जीवन में महान उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिये संघर्ष के अन्तिम छोर तक कार्य करना पड़ता है। क्षण-प्रतिक्षण क्रियारत रहने वाला ही अपने जीवन को महान बना पाता है। इतिहास अनेक महापुरूषों के उदाहरण से भरा है, जो श्वास-प्रश्वास क्रियारत रहें, उनके जीवन का एक भी क्षण व्यर्थ नहीं गया, और ना ही उन्होने कभी स्वः के लिये कार्य किये। इसीलिये मैंने कहा महान उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिये संघर्ष के हद तक कार्य करना पड़ेगा। जहां एक क्षेत्र में परिवर्तन करना कठिन हो रहा है, नित्य नई-नई परिस्थितियां सामने आकर सारे माप दन्डों, सारे मूल्यों को नष्ट सा कर दे रहीं हों, वहां नवीन संरचना करना सरल तो नहीं। प्राचीन मूल्यों को संभालना ही आज की परिस्थिति में कठिन सा प्रतीत हो रहा है। लेकिन जो आत्मबल से परिपूर्ण हैं, जिनकी धमनियों में सद्गुरु निखिल का रक्त प्रवाहित हो रहा है, वे विकटता से नहीं घबरा सकते। वे संघर्ष कर सद्गुरुदेव द्वारा बताये गये महान उद्देश्यों की पूर्ति हेतु क्षण-प्रतिक्षण कार्यरत रहेंगे, ऐसा ही विश्वास है मुझे आप पर।
दायित्व बड़ा है, जिम्मेदारी बड़ी है और सबसे बड़ी बात सभी की अपेक्षाओं पर खरा उतरना, मन के किसी ना किसी कोने में संशय का लघु दीप प्रज्ज्वल होने का प्रयास करता है, पर आपके स्नेह, प्रेम, अपनेपन की शीतलता में उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। क्योंकि जहां आत्मगत सम्बन्ध हों, प्रेम का सम्बन्ध हो, परिवार की शीतलता हो, वहां किसी ज्वाला का अस्तित्व बच ही नहीं सकता और आपका मेरा सम्बन्ध परिवार के सदस्य के रूप में है, परम पूज्य सद्गुरुदेव ने मुझे गुरुतर दायित्व दिया है, उसी रूप में आज अपने मन के विचारों को आपके सम्मुख रख रहा हूं, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी बाते अपनों से ही करता है। सच कहूं तो आपका स्नेह ही मुझे मेरे दायित्व के निर्वाह करने के लिये दृढ़ करता है, मेरा उत्साह वर्धन करता है। मैं अपने दायित्व के निर्वाह के लिये प्रतिबद्ध हूं, सद्गुरुदेव निखिल के जो सपने हैं, वही मेरे जीवन का संकल्प है, उनके महान उद्देश्यों को पूर्ण रूप से स्थापित करना ही एकमात्र मेरे जीवन का लक्ष्य है, उद्देश्य है, जिसको पूर्ण करने के लिये मैं अपने जीवन के अन्तिम सांस तक कार्य करता रहूंगा, इसके लिये मैं पूर्ण रूप से संकल्पित हूं।
हजारों लोगों ने पत्रिका के नवीन संस्करण, रचना के प्रति अपनी प्रसन्नता, विचार, सुझाव पत्र, मेल, फोन द्वारा व्यक्त की और अपनी सहभागिता सुनिश्चित करने के लिये तत्पर दिखे, कई शिष्यों ने व्यक्तिगत रूप से मुझे अपने विचारों से अवगत कराया, विमलेन्दु शेखर (मुजफ्फरपुर, बिहार) ने मेल द्वारा हमें बताया कि पत्रिका के प्रथम पृष्ठ से लेकर अन्तिम पृष्ठ तक प्राणगत चेतना से आपूरित अनुभव हुआ। वास्तविक रूप से सद्गुरुदेव के आदर्शों का विस्तार करने के लिये सैकड़ो-सैकड़ो विचारों, हाथों, सहयोगियों की आवश्यकता है, पाठकों के पत्र उनके विचारों से अवगत कराने का एक सरल माध्यम है, आपकी अपेक्षाओं को पूर्ण करने का, इसलिये आप अवश्य हमें पत्र अथवा मेल द्वारा अपने विचारों से अवगत करायें।
अब समय आ गया जब आपको निर्णय लेना ही होगा, आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप प्रति माह एक नया पत्रिका सदस्य अपने पत्रिका परिवार से जोड़ेगें, आपको इसके लिये संकल्प लेना होगा और मैं जहां तक समझता हूं, यह इतना भी कठिन नहीं है जिसे पूर्ण करने में आप समर्थ ना हों, मुझे आप पर अविश्वास तो हो ही नहीं सकता, केवल और केवल आपसे अपने मन की बात कहनी थी सो कही, मुझे आप सभी शिष्यों पर पूर्ण विश्वास है क्योंकि सद्गुरुदेव निखिल ने आपको अपनी प्राणश्चेतना से सींचा है और परम पूज्य सद्गुरुदेव ने अपना तिल-तिल जलाकर आपकी देख-भाल की है, जिस प्रकार एक छोटे से पौधे के आस-पास उगे खर-पतवार की निराई करने पर ही वह पूर्ण रूप से विकसित होकर विशाल वृक्ष बन पाता है। उसी प्रकार पूज्य सद्गुरुदेव ने भी निखिल रूपी सभी पौधों के आस-पास इकठ्ठे हुये खर-पतवार की जुताई, निराई कर उन्हें विशाल वृक्ष के रूप में विकसित किया है, अब तो उन वृक्षों का कर्तव्य है कि वे अपनी छांव तले जनमानस को शीतलता प्रदान करें।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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