इन चैतन्य दिनों को ‘शक्ति समागम पर्व’ की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि इन दिनों शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो शक्ति की आराधना से वंचित रहता हो। यह पर्व तो साधकों के लिए शक्तिपर्व ही कहा जा सकता है, क्योंकि शाक्तिमान होने के लिए शक्ति की उपासना ही प्रमुख है। इन्हीं दिनों शक्ति स्वरूपिणी दुर्गा अपने पूर्ण शक्तिमय स्वरूप में विचरण करती है। प्रत्येक साधक क्षण-क्षण का उपयोग कर अध्यात्म की उच्च स्थिति को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। तथा अपने जीवन को इन दिनों में समस्त आनन्द रसों से ओतप्रोत कर देना चाहते हैं। ऐसे चेतनामय क्षणों में साधक भगवती के सान्निध्य में स्वयं को अर्पित कर उनसे वह इच्छित प्राप्त कर लेना चाहता है, जिन को वह साधारणतः पूर्ण नहीं कर पाता।
भगवती अपने आराधक को वह सब कुछ प्रदान कर देती है, जो उसके हित में होता है, जिनसे वह जीवन के उच्च सोपानों को प्राप्त कर लेता हैं। प्रत्येक शिष्य और साधक हर बाधा को पार करने लिए भगवती की कृपा चाहता है और इन दिनों के पूर्ण सत्व को ग्रहण करना चाहता है।
इन दिनों में तो पूरा ब्रह्माण्ड ही भगवती की कृपा से आच्छादित रहता है। उनकी इस कृपा को हम पूर्ण रूप से ग्रहण कर सकते है। इन लघु साधनाओं को नवरात्रि में प्रातः या रात्रि में सम्पन्न कर अपने आप को हर तरह की शक्ति से पूर्णमय बना सकते है। क्योंकि ये नौ दिन ‘शक्ति तत्व’ से परिपूर्ण है।
यदि साधक किसी बाह्य तनाव के कारण से दुःखी हैं, तो वे ‘प्रकीर्तिता’ के सामने पीपल के 5 पत्तों पर दूध से बनी मिठाई रखें तथा प्रकीर्तिता को अपलक निहारते हुए 15 मिनट तक निम्न मंत्र का जप करें-
प्रयोग समाप्त होने पर उसी दिन मिठाई गाय को खिला दें तथा प्रकीर्तिता को नदी में प्रवाहित कर दें। तनाव समाप्त होगा।
यदि आप मानसिक शक्ति से सम्पन्न होना चाहते हैं, तो ‘तुलजा’ को हाथ में लेकर निम्न मंत्र का 51 बार पूर्ण मानसिक एकाग्रता के साथ जप करें।
आप धीरे-धीरे स्वयं को मानसिक रुप से शक्तिशाली अनुभव करेंगे तथा दृढ़ निश्चय की भावना बढेगी। तुलजा को 21 दिन बाद नदी में प्रवाहित कर दें।
आप अपने इष्ट का दर्शन करना चाहते है, तो ‘शुभांश’ पर लाल रंग के फूल चढ़ाते हुए 101 बार निम्न मंत्र का जप करने से इष्ट दर्शन सम्भव होगा।
प्रयोग समाप्त होने पर ‘शुभांश’ को किसी नदी में प्रवाहित करना अनिवार्य है।
किसी भी प्रकार के रोग से मुक्ति प्राप्त करने के लिए ‘कुंडिका ’ पर 51 पीले कनेर के पुष्प चढ़ाते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
फिर उसे पुष्पों के साथ ही किसी दुर्गा मंदिर में चढा़ दें। रोग मुक्ति संभव होगी।
यदि आप शत्रु-बाधा से पीडि़त है, तो किसी लाल कपडे़ पर काली स्याही से शत्रु बाधा का कारण लिखें, उसी कपडे में ‘महेधा’ रख कर बांध लें और रात्रि के समय किसी तिराहे पर डाल दें। बाधा की समाप्ति होगी ।
एक प्लेट में ‘क्लीं’ मंत्र बोल कर केसर से लिखे और ‘चन्द्रालाम्बा’ स्थापित करें। उस के सम्मुख मंत्र का 75 बार उच्चारण करें।
इसे अगले दिन किसी निर्जन स्थान पर फेंक दें। आपके विरोधी आपके मनोनुकूल हो जायेंगे।
अगर आप ग्रह बाधा से ग्रसित है, तो आप एक मिट्टी के पात्र में ‘हिगंल’के साथ नमक की 7 डली और 5 काली मिर्च के दाने रखें, फिर निम्न मंत्र का 60 बार उच्चारण करें।
पात्र का मुंह किसी लाल रंग के कपडे़ से बांध कर नदी में प्रवाहित कर दें। ग्रहों के कारण आ रही बाधा का निवारण होगा।
किसी चौकी पर पीला कपड़ा बिछावें, उस पर जौ की 5 ढेरियां बनावें, प्रत्येक ढेरी पर एक-एक ‘पूषण’ रखें। क्रमशः एक-एक ढेरी पर दोनों हाथ रखकर 21-21 बार निम्न मंत्रेच्चारण करें।
पूषण ओैर जौ उसी कपड़े में बांधकर किसी दान लेने वाले ब्राह्मण को देते समय मनोकामना मन ही मन बोलें। मनोकामना शीघ्र पूर्ण होगी।
रात्रि के समय ‘अमर्त्या’ को बायें हाथ में रखकर दायें हाथ से ढकें। लगभग 15 मिनट तक निम्न मंत्र जप करें।
तत्पश्चात् उसी दिन अमर्त्या को किसी सुनसान स्थान पर फेंक दें और पीछे मुड़कर न देखें, आश्चर्यजनक रूप से भाग्योदय होगा।
पूर्ण मंत्र चैतन्य ‘जगदण्ड’ को अपने पूजा कक्ष मे स्थापित कर लें। उसके सामने 101 बार निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
अष्टमी के दिन नदी में जगदण्ड विसर्जित कर दें। राजकीय कार्य में रत व्यक्तियों की आश्चर्यजनक रूप से प्रगति होगी।
ब्रह्म मुहुर्त में जमीन पर कुंकुंम से त्रिभुज बनायें, त्रिभुज में ‘विधात्री’ स्थापित कर दें। 61 बार निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
फिर प्रातः काल ही इसे नदी में प्रवाहित कर दें। ऐसा करने से यदि पति-पत्नी के बीच तनाव हो, तो वह समाप्त होता है।
लोहित्य के सामने हल्दी से रंगे चावलों का एक- एक दाना 51 बार निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए चढ़ायें।
लौहित्य और चावलों को किसी निर्जन स्थान पर डाल दें। अकाल मृत्यु-भय समाप्त होगा।
रात्रि के समय निम्न मंत्र का 71 बार उच्चारण करते हुए काली मिर्च से हवन करें।
आखिरी आहुति के साथ ‘महेशिन्दु’ को भी आहूत कर दें। व्यापार पर यदि तंत्र प्रयोग है तो समाप्त होगा।
बाजोट पर ‘क्षोणीगुज’ को स्थापित कर कुंकुंम, गुलाल व सात लाल पुष्प चढ़ायें और ‘सफेद हकीक माला’ से 11 माला मंत्र जप करें।
यह प्रयोग जीवन में पूर्ण यश प्रदायक और भोग प्रदायक है। माला और क्षोणिगुज को नदी में विसर्जित करे।
‘बिल्वांग’ लेकर उसे सिन्दूर से रंग दें और उसके सामने 75 बार निम्न मंत्र का जप करें।
प्रयोग समाप्ति पर बिल्वांग को नदी में विसर्जित कर दें। पूर्ण रूप से गृहस्थ सुख की प्राप्ति होती है।
आप अपनी इच्छानुसार विवाह करना चाहते है, मगर ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है, तो एक कागज पर उसका नाम लिखकर उस पर ‘सौगल’ रखें तथा उसके सामने 21 बार निम्न मंत्रोच्चारण करें, फिर उस पर एक गुलाब का पुष्प चढ़ायें।
यह क्रम पांच बार करें। प्रयोग समाप्ति पर पुष्प और सौगल को किसी नदी में प्रवाहित कर दें। इच्छित जगह विवाह सम्पन्न होगा।
मधु, घृत और शर्करा से निम्न मंत्रोच्चारण के साथ 108 आहुतियां देवें।
फिर ‘शुभंकरी’ पर कुंकुंम लगाकर मंत्र बोलते हुए उससे भी आहुति दे दें। धनागम सम्भव होगा।
हल्दी, सफेद चन्दन और केसर को आपस में अच्छी तरह मिलायें तथा एक पात्र में ‘क्षौरमी’ स्थापित कर उस पर 51 बार निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए चढ़ायें-
क्षौरमी को किसी कुंए में डाल दें। जिससे साधक जीवन में दैवीय कृपा से समस्त प्रकार से उच्चता और प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
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