जीवन के दो पक्ष हैं, एक पक्ष भौतिक है, तो दूसरा आध्यात्मिक, दोनों पक्षो के पूर्ण सामंजस्य पर ही मानव जीवन सार्थक हो सकता है। वर्तमान की स्थिति का यदि आकलन करें, तो 90 प्रतिशत लोग किसी एक पक्ष से आन्तरिक जुड़ाव बना पाते हैं। अधिकतर लोग इस परीक्षा में फेल हो जाते हैं। क्या कारण है? आपने कभी विचार किया, कभी आपने एक-दो सप्ताह, माह इस चिंतन में व्यतीत किया कि किस विधि से जीवन के दोनों पक्षो में सामंजस्य बनाया जाये। बड़ी कठिन प्रक्रिया है, यह मैं भी भली-भांति जानता हूं, लेकिन यह कहता हूं, कि प्रत्येक अनमोल रत्न को प्राप्त करने के लिये इन्हीं कठिनाईयों से गुजरना पड़ता है। तभी परमात्मा द्वारा निर्मित इस देह को मनुष्यता के अलंकारो से विभूषित कर सकते हैं। अभी तो हम केवल पंच तत्व युक्त देह हैं, मनुष्य तो हम तब बनेंगे, जब हमारे जीवन में जप-तप, यम-नियम का पूर्ण पालन हो और भौतिक जीवन की सात्विक समरसता भी।
परन्तु अधिकतर व्यक्तियों का इस ओर ध्यान ही नहीं जाता, वे किसी एक पक्ष को लेकर ही आगे बढ़ना चाहते हैं। इस ओर ध्यान ही नहीं देते। यही कारण है कि जीवन के अनेक विसंगतियों में हमारा जीवन उलझा हुआ है। यदि हम इस तथ्य की ओर ध्यान दे, चिंतन-मनन करें। तो बहुत कुछ व्यवस्थित हो सकता है। लेकिन उसके पूर्व हमें कठिन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ेगा। कुछ ठोस निर्णय लेना पड़ेगा और उस निर्णायक भाव-भूमि पर खड़े होकर अपनी क्षमता व प्रकृति का मूल्यांकन कर जीवन की रूप-रेखा रेखांकित करनी होगी। निर्णय लेने का साहसिक क्षमता हमें अपने अन्दर विकसित करनी पड़ेगी। साथ ही सफलता और असफलता की जिम्मेदारी भी हमारी ही होगी। अधिकतर लोग असफलता की जिम्मेदारी किसी और के सर फोड़ते हैं। जो कि अनुचित, असंवैधानिक है। यदि सफलता के कारण हम हैं, तो असफलता भी हमारे ही किसी कार्य के कारण हुयी होगी। हमारे ही साधन, संसाधन, परिश्रम में किसी न्यूनता के कारण हुआ होगा। किसी भी निर्णायक कदम के पूर्व अपार साहस, जोखिम लेने की क्षमता हमारे अन्दर होनी चाहिये। साथ ही यह जज्बा हो कि सफलता के अन्तिम छोर तक जाना ही है हमें, और तब तक परिश्रम करना है, जब तक सफल नहीं हो जाते।
असंभव को संभव कर दिखाने वाली शक्ति सिर्फ आत्मविश्वास ही है। लेकिन कितने दुर्भाग्य की बात है कि हम अपना मूल्य विजय से नहीं पराजय से आकते हैं। हम विजय को कोरा स्वप्न ही मान लेते हैं और वास्तविक जीवन का अंग नहीं समझते। हम अपनी शक्ति की अपनी कमजोरी से तुलना करते हैं। जबकि ईश्वर ने इन्सान को भय या निराश का अभिशाप नहीं दिया बल्कि शक्ति, साहस, स्वास्थ्य और प्रेम का वरदान दिया है। यदि मुनष्य इस वरदान को ठीक से समझ जाये तो आज सम्पूर्ण विश्व में आत्म विश्वास का साम्राज्य हो जाये।
संदेह और अविश्वास से डांवाडोल हृदय जीवन में सफलता के लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ रह जाता है। यह जीवन का अमूल्य सिद्धान्त है कि यदि आप अपनी सफलता पर संदेह करने लगेंगे तो कभी पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं कर सकेंगे। आत्मविश्वास के अभाव में भगवान भी आपकी मदद नहीं कर सकता। सफलता प्राप्त करने के लिये उस पर विश्वास करना आवश्यक है। विश्वास के बल पर ही अब्राहम लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति बना था। अनेकों लोग अपने आत्मविश्वास के बल पर जीवन की ऊंचाईयों पर पहुंचने में सफल हो सके हैं। इसलिये कहता हूं, कि आत्मविश्वास व्यक्ति के लिये संजीवन औषधि है। आत्म-विश्वास सफलता की कुंजी है। विश्वास ही जीवन का निर्माता, सृष्टिकर्ता और संरक्षक है।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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