अर्थात पुष्य नक्षत्र में सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं, सम्पूर्ण हो जाते हैं।
इसी प्रकार पुष्य शब्द से ही पौष्टिक शब्द बना है, अर्थात जो नक्षत्र पुष्टिकारक है, वह पुष्य नक्षत्र ही है। यदि किसी गुरुवार को पुष्य नक्षत्र आता है, तो उसे ‘‘गुरु पुष्य’’ कहा जाता है और यह योग पूर्ण सिद्धि योग कहा जाता है-
गुरु पुष्य नक्षत्र में गुरु साधना, आराधना प्रारम्भ की जानी चाहिए, पुष्य नक्षत्र का महत्व इसी से अनुमान किया जा सकता है कि शिव पुराण में जो कि भगवान शंकर की स्तुति का महान ग्रंथ है, जिसमें विवरण है कि-
देवतागण भगवान शंकर से कहते हैं कि ‘आप यज्ञों में अश्वमेघ, युगों में सत्य युग, नक्षत्रों में पुष्य तथा तिथियों में पूर्णिमा स्वरूप हैं।’
पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि सभी योग विरूद्ध हों, तो भी पुष्य नक्षत्र में किया गया कार्य सिद्ध होता ही है, पुष्य नक्षत्र अन्य योगों के दोषों को दूर कर देता है और पुष्य के गुण किसी भी दुर्योग द्वारा नष्ट नहीं हो सकते।
अर्थात पुष्य नक्षत्र, सर्व सिद्धिकर योग बनाता है और इस नक्षत्र में ग्रहों आदि को देखने की आवश्यकता नहीं है, सब शुभ कर्म सम्पन्न किये जा सकते हैं।
अर्थात चाहे योग क्षीण हो, तारा बल भी न हो, तो भी पुष्य नक्षत्र होने पर यह दोष नहीं लगता है। चन्द्रमा अष्टमी का सबसे हल्का और दोषयुक्त माना जाता है, लेकिन यदि पुष्य नक्षत्र है तो वह इस दोष को भी शान्त कर देता है।
गुरु पूजन, व्यापारिक कार्य, औषधि, आभूषण, विद्या, ज्ञान, भवन निर्माण, विविध पूजा आदि सभी के लिए पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ, शान्तिकारक एवं सांसारिक कार्यों में पूर्ण सिद्धि दिलाने वाला कहा गया है।
पुष्य नक्षत्र साधना- ऐसे विशिष्ट योग में शान्ति हेतु, शत्रुबाधा नाश हेतु, आर्थिक पुष्टि हेतु, श्री एवं सौभाग्य पूर्णता के साथ-साथ वशीकरण सिद्धि प्रयोग सम्पन्न किये जा सकते हैं और इन प्रयोगों में पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
नोट- विशेष बात यह है कि पुष्य नक्षत्र सभी शुभ कार्यों हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है, लेकिन केवल विवाह पुष्य नक्षत्र के योग में सम्पन्न नहीं किया जा सकता। शास्त्र विधान के अनुसार यह पूर्णतया वर्जित है।
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