भगवान इन्द्र को घमण्ड ने इस प्रकार जकड़ लिया था कि वो अपने आप को देवेश्वर समझने लगे थे। भगवान इन्द्र ने अपने मद में चूर होकर यह निश्चय कर लिया कि अब उस गांव में भयंकर वर्षा होगी और वहां के लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त करना है। पूजा के दिन प्रातः काल से ही घनघोर बारिश प्रारम्भ हो गई। लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर से उधर भागने लगे। अपनी प्रजा को इस प्रकार भयभीत होता देखकर भगवान कृष्ण ने सबको गोवर्धन पर्वत की ओर चलने का आग्रह किया।
गोवर्धन पर्वत के तल पर पहुंच कर भगवान श्री कृष्ण ने अपनी सबसे छोटी अंगुली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी गोप-ग्वालों को उस पर्वत के नीचे आने का आग्रह किया। उधर इन्द्र ने वर्षा को और तेज कर दिया और पूरा वातावरण ऐसा लगने लगा कि प्रलय निकट ही हो। जब इन्द्र को यह अहसास हो गया कि वो उस गांव वालों का कुछ अहित नहीं कर सकते तो उन्होने अपनी हार मान ली। उसी दिन से इस दिन को गोवर्धन पूजा के रुप में मनाया जाता है और इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा-साधना कर के हम संतान सुख का विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं।
जिस प्रकार रेगिस्तान में एक बूंद की तलाश व्यक्ति को रहती है, उसी प्रकार एक स्त्री के मन में भी एक शिशु को प्राप्त करने की आकांक्षा बनी रहती है। कहते हैं कि एक स्त्री का जीवन तभी पूर्ण होता हे जब वह मातृत्व को ग्रहण करती है। यदि एक स्त्री के विवाह के दो-तीन साल बाद भी कोई संतान नहीं हो या उसका पुत्र या पुत्री नहीं हो तो समाज उसे हेय दृष्टि से देखता है और यदि वह मां बनने के लायक न हो तो उसे बांझ, अपशकुनी जैसे कटु शब्दों को भी सहन करना पड़ता है।
जीवन के सोलह संस्कारों की पूर्णता का भाव तभी प्राप्त होता है जब विवाह के बाद सही समय पर श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति हो सके जिससे वह कुल की वृद्धि में सहायक हो सके। इससे पुरुष पूर्ण पुरुषत्व वंश वृद्धि से युक्त होता हे ओर स्त्री मातृत्व शक्ति से युक्त होती है। इसके विपरीत निःसंतान दम्पति का गृहस्थ जीवन बिल्कुल ही रुखा सूखा सा बन जाता है।
प्राय: ऐसा भी देखने में आया है कि दम्पति को संतान सुख तो है पर या तो संतान कुमार्गी हो गई है या वह उनके स्वास्थ्य को लेकर हरदम चिन्तित से ही रहते हें। समस्या चाहे कोई भी हो, इस साधना के द्वारा संतान पक्ष से सम्बन्धित सभी समस्याओं का निवारण किया जा सकता हे।
इसी दिवस को पूर्ण फलदायी हेतु भगवान कृष्ण समान श्रेष्ठ संतान प्राप्ति की साधना का प्रावधान है। यदि आप संतानहीन हैं या फिर आपकी संतान कुमार्गी हो गईं तो आप यह साधना संपन्न कर अपनी सभी समस्याओं का निवारण कर सकते हैं।
साधना सामग्री: इच्छापूर्ति गोविदं यंत्र, दो गर्भ धारण कुण्डल ओर चार शक्ति विग्रह, चौंसठ कलायुक्त् गोविन्द माला।
साधना विधि : सर्वप्रथम अपने सामने एक बाजोट स्थापित करें और उस पुष्पों से पूर ढक दें। अब बाजोट के बीचों बीच इच्छापूर्ति गोविदं यंत्र को स्थापित करें। इस यंत्र का पूजन केवल चंदन या केसर से ही करें। अपने सामने भगवान कृष्ण का एक मनमोहक चित्र स्थापित करें और पंचामृत से स्नान करवा कर पूजन तिलक करें व यंत्र के दोनों ओर गर्भ धारण क्ण्डल स्थापित करें व भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करें।
उनके शक्ति स्वरुप चार शक्ति विग्रह को यंत्र के चारों दिशाओं में स्थापित करें। ये शक्तियां लक्ष्मी-सरस्वती, रती-प्रीति, कीर्ति-कान्ति, तुष्टि व पुष्टि हैं। प्रत्येक विग्रह को स्थापित करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
शक्ति पूजन के बाद इच्छापूर्ति मंत्र का जाप किया जाता है। इसकी भी एक विशेष विधि हे जिसमें अपने बायें हाथ में पुष्प या पुष्प की पंखुडी लें ओर प्रत्येक बार मंत्र का उच्चारण करते हुए यंत्र पर ये पंखुडियां चढ़ाते रहें।
इस प्रकार चौंसठ कलायुक्त गोविन्द माला से 5 माला जाप इसी प्रकार करना है। यह साधना पूर्ण हो जाने पर साधना काल में ही प्रज्जवलित दीप और अगरबत्ती से भगवान विष्णु की आरती सम्पन्न करें व प्रसाद ग्रहण करें।
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