धन का मानव जीवन में एक आवश्यक स्थान है। आज से हजार साल पहले भी धन की आवश्यकता थी, पच्चीस हजार साल पहले भी धन की आवश्यकता थी, वशिष्ठ को भी थी, विश्वामित्र को भी थी, अत्रि को भी थी, कणाद को भी थी, पुलस्त्य को भी थी, राम को भी थी, कृष्ण को भी थी, आप लोगों को भी है और जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को है, बिना लक्ष्मी के जीवन एक इंच भी आगे नहीं सरकाया जा सकता। निर्धनता अपने आप में एक अभिशाप है। धन के अभाव में आप गाड़ी में नही चल सकते, घर में नहीं रह सकते, हर बार पैसों के लिये तरसना पड़ता है, अपने बच्चों को ढंग से पढ़ा नही सकते, बच्चों की शादी सही ढंग से नहीं कर सकते, समाज में सम्मानीय स्थान प्राप्त नहीं कर सकते, दान नहीं दे सकते, मंदिर नहीं बना सकते, जीवन की उच्चता नहीं प्राप्त कर सकते। फिर जीवन का अर्थ क्या है? जीवन का मतलब, मकसद क्या है?
जिसके जीवन में धन का अभाव होता है, उसको जीवन में कई प्रकार की पीड़ा भोगनी पड़ती है। कहने का तात्पर्य है कि जीवन में व्यक्ति को कई प्रकार के समझौते करने पड़ते हैं, नित्य प्रति तनाव झेलना पड़ता है। पचासों प्रकार के कर्त्तव्य निभाने पड़ते हैं और इन सब कर्त्तव्य का पालन करते हुये साधना मार्ग पर आगे बढ़ने वाला ही वास्तविक जीवन को सही ढंग से जी पाता है। केवल जंगलो में भटकने से अथवा अपने कर्त्तव्यों से मुंह मोड़ना जीवन नहीं कहा जा सकता है। जीवन के कर्म क्षेत्र में रहते हुये, सुखमय, सुन्दर बनाने का प्रयास करते रहना ही तो वास्तविक धर्म है। जीवन को साक्षीभाव से जीते हुये, उसे चलचित्र की भांति देखना और अपने परिवार का पालन पोषण करने वाले का ही जीवन श्रेष्ठ कहा जा सकता है। जीवन का मकसद ही है हर हाल में गरीबी को मिटाना।
श्रावण मास के चैतन्य अवसर पर शिव-लक्ष्मी की चेतना को आत्मसात करने से साधक अपने जीवन में सभी प्रकार की दरिद्रता का जड़मूल से शमन करने में सक्षम होता है। जीवन के प्रत्येक समस्याओं से जूझने की क्षमता से परिपूर्ण होकर अपने लक्ष्यों की तरफ़ बढ़ता ही रहता है। निश्चिंत रूप से शिव-लक्ष्मी शक्ति आपूरित होने पर जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ उत्तरोतर वृद्धि, धन-धान्य-यश, कीर्ति, ऐश्वर्य, समृद्धि) का समावेश होता ही है।
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