जिस पावन भूमि पर स्वयं भगवान श्रीराम ने रूद्राभिषेक के द्वारा महादेव शिव को सम्मोहित किया, उस सौभाग्यदायक तीर्थ राम-रामेश्वरम् को मैं नमन करता हूं।
प्रायः यह देखने में आता है कि अधिकतर व्यक्ति अपने जीवन में अत्यन्त परिश्रम के उपरान्त भी सफल नहीं हैं। यहां सफलता केवल धन अर्जित करने से नहीं है और न ही किसी बड़ी पदवी पर आसीन होने है। यहां यह बात भी अत्यन्त आवश्यक है कि हम सफलता की सही परिभाषा को समझ लें। इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि जीवन को सही ढंग से जीने के लिए प्रचुर मात्र में धन की आवश्यकता तो होती है ही, साथ ही साथ यदि समाज में आपका मान-सम्मान भी हो। पर क्या यही सफल जीवन का मापदण्ड हैं? क्या केवल इन्ही दो पहलुओं से हम किसी के भी जीवन को सफल या असफल कह सकते हैं?
हमारे समाज में कई ऐसे व्यक्ति हैं जो काफी धनवान एवं ऐश्वर्यवान तो हैं, पर फिर भी उनका जीवन सफल नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मानव जीवन का कोई न कोई पहलु उनके जीवन में अपूर्ण ही है। यदि व्यक्ति बहुत धनवान है तो उसके पास बीमारियां भी अनन्त हैं, यदि कोई ऐश्वर्यवान है तो उसे अपमानित होने का सदा भय सताता रहता है, यदि बलवान है तो सदा शत्रुभय बना रहता है। यदि इनमें से कोई बाधा नहीं है तो उसे गृहस्थ सुख प्राप्त नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति का कोई न कोई पक्ष अधूरा सा ही है। यदि सही अर्थों में देखा जाये, तो एक सफल व्यक्ति वही है जो जीवन के सभी आयामों को पूर्णता से जीने की क्षमता रखता हो।
क्या हम एक सफल जीवन जीना भी चाहते हैं या नहीं। यदि आज तक आप अपने जीवन को संघर्ष करते हुए ही बिताते आये हैं और अब आपने जीवन को इसी प्रकार से रो-पीट कर बिताने का मानस त्याग दिया है, तो जीवन में सौभाग्य अवश्य ही आयेगा। जीवन तो वह है जिसमें हमारी सभी इच्छायें पूर्ण हों, हम सूर्य की तरह जाज्वल्यमान बन सकें, हमारी श्रेष्ठता को सभी मानें और हम सभी दृष्टियों से सुखमय जीवन बिता सकें। बड़ी बात यह नहीं है कि हम में से कोई ऐसा होगा जो ऐसे श्रेष्ठ जीवन को जीने का सौभाग्य प्राप्त कर रहा होगा, बड़ी बात यह है कि हममें से कितने ऐसे शिष्य हैं जो ऐसा जीवन जीना चाहते हैं और उसके लिए प्रयत्नशील हैं।
कहते हैं कि जहां चाह, वहां राह। इसलिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि हम ऐसे जीवन की अभिलाषा करें और फि़र ऐसे जीवन को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील बनें। यह बात भी धा्रुव सत्य है कि ऐसा जीवन जीने के लिए हमें जीवन में किसी ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तित्व की आवश्यकता होती है जिन्हें हमारे शास्त्रें ने, हमारे पुराणों ने गुरु नाम से सम्बोधित किया है। यही वह श्रेष्ठ व्यक्तित्व हैं जो हमें उन ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं व मार्गदर्शन प्रदान करते हैं जहां पहुंच कर हमारा जीवन एक सफ़ल जीवन कहा जा सकता है।
गुरु की आवश्कता इसलिए है क्योंकि यदि हममें वह सामर्थ्य, वह क्षमता होती तो हम जीवन में इस प्रकार संघर्ष कर ही क्यों रहे होते? हम जब खुद ही उस भावभूमि पर होते तो भला यह रोज-रोज के तनाव हमें क्यों सताते? क्यों हमें बार-बार हार का मुंह देखना पड़ता? यदि सही अर्थों में देखा जाये तो मानव उस दिन ज्यादा प्रसन्नचित्त रहता है जिस दिन उसने किसी चुनौती को स्वीकार किया हो और उस पर विजय प्राप्त की हो। इसके विपरीत यदि उसके सामने कोई चुनौती नहीं आई हो, तो वह दिन कोई विशेष दिन नहीं होता और उसे अन्य सामान्य दिनों की गिनती में ही डाल दिया जाता है। इन सबके विपरीत यदि उसके सामने चुनौती आती है और उसको पस्त कर देती है तो वह उसके जीवन के असपफ़ल दिनों में से एक बन जाती है और वह उसे कई दिनों तक या फिर जीवन भर भी भुला नहीं पाता। एक ही दिन और एक ही चुनौती, पर उसके परिणाम कितने अलग-अलग हमें प्राप्त होते हैं।
इतनी सामान्य बात से ही गुरु की जीवन में आवश्यकता का अनुमान लगा सकतें हैं क्योंकि गुरु शिष्य को कभी हारने नहीं देते हैं। उनकी शक्ति सदा अपने शिष्यों के साथ रहती है जो उन्हें उनके बुरे समय में सहारा देती है, उनको हतोत्साहित होने से बचाती है। गुरु तो यह आशीर्वाद प्रदान करते हैं कि तुम्हारा जीवन और ज्यादा संघर्षमय बने, पर साथ ही साथ वह यह क्षमता भी प्रदान करते हैं कि हम उन सभी संघर्षों पर सफलता प्राप्त करें। यह सत्य है कि जब तक सोने को आग में डाला न जाये, तब तक सोने को शुद्ध भी नहीं किया जा सकता, पर यह भी सत्य है कि सोने में उस आंच को सहने की क्षमता भी होनी चाहिये और यही क्षमता तो गुरु अपने शिष्यों को प्रदान करते हैं।
भगवान राम जब रावण से युद्ध करते-करते हतोत्साहित से हो गये थे तो उन्होंने अपने गुरु विश्वामित्र का ध्यान किया और मार्गदर्शन प्राप्त किया। उनकी आज्ञानुसार ही भगवान राम ने एक क्षण विशेष में रावण की नाभि पर प्रहार कर उस पर विजय प्राप्त की थी। यदि हम इतिहास उठा कर देखें तो हम पाएगें कि इतिहास में केवल उन्हीं व्यक्तियों के नाम अंकित हैं जिन्होंने न केवल जीवन में संघर्ष किया, पर उन पर विजय भी प्राप्त की। इतिहास केवल उन्हीं लोगों का नाम याद रखता है जिन्होंने संघर्षों पर विजय प्राप्त की हो। महात्मा बुद्ध, आद्यशंकराचार्य, विवेकानन्द आदि ने भी साधना व तपस्या कर जीवन के मूल तत्व को समाज-कल्याण हेतु स्पष्ट रूप से उजागर कर जन-सामान्य को ठोस ज्ञान, साधना व चिन्तन दिया, जिससे कि वे प्रज्ञावान बन सकें और इस जीवन को पूर्णता दे सकें।
क्योंकि आदि महर्षियों को यह पहले से ही ज्ञात था, कि मनुष्य की प्रवृत्ति आगे चलकर मलिन, अस्थिर, अनिश्चिंत हो जायेगी, इसीलिए उन्होंने मानव को साधना-मार्ग पर अग्रसर होने की ओर प्रेरित करने का प्रयास किया, क्योंकि इसके द्वारा वह अपने भौतिक जीवन की जटिलताओं को दूर कर प्रकृति को भी अपने अनुरूप बनाने में सक्षम हो सकता है। साधना एक ऐसा उपकरण है, जिसके माध्यम से किसी भी देवता को अपने वशीभूत किया जा सकता है और इसे करने के केवल दो ही उद्देश्य होते हैं- भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियां।
हम सभी शिष्य समुदाय के दुःखों का कारण आखिर क्या है? क्या है कि हम इतना संघर्ष करने पर भी सफलता को प्राप्त नहीं कर पाते? इन सभी दुःखों का कारण है हमारे जीवन के पाप-दोष और जब तक इनका शमन नहीं होगा तब तक हम जीवन में श्रेष्ठता को प्राप्त नहीं कर सकते। वास्तव में ही इतिहास पुनः दुहराया जाएगा जब गुरुदेव जी के सानिध्य में वह सारी प्रक्रियायें पुनः उसी क्रम में सम्पन्न होंगी जिस क्रम में भगवान राम ने सम्पन्न की थी। अपने जीवन के सभी मनोकामनाओं की पूर्ति और अपने जीवन के सभी पाप-दोषों का शमन करने का उद्देश्य लेकर आपको तो बस घर से निकल पड़ना है व रामेश्वरम् आना ही है और बाकी आपको गुरुदेव जी के निर्देशानुसार कार्यों को करना है। यदि आप यह करने में सफ़ल होते हैं तो वास्तव में ही आप सौभाग्यशाली व्यक्तियों के श्रेणी में गिने जायेंगे और आप सही अर्थों में सफ़ल जीवन जीने में सक्षम बन पायेंगे।
भगवान राम जब वानर सेना के साथ सीता को ढूंढते हुए रामेश्वरम् पहुंचे तो वहां सामने विशाल समुद्र को देखकर पहले तो हतोत्साहित हो गए कि वे किस प्रकार अपनी सेना के साथ लंका तक पहुंच पायेंगे। पर अपने जुझारु होने का सबूत देते हुए उन्होंने निश्चय किया कि उन्हें इस समुद्र को हर हाल में पार करना ही है। इसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम भगवान गणपति का पूजन किया जिससे कि उनके मार्ग में आने वाले सभी बाधाओं का नाश हो सके और वह अपने कार्य में पूर्ण सफल हो सकें। साथ ही उन्होंने नवग्रह पूजन सम्पन्न कर नवग्रहों का बल प्राप्त किया। भगवान राम ने पिफ़र भगवान शिव की स्तुति-पूजन सम्पन्न किया और उन से युद्ध में विजयश्री प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त किया।
भगवान राम जब लंका जीत कर वापस आये तो उनका अभिनन्दन अनेक ऋषियों ने किया। ऋषियों ने कहा कि भगवान शिव की पूजन व स्तुति करनी चाहिए। भगवान राम ने तब रामेश्वर शिवलिंग को स्थापित कर उसका पूजन किया और ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति प्राप्त की। हमारे भी सांसारिक जीवन में विशाल समुद्ररूपी अनेक-अनेक समस्याओं के समाधान के लिये ऐसे ही दिव्य चैतन्य तीर्थ स्थल पर विशेष साधना करने से रामेश्वरम् तीर्थ मनोकामना पूर्ति में पूर्ण सहायक है जिस प्रकार राम विजयश्री को प्राप्त हुये साथ ही वहीं यह तीर्थ सभी प्रकार के पाप-दोषों का शमन करने वाला भी है।
भगवान श्रीराम द्वारा बनाये गये सेतु से जो परम पवित्र हो गया है, वह रामेश्वरम् तीर्थ सभी तीर्थों तथा क्षेत्रों में उत्तम है। उस सेतु के दर्शन मात्र से संसार-सागर से मुक्ति हो जाती है तथा भगवान विष्णु एवं शिव में भक्ति तथा श्रद्धा की वृद्धि होती है। साधक के तीनों प्रकार के (कायिक, वाचिक, मानसिक) कर्म भी सिद्ध हो जाते हैं। जो भी इस रामेश्वरम् मंदिर में दर्शन, अर्चन, साधना, पूजा करता है वह अपने जीवन के युद्ध में, जितने प्रकार की भी लड़ाइयां उसे इस समाज से और अपने-आप से लड़नी है, उन सब में विजय प्राप्त कर लेगा, क्योंकि भगवान रामेश्वरम् शिव का ही एक चैतन्यमयी स्वरूप है, जो महादेव है, जो पालकर्ता है, जो सृष्टिकर्त्ता है, और जो संहारकर्त्ता भी है, उनकी उपासना व साधना करना तो जीवन का परम सौभाग्य है।
वेदादि शास्त्रों के आधार पर भगवान शिव का ही एक स्वरूप रामेश्वरम् है, जिनकी साधना करने पर व्यक्ति अपने जीवन के ध्येय को, जिसे पूर्ण करने में वह अक्षम है और जो उसके जीवन का प्रयोजन है, लक्ष्य है, विचारधारा है, पूर्णतः सक्षम हो सकता है। राम द्वारा निर्मित उपास्य देवाधिदेव की साधना से जीवन के सभी पक्षों अर्थात् समस्याओं व विकार युक्त संकीर्ण विचारों सभी पर वह आसानी से पूर्ण विजय प्राप्त कर लेता है और यही तो उसके जीवन की श्रेष्ठता है।
किन्तु इन सब परेशानियों और उलझनों से, इन भौतिक जीवन की जटिलताओं से छुटकारा पाया जा सकता है, तो केवल उन साधनाओं द्वारा, जिसे सिद्ध कर राम ने भी अपने जीवन में विजय प्राप्त की थी और आप भी इस दिव्यतम साधनाओं के द्वारा इन सब भौतिक द्वंद्वों पर पूर्णता के साथ विजय प्राप्त कर सकने में सक्षम हो सकते है।
ऐसे ही दिव्यतम दिवसों पर आने वाले नूतन वर्ष को पूर्ण श्रेष्ठमय बनाने के लिए सद्गुरुदेव के सानिध्य में समुद्र स्नान के बाद सभी अलौकिक दिव्य तीर्थ कुण्डों के जल से साधकों का अभिषेक होगा साथ ही महामृत्युजंय रूद्राभिषेक, नवग्रह चैतन्य युक्त नव चण्डी हवन, विघ्नहर्ता गणपति दीक्षा, काल भैरव दीक्षा, मीनाक्षी धन लक्ष्मी दीक्षा, श्रीसुन्दरेश्वर शक्ति साधना के साथ योगा, प्राणायाम, प्रवचन की श्रेष्ठतम क्रियायें सम्पन्न होगी। पूज्य सद्गुरुदेव की आज्ञा से सर्वथा पहली बार रामेश्वरम् में दीर्घायु जीवन प्राप्ति सर्व सुख धन प्रदाता रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग शिविर का आयोजन 14ए 15 मार्च को सत्संग भवन, गोस्वामी मठ-2, सीता तीर्थ के पास, रामेश्वरम् में सम्पन्न होगा।
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