सौन्दर्य अर्थात् सुन्दरता एक ऐसा तत्व है, जिसे आप उपेक्षित नहीं कर सकते हैं, उसमें तो एक ऐसा आकर्षण होता ही है, कि मन रोकते हुये भी नहीं रुकता, यह केवल शरीर के माध्यम से ही नहीं पूर्ण स्पष्ट हो, बल्कि हाव-भाव, व्यवहार, वाणी, वस्त्र आदि से स्पष्ट हो, पूर्ण रूप से लयबद्ध हो, वाणी में संगीत का अनुभव हो, नेत्रों में ऐसी दृष्टि हो, जो हृदय के भीतर समा जाये, यही तो सौन्दर्य का आकर्षण है, जीवन की जो सौन्दर्य के प्रति स्वाभाविक प्रकृति है, वह रोकने पर भी नहीं रूकती, तो उसे झूठे बन्धनों से क्यों जकड़ा जाये?
जीवन में हास्य, विनोद, आनन्द व तृप्ति प्राप्त हो जाना कोई सामान्य सी बात नहीं है, यह तो जीवन की श्रेष्ठतम उपलब्धि है, जिसे प्राप्त करने के लिये बड़े-बड़े योगियों और ऋषि मुनियों ने कठिन से कठिन तप किये हैं, तब जाकर वे पूर्ण कहलाये और यह दिखा दिया कि यदि व्यक्ति दृढ़ निश्चयी और आत्मविश्वासी हो, तो वह तप व साधना के बल पर क्या कुछ कर पाता और जब ऐसा होता तो उसके चेहरे पर एक ओज, एक उमंग, एक आह्लाद, एक प्रसन्नता स्वतः ही झलकने लग जायेगी और यही तो वास्तविक सौन्दर्य है।
सौन्दर्य किसी नारी, अप्सरा या प्रकृति का नाम नहीं है, वे तो केवल सौन्दर्य के प्रतिमान हैं, जिन्हें देखकर आप अपने आप को चिंता मुक्त अनुभव करने लगे और आनन्द की स्थिति उत्पन्न होने लगे, सही अर्थो में वही सौन्दर्य है। सौन्दर्य तो आधार है जीवन का, ईश्वर का दिया हुआ वरदान है, जिसका प्राप्त होना जीवन की श्रेष्ठता, पूर्णता कही जाती है। जितने भी ग्रन्थ, वेद, पुराण, आदि लिखे गये हैं, उन सब में सौन्दर्य का विस्तृत विवेचन हुआ है। सुन्दर होना, सुन्दर दिखना, सुन्दरता की प्रशंसा और सराहना करना मानव का धर्म है। मैंने अपने जीवन में सिद्धाश्रम में अर्निघ्न सुन्दर साधिकाओं और संन्यासियों को देखा है, एक से बढ़कर एक सुन्दरियों व अप्सराओं को भी साधनारत होते देखा है, जो अपनी देहयष्टि को पूर्ण यौवनवान और चैतन्यवान बनाये रखने के लिये साधनारत रहती हैं।
निश्चित रूप से साधना के द्वारा अनिन्द्य सौन्दर्य प्राप्त किया जा सकता है, अप्सरायें भी सुन्दरतम् बनने के लिये सौन्दर्य साधना करती हैं। सौन्दर्य साधना एक ऐसी अद्वितीय साधना है, जिसे अप्सराओं ने भी सिद्ध किया। वैसे तो पूर्ण यौवनवान और सौन्दर्यवान बनने के लिये 16 प्रकार की अप्सराओं की साधनाओं का ही महत्व पुराणों में प्रतिपादित किया गया है, किन्तु जिसे प्राप्त करने के लिये स्वयं अप्सरायें भी लालायित हों, उस सौन्दर्य की तो मात्र कल्पना ही की जा सकती है और ऐसे अद्वितीय सौन्दर्य का प्राप्त होना, जीवन का सौभाग्य है, जीवन की श्रेष्ठता है, जीवन की सम्पूर्णता है।
चन्द्रमा की चांदनी और सौन्दर्य जीवन में जिस आनन्द का एहसास देता है, वह तो अद्भुत ही है। शरद की चांदनी ही वह अवसर होता है, जब मन के अरमानो में पंख लगने शुरू होते हैं। एक-दूसरे में समा जाने के लिये प्रयास करने लगते हैं। इच्छा होती है कि आसमान की सभी चांदनी अपने प्रियतम पर ही न्यौछावर कर दूं। यही एहसास लेकर तो आता है, यह शरद पूर्णिमा।
जीवन में चन्द्रमा की शीतलता, वैसा ही मधुर सौन्दर्य, जिसे देखने को हर कोई लालयित हो और साथ में हो उसके जैसी ही चंचलता जो सभी को मदहोश कर दे। इन्हीं एहसासों को संजोये हुआ होता शरद पूर्णिमा की चांदनी।
जीवन में सौन्दर्य-आकर्षण के साथ ही साथ शीतलता, ओज, तेज, आनन्द, सभी को अपने वशीभूत् करने की तीव्र चेतना होनी ही चाहिये। तभी तो जीवन में शीतलता और शांति की पूर्णिमा आती है।
सौन्दर्य, आकर्षण, वशीभूत करने की चेतना, शीतलता, चांद की तरह ही चेहरे पर मंद-मंद ओज इन सब के संयोजन से ही जीवन में पूर्णता का भाव आता है और इन सब की पूर्ति करती है सौन्दर्योत्तमा पूर्णत्व शक्ति साधना। जिसे सम्पन्न कर सौन्दर्य की सभी परिभाषायें सार्थक होती हैं। इस साधना से सौन्दर्य, आकर्षण की वृद्धि तो होती है, साथ ही एक अलग ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है, जिसमें सौन्दर्य के साथ-साथ शीतलता और ओज का समावेश होता है, जिसे पूर्ण सौन्दर्य कहा गया है।
सभी की यही इच्छा होती है, कि उसका व्यक्तित्व जनमानस से भिन्न हो, सभी लोग उसके व्यक्तित्व, सौन्दर्य से प्रभावित हुये बिना ना रह सके। समाज में उसकी अलग ही पहचान हो, वह समाज में प्रतिष्ठित हो और सहयोगियों के बीच उसका सम्मान हो व उसके सभी कार्य सरलता से सम्पन्न हो सके। इस साधना द्वारा ये सभी मनोकामनायें अवश्य ही पूर्ण होती हैं, यह निश्चित है।
साथ ही इस साधना द्वारा गृहस्थ जीवन में आनन्द का वातावरण बनता है। पति-पत्नी के मध्य मधुर प्रेम स्थापित होता है। कन्याओं के विवाह में आ रही बाधाओं का निवारण होकर शीघ्र ही विवाह सम्पन्न होता है। क्योंकि इस साधना के द्वारा हमारा व्यक्तित्व ही कुछ इस तरह परिभाषित होता है कि लोग हमसे जुड़ने के लिये लालायित रहते हैं। इस साधना को प्रत्येक गृहस्थ व्यक्तियों, विवाह के लिये प्रयासरत पुरूष-स्त्री और अपने व्यक्तित्व से निराश लोगों को अवश्य सम्पन्न करनी चाहिये, क्योंकि यदि पुरूष में पूर्ण पौरूषता ना हो और स्त्री में स्त्री तत्व ना हो तो पुरूष-स्त्री होने का कोई तात्पर्य नहीं है।
इस साधना को स्त्री व पुरूष दोनों ही सम्पन्न कर अपने शरीर का पूर्ण कायाकल्प कर सकते हैं, जहां पुरुष यह साधना कर ऊंचा कद, उन्नत ललाट, अत्यधिक दिव्य और तेजस्वी आंखे, लम्बी भुजायें और उसके साथ ही साथ दृढ़ता, पौरूष, साहस प्राप्त कर ऐसे सौन्दर्य का मालिक बनता है, जो दर्शनीय हो, शोर्य और साहस का प्रतिबिम्ब हो, वहीं स्त्रिया भी सांचे में ढ़ला हुआ भरा-पूरा शरीर, गोरा रंग, अण्डाकार चेहरा, एक ऐसा शरीर जो खिले हुये गुलाब के पुष्प की याद दिलाता हो, जिसे देखकर बहते हुये झरने का लुभावना नृत्य दिखाई दे, जिसके एहसास से ही जीवन में आनन्द की अनुभूति होती हो, प्राप्त कर लेती है।
शारदीय पूर्णिमा की चेतना से युक्त दिवस पर ऐसे दिव्यतम साधना को सम्पन्न कर व्यक्ति अपनी इन मनोकामनाओं को पूर्ण कर सकता है। क्योंकि यह साधना जहां एक ओर सौन्दर्य, आकर्षण की पूर्ति करती है, वहीं शीतलता, ओज, तेज और प्रभावशाली व्यक्तित्व की भी प्राप्ति होती है।
शरद पूर्णिमा 15 अक्टूबर को रात्रि 08:45 से 11:30 के मध्य स्नान कर सफेद वस्त्र धारण करें। और पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख कर सफेद आसन पर बैठकर यह साधना सम्पन्न करनी है।
अपने सामने एक चौकी बिछा कर, उसके ऊपर एक कपड़ा बिछा लें, पानी से भरा एक कलश रखें, उसके ऊपर एक प्लेट में चावल को हल्दी से रंग कर कलश के ऊपर रख दें। इसके बाद सौन्दर्य यंत्र को स्वच्छ जल से धोकर पोछ लें, और यंत्र पर इत्र छिड़क दें तथा अपने ऊपर भी इत्र छिड़कें, धूप व दीप से वातावरण को सुगन्धमय बनायें। यंत्र को पीले चावलों के ऊपर स्थापित करें, इसके बाद यंत्र पर पांच बिन्दी लगायें, जो पांच प्राणों की प्रतीक है, क्योंकि सौन्दर्य का प्रतिस्फुरण इन्हीं प्राणों के माध्यम से शरीर में अभिव्यक्त होता है।
अब शारदीय शक्ति मुद्रिका को भी यंत्र पर स्थापित कर एक बिन्दी लगायें साथ ही धूप, दीप से पूजन करें। फिर निम्न मंत्र का सौन्दर्य शक्ति माला से 11 माला जप 2 दिन तक करें।
साधना समाप्ति के बाद 1 माला गुरु मंत्र का जप साधना के फल प्राप्ति हेतु करें, पश्चात् सभी साधना सामग्री को किसी नदी में प्रवाहित कर दें।
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