प्रायः सभी ग्रह मानव जीवन को अपनी सामर्थ्य अनुसार प्रभावित करते हैं। लेकिन कोई एक ग्रह सर्वाधिक बली होने के कारण व्यक्ति पर अपना पूर्ण प्रभाव रखता है अर्थात् व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का प्रतिनिधित्व करता है।
यह बात न केवल सिद्ध हो चुकी है, कि सम्पूर्ण जगत कुछ विशेष नियमों-उपनियमों से बंधा है, प्रत्येक मनुष्य के जीवन में जो विशेष घटनायें घटित होती हैं, उन पर ग्रहों का प्रभाव निश्चित रूप से होता है, प्रत्येक ग्रह का पृथ्वी पर रहने वाली प्रत्येक वस्तु के साथ जो आकर्षण-विकर्षण ग्रहों के प्रभाव से बनता है, उसके प्रभाव से कोई भी बच नहीं सकता।
वर्तमान जीवन में क्यों समस्यायें इतनी अधिक भीषण और कष्टकारी हो गयी हैं, धोखा-धड़ी, रोगो में वृद्धि, असफलता, मानसिक अशांति इत्यादि घटनायें तो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का अंग ही बन चुकी है। बुद्धि तो बढ़ती ही जा रही है, फिर भी समस्यायें सुलझने के बजाय उलझती ही जाती हैं। इन सबका मूल कारण ग्रहों की उपेक्षा ही है, हमने उस आधार भूत तथ्य को ही छोड़ दिया है, जो कि जीवन की गति को निर्धारित करता है, पल-पल जिन ग्रहों का प्रभाव हमारे जीवन की प्रत्येक घटना, मन, विचार पर पड़ता है, वातावरण जिन ग्रहों से सर्वाधिक प्रभावित है, उसे ही छोड़ दिया है।
समस्त ग्रह-देवताओं का अलग-अलग अस्तित्व है, सब का प्रभाव क्षेत्र, शक्ति, क्रिया-स्वरूप, इत्यादि अलग-अलग है। और जब पृथ्वी पर स्थिति मानव के क्रिया-कलापों से पर्यावरण प्रभावित हो रही है, तो ग्रह-देवताओं के प्रभाव से आप कैसे इनकार कर सकते हैं? प्रत्येक व्यक्ति के जन्म के समय जैसा नक्षत्र, योग, ग्रह का प्रभाव होता है, उसी आधार पर उसके आगे के जीवन का निर्धारण होता है। ग्रहों के गति के अनुरूप ही उस व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन गतिशील रहता है। आगे नवग्रहों के स्वभाव और उनकी स्थितियों को स्पष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। जो ग्रहों की दशा समझने की दृष्टि से सरल है। जिसके माध्यम से साधक अपने राशि के स्वामी की शुभ स्थितियों को और अधिक सम्बल और बलवान बनाने का प्रयास कर सकता है।
सौर मंडल का प्रमुख ग्रह सूर्य सभी ग्रहों का स्वामी है, जिसके चारों ओर अनेक ग्रह घूमते हैं। सूर्य को काल पुरूष की आत्मा माना गया है।
स्वभाव- ऐश्वर्यवान, सत्यवादी, कीर्तिवान, आरोग्यवान, अधिकार-सम्पन्न, दयालु, नेतृत्व क्षमता, आत्मविश्वासी, गम्भीर एवं प्रतिभा से जातक सम्पन्न होता है।
अशुभ स्थिति- झूठा, कपट से स्वार्थ सिद्ध, अधिकारों का दुरूपयोग करने वाला, अभिमानी, किसी का ना सुनने वाला, विश्वासघाती, जिद्दी व अडि़यल होता है।
सूर्य के बाद चन्द्रमा को ही महत्ता दी जाती है, क्योंकि पृथ्वी से सूर्य के बाद सबसे बड़ा दिखने वाला ग्रह है। चन्द्र को काल पुरूष का मन माना गया है।
स्वभाव- सात्विक, विनम्र, मधुर भाषी, बुद्धिमान, शान्त, समर्थवान, कोमलता, कल्पनाप्रियता, अनुभूतियों और भावनाओं को क्रियात्मक एवं रचनात्मक रूप देना, नेतृत्व प्रिय, भम्रणशील, राज भक्त एवं स्वस्थ होता है।
अशुभ स्थिति- तामसिक, चंचल, क्रूर, हठी, विश्वासघाती, स्वार्थी, लालची, आलसी, रोगी, स्त्री से शासित एवं सामाजिक नहीं हो पाता है।
पृथ्वी का निकटवर्ती ग्रह मंगल लाल रंग का होने के कारण युद्ध का देवता कहलाता है, मंगल को काल पुरूष का पराक्रम माना गया है।
स्वभाव- शान्त, धैर्यशाली, दयालु, भला करने वाला, साहसी एवं धार्मिक होता है। नेतृत्व की क्षमता प्रबल होती है और अपनी इसी बात पर अडिग रहता है।
अशुभ स्थिति- क्रोधी, चुगलखोर, झूठा, दुष्ट, कठोर, कामुक, झगड़ालू, लालची, कपटी होता है। ऐसा व्यक्ति स्वार्थ के लिये दूसरो को हानि व बदला लेने के लिये हिंसक, अन्यायी व अधर्मी बन जाता है।
सौर मंडल का सबसे लघु और चमकदार ग्रह बुध सूर्य के अत्यन्त निकट है। यह सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले आकाश में दृष्टिगोचर होता है। सूर्य का निकटवर्ती ग्रह होने के कारण इसे सूर्य का सहायक कहा जाता है। बुद्ध को काल पुरूष की वाणी और बुद्धि माना गया है।
स्वभाव- बुद्ध प्रकृति प्रेमी, काव्य-संगीत में रूचि, हंसमुख, विनोदी स्वभाव, द्विअर्थी भाषा का प्रयोग एवं जैसा देश वैसा भेष के अनुसार स्वभाव बदलने में माहिर होता है, बुध प्रभावी व्यक्ति के प्रत्येक गतिविधि में प्रसन्नता टपकती है, नम्र, विनीत, आत्मविश्वासी, हाजिर-जवाब होने के साथ- साथ चतुर भी होता है।
अशुभ स्थिति- मंगल के संगत में झूठा और कुटिल हो जाता है, शनि के संसर्ग में वाकपटुता नहीं रहती है। पाप ग्रहों के प्रभाव से निरंकुश, स्वेच्छाधारी, विलासी, मद्यपान का शौकीन एवं स्वभाव से जिद्दी एवं चिड़चिड़ा हो जाता है।
सौर मंडल का वृह्द और ज्वलन्त ग्रह गुरु गौर से देखने पर पीला प्रतीत होता है। गुरु ग्रह को काल पुरूष की त्वचा माना गया है, वक्ष स्थल पर इसका विशेष प्रभाव है।
स्वभाव- गुरु ग्रह वाकपटु, सद्गुणी, ज्ञानी, विवेकी एवं मानवता प्रेमी होता है गुरु में विचार करने की शक्ति अधिक होती है, इसका चित्त स्थिर होता है। गुरु चन्द्रमा के साथ राजसिक व स्वेच्छाकारी सूर्य के साथ सात्विक, गुरु प्रसन्नता, सुख व समृद्धि का प्रतीक है, पर शुभ स्थान पर न हो तो धन कम कर देता है।
अशुभ की स्थिति- मंगल के साथ तामसिक, बुध व शुक्र के साथ अनिष्ट विरोधी स्वभाव बना लेता है।
सर्वाधिक चमकीला ग्रह शुक्र दूरबीन से देखने पर सफेद प्रतीत होता है। शुक्र ग्रह काम का कारक है।
स्वभाव- कामेच्छा का प्रतीक है और धातु रूप में वीर्य का पोषक है। स्त्री-पुरूषों के जनन अंगों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। शुक्र पूर्णतः सांसारिक ग्रह है। यह राजसिक, सर्वगुण सम्पन्न एवं समर्थवान है। शुक्र से भोग, कामना और इच्छा आदि भावो की अभिव्यक्ति होती है। शुक्र में काव्यात्मक और कलात्मक अभिरूचि है। आकर्षण और सौम्यता के द्वारा वश में करने की शक्ति है। यह मिलनसार और सामाजिक है, आमोद-प्रमोद, मौज-मस्ती एवं भोग इसके पुरूषार्थ का फल है। यह सहयोग और समानता का बोध कराता है। शुक्र शान्तिप्रिय एवं मैत्री सम्बन्ध बनाने वाला ग्रह है। इसकी प्रवृत्ति रचनात्मक है, शुक्र कामना, इच्छा व भोग का स्वामी है।
अशुभ की स्थिति- शुक्र मंगल के साथ उन्मादी व अति कामुक हो जाता है, प्रशंसा की इच्छा बढ़ जाती है।
शनि सौर मण्डल का सबसे सुन्दर ग्रह है। शनि ग्रह को काल पुरूष का दुख माना जाता है। सूर्य प्रकाश है तो शनि अधंकार, सूर्य जीवन तो शनि मृत्यु, शनि स्त्री-पुरूष के स्नायविक मण्डल पर विशेष प्रभाव डालता है।
स्वभाव- शनि का सम्बन्ध जीवन के क्रिया-कलाप और उसके परिणाम से है। कर्म बिना गति संभव नहीं। गति के मापदण्ड समय है और भूतकाल की क्रियाओं का फल वर्तमान में मिलता है, इसलिये शनि काल का प्रतिनिधित्व करता है। शनि भाग्य का प्रतीक है। शनि का सम्बन्ध जीवन के यम-नियमों, नैतिकता और अनुशासन से है, शनि कुपित होने पर सुख-चैन, खुशी, आनन्द समाप्त कर देता है। दरिद्रता, दुख, कष्ट, कठिनाईयां, बाधायें आदि देकर प्रताडि़त करता है।
अशुभ की स्थिति- शनि का मंगल के साथ सम्बन्ध होने पर व्यक्ति क्रोधी, चिड़चिड़ा, हठी हो जाता है। बुध के साथ निर्लज्ज हो जाता हैं, चन्द्र के साथ शनि का सम्बन्ध होने पर मानसिक अस्थिरता, मानहानि, पतन तथा धन की हानि होती है। सूर्य के साथ रहकर व्यक्ति को स्वार्थी, शंकालु और हीन भावना से ग्रस्त कर देता है। शुक्र के साथ होने पर यह व्यक्ति को उदासीन, खिन्न और आत्मघाती बना देता है।
राहु काल पुरूष का दुःख माना गया है। किसी भी वस्तु या पदार्थ को गति देकर फिर गतिहीन कर देना, कार्य शुरू करके पुनः छोड़ देना, ऐसे भावों का प्रतिनिधित्व राहु करता है। घबराहट, उलझन, परेशानी, असमंजस, जटिलता, समस्या आदि भाव इसमें निहित हैं। वह बल, शक्ति, सामर्थ्य प्रचण्डता, आवेग, क्रोधोन्माद, उत्तेजना, आवेश, हिंसा आदि भावों की अभिव्यक्ति भी करता है। राहु को मानसिक उत्तेजना, कामनाओं व लालची प्रवृत्ति के कारण अनेक बाधाओं व कष्टों का सामना करना पड़ता है।
अशुभ की स्थिति- राहु का मंगल के साथ संबंध हो तो व्यक्ति अविवेकी, चिड़-चिड़ा, आलसी और कामुक होता है। शुक्र के साथ संबंध होने पर चंचल, अस्थिर और विलासी होता है। सूर्य से संबंध होने पर संतान चिन्ता से ग्रसित व राजदण्ड का भय रहता है।
केतु काल पुरूष रूपी है। केतु ग्रह के सिर नहीं है, सिर्फ धड़ है। केतु ग्रह लम्बा, हृष्ट-पुष्ट व धूम्र वर्ण का ग्रह है। आत्मवादी, सहिष्णु और धैर्य शाली है। गहरे ध्यान में बैठने की सामर्थ्य रखता है। इसकी क्रियायें यान्त्रिक हैं, इसीलिये केतु ग्रह अन्य ग्रहों की तुलना में सर्वाधिक रहस्यवादी है।
स्वभाव- केतु की प्रकृति में अचानक उन्नति या अवनति, अपमान, दुर्घटना, पदच्युति, घबड़ाहट, उलझन, आर्थिक तंगी और उत्साह हीन करना है। विश्वासघाती, हृदयहीन एवं कृतघ्न बना देता है। यह ग्रह अचानक बहुत कुछ देता है तो अनायास ले भी लेता है। यह व्यवधान और रूकावट लाना अपना कर्तव्य समझता है।
अशुभ की स्थिति- केतु का मंगल के साथ सम्बन्ध हो तो व्यक्ति क्रोधी, कपटी, चंचल, कठोर, सहनशील एवं भोग-भीरू होता है। चन्द्र से सम्बन्ध हो तो अस्थिर मन, क्लेश, माता को कष्ट और पिता या मित्र से दुःख होता है।
बुध से सम्बन्ध हो तो क्रूर, वाद-विवाद करने वाला, गैस्ट्रिक ट्रबल से ग्रस्त होता है। शुक्र ग्रह से सम्बन्ध हो तो व्यक्ति आलसी, निराश व कुटुम्ब विरोधी होता है। शनि ग्रह से सम्बन्ध हो तो आर्थिक तंगी व उदर रोग से पीडि़त होता है।
इससे स्पष्ट होता है कि व्यक्ति के जीवन की अनेक परिस्थितियां ग्रहों की गति पर निर्भर करती हैं, प्रत्येक अच्छी-बुरी घटना ग्रहो के योग पर ही घटित होता है, ग्रहो के शुभ होने पर व्यक्ति सफलता के उच्च शिखर पहुंचता है, सभी भौतिक सुख भोगता है, लेकिन अशुभ होने पर भिखारी से भी बदतर स्थितियों का सामना करना पड़ जाता है। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि अशुभ स्थितियों के प्रभाव को क्षीण नहीं किया जा सकता। साधना और दीक्षा के माध्यम से साधक ग्रहों की अशुभ स्थितियों को अनुकूल ही नहीं बल्कि उनके राशि स्वामी के गुणों को सबल और वृद्धि भी करने में समर्थ हो जाता है।
इसलिये नववर्ष के प्रारम्भ में ही ऐसी विशिष्ट साधनायें सम्पन्न कर वर्ष भर की अनेक अशुभता से रक्षात्मक उपाय करना आवश्यक हो जाता है। जिससे साधक वर्ष भर बिना किसी बाधा, अवरोध के जीवन में प्रगति की ओर अग्रसर हो सके। यदि जीवन में बाधायें ही ना हों, तो सफलता सुनिश्चित होती ही है। यदि नवग्रहों को ही अनुकूल कर लिया जाये तो अनेक विपरीत परिस्थितियां हमारे जीवन में दृष्टिगोचर होने से पूर्व ही समाप्त हो जायेंगी।
इसलिये वर्ष प्रारम्भ करते ही इस विशिष्ट नवग्रह शान्ति सर्व लाभ वृद्धि साधना को सम्पन्न करना प्रत्येक साधक के लिये अनिवार्य ही है। इस साधना के द्वारा साधक के सभी शत्रु समाप्त होते है, बाधाये, कष्ट, रोग से मुक्ति मिलती है, व्यापार, धन आदि में निरन्तर वृद्धि, साथ ही सभी आकस्मिक घटनाओं से रक्षा होता है। जिससे साधक अपने जीवन को और अधिक प्रभावशाली और प्रगतिशील बनाने मे समर्थ हो जाता है।
01 जनवरी 2017 दिन रविवार को सांय 08 बजे के पश्चात् स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर अक्षत से नौ ढ़ेरियां बनायें, प्रत्येक ढ़ेरी पर एक-एक सुपारी स्थापित करें, ये नौ सुपारी नवग्रहो के स्वरूप है।
एक ताम्रपात्र में स्वस्तिक बनाकर उस पर नवग्रह दोष निवारण यंत्र व सर्व लाभ वृद्धि कवच स्थापित करें, इसके पश्चात् सुपारी, यंत्र व कवच का पंचोपचार पूजन सम्पन्न कर नवग्रह मंत्र का आधा घंटा जप करें-
जप पश्चात् यंत्र को पूजा स्थान में स्थापित कर दें और सर्व लाभ वृद्धि कवच को गले अथवा बांह में धारण कर लें, यह कवच पूर्ण मंत्र-प्राण प्रतिष्ठित है, जिसके धारण से सभी ग्रहों की अशुभता से रक्षा होती है, साथ ही जीवन के हर क्षेत्र में शुभ-लाभ, रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति संभव होती है।
ग्रहों की प्रत्येक शुभ-अशुभ स्थिति का निश्चित रूप से हमारे जीवन में प्रभाव पड़ता ही है, यदि राशि स्वामी की दशा ठीक ना हो तो राजा को भी रंक बनने में समय नहीं लगता, इन पापी ग्रहों की कोप दृष्टि के कारण सम्पूर्ण जीवन ही नारकीय पशुवत् बन जाता है, इसलिये व्यक्ति प्रत्येक कार्य में नवग्रह पूजन आवश्यक रूप से करता ही है, क्योंकि यदि नवग्रहों की अनुकम्पा बनी रहे तो सुस्थितियों का निर्माण अपने आप होता ही रहता है, अड़चन, बाधा, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती ही है। जिससे साधक अपनी सभी मनोकामनायें पूर्ण करने में सक्षम होता है। साधक को स्वयं यह आत्मचिंतन करना चाहिये कि उस पर किस ग्रह की कौन सी दृष्टि किन रूपों में है।
नवग्रहों के कोप दृष्टि, राहु वक्री, शनि की साढ़ेसाती आदि परिस्थितियों से जीवन की रक्षा और अभिवृद्धि हेतु नवग्रह शांति सर्व लाभ वृद्धि दीक्षा ग्रहण करें, जिससे आपके जीवन के सभी ग्रह दोष समाप्त होंगे और इस नववर्ष के अभ्युदय के क्षण से ही शुभ-लाभ रिद्धि-सिद्धि युक्त शिव गौरी सद्गुरुदेवमय तेजपुंज चेतना आत्मसात कर सकेंगे। ऐसे चेतनामय भाव से नववर्ष प्रारम्भ कर आप निश्चित रूप से जीवन की प्रत्येक स्थिति में विजय प्राप्त कर वर्ष भर श्रेष्ठ सफलता अर्जित करने में सफ़ल होंगे तथा धन, धान्य, सौभाग्य, वैभव, आरोग्य, दीर्घायु जीवन की प्राप्ति होगी।
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