड़े पात्र में जल लें, उसमें थोड़ा चंदन तथा सुगन्धित द्रव डाल दें और उस पात्र को एक हाथ में लें और दूसरे हाथ में घंटा ले कर उसे बजाते हुए शालिग्राम का अभिषेक प्रारम्भ करे।
अभिषेक का तात्पर्य है जल को एक धारा में अर्पित करते हुए निम्नलिखित मंत्र का जप जोर से बोलते रहें-
इस प्रकार 108 बार मंत्र जप सहित अभिषेक करने के पश्चात् जल पात्र को रख दें तथा विष्णु और लक्ष्मी की आरती सम्पन्न कर इस जल में से स्वयं आचमन स्वरूप जल ग्रहण करें।
पूजन का यह जल अत्यन्त ही पवित्र होता है। इसके पान से शरीर तथा मन की व्याधि शान्त हो जाती है, यदि किसी रोगी को प्रतिदिन पूजन कर जल का पान कराया जाय तो पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।
साधना सामग्रीः- श्री चक्र, शालिग्राम, विष्णु वैभव लक्ष्मी माला
अपने भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को पूर्ण विष्णु लक्ष्मी शक्ति से युक्त करने हेतु अपने किन्हीं तीन मित्रों या सगे सम्बन्धियों को पत्रिका सदस्य बनाने पर आपको सिद्धाश्रम प्रणीत मंत्र सिद्ध विष्णु शक्ति युक्त तीव्र शक्तिपात दीक्षा और शालिग्राम विष्णु साधना सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी। इस हेतु प्राचीन मंत्र-यंत्र-विज्ञान जोधपुर कार्यालय के मोबाइल नम्बर 07868939648, 08769442398 पर सम्पर्क करें।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,