गुरू की क्रपा से ही सम्पूर्ण ज्ञान क्री प्राप्ति सम्भव है, क्योंकि गुरू से बडा कोई तत्व नहीं है, अत: मोक्ष मार्ग पर चलने वाले शिष्य को सदैव गुरू का ही चिन्तन, मनन करते रहना चाहिए।
गुरू कृपा से ही ब्रह्मा सृजन मेँ, विष्णु पालन मेँ तथा रूद्र संहार करने मेँ समर्थ हो पाते है, अत: शिष्य को गुरू सेवा परम सोभाग्य समझना चाहिये। समस्त भारतीय ऋषि परम्परा इस बात का जीवन्त प्रमाण है, कि गुरू सेवा द्वारा ही सर्वस्व प्राप्ति सम्भव है।
यदि शिष्य अपने जीवन में पुर्णता चाहता है, तो उसके लिए गुरू साधना आवश्यक है, क्योंकि गुरू ही परम तत्व है। शिष्य यदि गुरू मंत्र का जप नियमित रूप से करता है, तो उस जप के तेज से दु:स्वप्न का प्रभाव नहीं होता, और यदि सुस्वप्न हो तो उसका पूर्ण फल प्राप्त होता है।
शिष्य को चाहिए कि वह व्रत, दान, तीर्थ, तप आदि में अधिक न उलझ कर गुरू को ही अपने जीवन मेँ सर्वोच्च स्थान दे। जीवन मेँ गुरू होने से ही यज्ञ, जप, तप आदि क्रियाएं भी फल दे पाने मेँ सम्पर्थ होती हें।
गुरू के भीतर स्थित ज्ञान को किसी प्रकार से खरीदा नहीं जा सकता, उसकी प्राप्ति तो मात्र गुरु को प्रसन्न कर ही की जा सकती है, अत: शिष्य को गुरू के सामने सदैव विनीत भाव से ही रहना चाहिए। यदि शिष्य के मन में यह अहंकारी भाव है, कि में एक श्रेष्ठ जाति में उत्पन्न हुआ हूं, में बहुत धनवान हूं, में बहुत ऐश्वर्यवान हूं, मेरे परिवार बहुत सुप्रतिष्ठित है, मेरा यश बहुत फैला हुआ है, या में बहुत विद्वान हूं आदि, तो उये गुरू के सम्मुख उपस्थित नहीं होना चाहिए। इन भावों को तिरोहित कर ही गुरु क्रपा प्राप्त की जा सकती है।
नित्य कर्म प्रपंचों का प्रभाव साधक या शिष्य के मन और चित पर पड़ता हे, अत: चित्त को निर्मल बनाए रखने के लिए शिष्य को निरन्तर साधना मार्ग का अवलम्बन लेते रहना चाहिए।
शिष्य को चाहिए कि बह गुरू को अपने घर में आमंत्रित करे। यदि ऐसा सम्भव न हो सके तो भी मन में अवश्य ही यह चिन्तन रखें कि एक न एक दिन गुरूदेव के श्रीचरण उनके घर में पड़े गे। यह शिष्य का परम सौभाग्य होता है, कि शिव स्वरूप गुरू उसके घर में अपने श्रीचरणों का अंकन करें|
गुरू जो भी आज्ञा देते है, उसके पीछे कोई रहस्य अवश्य होता हैं। अत: शिष्य को बिना किसी संशय के गुरू आज्ञा का अविलम्ब पूर्ण तत्परता से पालन करना चाहिए, क्याँकि शिष्य इस जीवन मेँ क्याँण आया हैं, उसका इस युग मेँ क्याँ जन्म हुआ हैं, वह इस पृथ्वी पर क्या कर सकता हैं, इन सबका ज्ञान केवल गुरू को ही हो सकता हैं।
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