ये बातें आज के युग में असंभव सी प्रतीत होती है लेकिन उन्हें ही असंभव सी लगती है जिन्होंने कोई अनुभव प्रेम का न किया हो। यदि तुम देखो जब किसी पात्र में जल ऊपर तक भर जायें तब भी उसमें जल डालते रहे तो वह छलकने लगता है अर्थात बाहर निकलने लगता है। इसी प्रकार अश्रु भी हमारे शरीर में, हमारी देह में कोई चीज आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो वह बाहर निकलने लगती है।
अश्रु दो स्थिति में बाहर निकलते है एक तो अधिक दुःख में, जब दुःख इतना हो कि शरीर में समा नहीं सकें तो आंखों के रास्ते बाहर निकलता है और यदि आनन्द इतना अधिक हो कि शरीर में समा नहीं रहा हो तो वह भी आंखों के माध्यम से अश्रुओं के रूप में बाहर निकलता है। भगवान श्री कृष्ण भी अपने बचपन के मित्र के मिलने पर इतने आनंदित हुये कि उनका परमानन्द अश्रुओं के माध्यम से छलक उठा और जब परमानन्द युक्त कोई व्यक्ति होता है तो उसके अश्रु आनन्द के अश्रु होते है।
दुःख के आंसू तो तुम सब देखते ही हो, बहाते ही हो क्योंकि अब तक तुमने केवल छोटे-मोटे दुःखों को ही स्पर्श किया है इन्ही की परिभाषा जानी है आनन्द के अश्रुओं से तुम्हारा परिचय अभी नहीं हुआ है। जिस दिन आनन्द के अश्रुओं से तुम्हारा परिचय होगा, जिस दिन तुम आनन्द युक्त हो जाओगे तो तुम्हारे आंखों से स्वतः करूणा के अश्रु टपक पड़ेंगे। उस दिन तुम्हारा रोना भी सार्थक होगा, जीना भी सार्थक होगा क्योंकि ये आनन्द के अश्रु इसलिये बाहर आते हैं कि दुःख के आंसुओं में तो तुम वाणी के द्वारा बोलकर भी स्वयं को हल्का कर लेते हो लेकिन परम आनन्द को प्राप्त करने पर जो तुम्हें प्राप्त होता है, जो तुम्हें अनुभव होता है उसे तुम व्यक्त नहीं कर सकते ईश्वर द्वारा दिया गया प्रसाद की अभिव्यक्ति तुम वाणी में नहीं कर सकते। उसकी कृपा का बखान करना असंभव है क्योंकि वह होता ही असीम है वह तुम्हारे सम्हालने से संभलता ही नहीं और वाणी से वर्णन हो नहीं सकता तो केवल आंसू ही एक माध्यम रह जाता है। नृत्य भी माध्यम है लेकिन उसकी कृतज्ञता में अश्रु निकलते ही है। वाणी से उसे बताकर करना भी क्या क्योंकि उसे तो पता है ही जो-जो उसने दिया। जब दिया ही उसने है तो उसे क्या बताना और दूसरे कोई कुछ समझ नहीं पायेगा क्योंकि यह केवल अनुभव की बात है। तब यह अश्रु तुम्हारे अंदर से निकलेंगे यह तुम्हारी हृदय की पवित्रता के अश्रु होंगे। तुम्हारी पवित्रता की गवाही होंगी तुम्हारी सरलता, निर्मलता के सबूत होंगे और ये आंतरिक अश्रु तुम्हारे बाहरी आंसूओं से भिन्न होंगे। यह तुम केवल स्वयं के अनुभव से जान सकोगे। हो सकता है कि तुम लोग बाहर से रोकर दिखाते हो अथवा तुम्हें भी कोई रोने का नाटक करके तुम्हें ठगने का प्रयास करता हो ऐसा भी होता है।
एक बंदर और मगरमच्छ की दोस्ती हो गई, बंदर नदी किनारे स्थित जामुन के वृक्ष पर रहा करता था और प्रति दिन मगरमच्छ को जामुन तोड़ कर दिया करता था। एक दिन मगरमच्छ कुछ जामुन अपनी पत्नी के लिये घर ले गया उसकी पत्नी ने जामुन खाकर कहा कि जब जामुन इतने मीठे है तो उन्हें प्रति दिन खाने वाले का कलेजा कितना स्वादिष्ट होगा? अतः उसने मगरमच्छ से कहा कि मुझे उस बंदर का कलेजा चाहिये, उसे किसी भी हालत में लेकर आओ अन्यथा मेरा तुम्हारा संबन्ध समाप्त। मगरमच्छ ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी, हारकर मगरमच्छ ने एक योजना बनाई और अगले दिन वह बंदर के पास गया और कहने लगा- दोस्त! तुम प्रति दिन मुझे जामुन खिलाते हो मैं तुम्हें कभी भी कुछ नहीं खिलाता आज मेरी पत्नी ने मुझे बहुत धिक्कारा कि तुम कैसे दोस्त हो? आज अपने दोस्त को घर लेकर आना मैं उसके लिये स्वादिष्ट भोज बनाऊंगी। अतः तुम मेरे साथ मेरे घर चलो लेकिन बंदर ने मना कर दिया तब मगरमच्छ आंसू बहा-बहा कर रोने लगा कि मैं कैसा दोस्त हूं जो आज तक अपने दोस्त का ही खाता रहा और उसे कुछ खिला नहीं सका। उसके आंसू देखकर बंदर मान गया कि चलो मैं चलता हूं और कूद कर उसकी पीठ पर सवार हो गया। नदी के बीच में जाने पर मगरमच्छ ने सोचा कि बंदर को सब सच बता दूं अब यह नदी के बीच से कहां भागेगा और मुझे विश्वासघात का पाप भी नहीं लगेगा। मगरमच्छ बोला- अरे बंदर! मैं तुम्हें किसी भोज के लिये नहीं ले जा रहा वो तो तुम्हारी भाभी तुम्हारा दिल खाना चाहती है इसीलिये मैं तुम्हें लेकर आया हूं। बंदर यह सुनकर कांप उठा और तुरंत विचार कर बोला कि तुमने यह बात मुझे पहले ही क्यों नहीं बताई कि भाभी जी मेरा दिल खाना चाहती है। हम बंदर अपना दिल पेड़ पर ही निकाल कर रखते हैं क्योंकि इधर-उधर लंबी छलांग लगाने पर दिल के टूटने का खतरा बना रहता है। अतः तुम वापस चलो तो मैं अपना दिल पेड से उतारकर तुम्हें दे दूंगा। तब मगरमच्छ उसे लेकर किनारे पेड़ के पास पहुंचा और कहने लगा जल्दी से दिल उतारकर दे दो। किनारे आते ही बंदर एक ही छलांग में पेड़ पर चढ़ गया और कहने लगा कि मूर्ख कभी कोई अपना दिल निकाल कर रखता है क्या? तुम वापस लौट जाओ मेरी तुम्हारी दोस्ती आज से समाप्त। तो मगरमच्छ के आंसूओं से सदा सावधान रहना चाहिये।
यदि वैज्ञानिकों से पूछे तो आंसू केवल आंखों को स्वच्छ रखने का उपाय है आंसूओं से आंखे स्वच्छ हो जाती है सब धूल गंदगी निकल जाती है और यह सत्य भी है। तुम देखते हो कुछ लोगों कि आंखे पथरीली सी, कठोर सी दिखाई पड़ती है क्योंकि उसके मन में ये बात घर कर जाती है कि पुरूष रोते नहीं है। केवल रोने का काम स्त्रियों का है और पुरूषों को रोना नहीं चाहिये लेकिन इस स्वयं को रोने से रोकने के अहंकार में, कोशिश में वह अपना हृदय भी कठोर कर लेते है। यदि कहीं दुःख की घड़ी में, किसी दूसरे की अथवा अपनी परिस्थितियों में या अन्य करूण दृश्यों को देखकर स्वयं को रोने से रोकने के अभ्यास में वे अपनी आंखे भी गन्दी कर लेते है। बाहर से पानी से धोने से आंखो का अंदर का मेल थोड़े ही निकल जायेगा। वे आंसूओं से ही बाहर निकलेगा, किसी दिन आंखों में दवा डालें गुलाब जल दो बूंद। आंखों में दो बूंद डालते है लेकिन निकलती है बीस बूंद आंसूओं के रूप में। वे अट्ठारह बूंद आंखों से ही निकलती है क्योंकि दो बूंद दवाई आंखों की ग्रंथियों को उत्तेजित कर अधिक आंसूओं का निर्माण करके आंखों को धो डालते है इसलिये दवा भी आंखों को धोने के लिये अधिक आंसू का निर्माण ही एक माध्यम है। मेरे कहने का यह तात्पर्य नहीं है कि तुम्हारी आंखों में कोई बिमारी हो और तुम दवा न डालो और रोकर ही ठीक करने लग जाओ। बीमारी हो तो दवा करनी ही चाहिये।
यदि तुम्हें कभी रोने का अवसर मिले तो रोना भी अवश्य ही चाहिये क्योंकि तुम रोते हो भाव में तो तुम्हारा हृदय भी द्रवित होगा तो तुम तभी रो पाओगे और तुम्हारा हृदय कमल भी खुलेगा। भावपूर्ण होने पर ही तुम्हारे तृतीय नेत्र पर भी दबाव पड़ेगा। जब तक हृदय पत्थर से फूल न बनेगा आंतरिक रूदन नहीं होगा। आंखों से अश्रुपात कैसे होगा? ईश्वर कैसे तुम्हारी तरफ आकर्षित होगा? कैसे तुम्हारे सामने प्रकट होगा? कौन देवी-देवता की साधना करते रहो जन्म भर तो भी कोई देवी महाविद्या प्रकट नहीं हो पायेगी। रोना तो पड़ेगा और रोना भी कोई ऐसा वैसा नहीं कि रो दिये याद में दो मिनट फिर दूसरे काम में लग गये। प्रति पल उसी के याद में रहना होगा।
इसी प्रकार सभी ईश्वर से साक्षात्कार को प्राप्त हुये रामकृष्ण परमहंस के सरल हृदय के करूण क्रन्दन के कारण तथा उनकी भाव विह्वल चित्कार के कारण भगवती माता काली को उनके सामने प्रत्यक्ष होना ही पडा। ऐसा ही सरल हृदय, पवित्र मन बनाना होगा तो दर्शन सुलभ होंगे, प्रत्यक्ष। वरना करते रहो मंत्र जप, महाविद्यायें शुद्ध भाव चिंतन से प्रकट होती है। कुछ शिष्यों को निखिल प्रत्यक्ष हुये है उनकी पराकाष्ठा रही होगी भक्ति की तभी तो हो पाये सद्गुरु निखिल प्रत्यक्ष।
जहां पर जाकर तुम्हारी आंखे भर जाये किसी से मिल कर तुम्हारी आंखे भर-भर जायें श्रद्धा के कारण, प्रेम के कारण। वह व्यक्ति तुम्हारे लिये संकेत है तुम अपनी कीमती वस्तु भी उसे देने की इच्छा करते हो तो तुम्हारे अंदर शिष्य का भाव पैदा हुआ प्रेम का भाव पैदा हुआ तुम्हारा एक कठोर पुरूष का हृदय न होकर एक कोमल स्त्री का हृदय हुआ तुम्हारे आंखे स्वच्छ हुई तो फिर ईश्वर को, गुरु को भी देर नहीं लगती अपनी कृपा बरसाने में। अक्सर तुम कभी कोई अति सुन्दर या अनमोल वस्तु देखते हो, सुन्दर फूलों का गुलदस्ता देखते हो तो तुम्हारे अंदर से विचार उठता है कि यह वस्तु तो मेरे गुरु के पास होने चाहिये अथवा यह वस्तु मैं अपने प्रेमी को उपलब्ध करा दूं तो कितना अच्छा होगा। यह प्रेम की अभिव्यक्ति तुम्हारा प्रेम भाव ही है क्योंकि जिससे प्रेम किया जाता है उसे दिया ही दिया जा सकता है लिया नहीं। प्रेम में कुछ लेने का भाव आता ही नहीं है। केवल और केवल देना ही है प्रेमी को।
और आंसू सभी कुछ बयां कर देते हैं जो रोना जानता है उसे कुछ कहने की जरूरत भी नहीं क्योंकि उसकी तो आंखें ही सब कुछ कहने में समर्थ है फिर वाणी से कहने की क्या आवश्यकता? तुम विरह में रोते हो ईश्वर की, सद्गुरु की, तो तुम उनकी सामीप्यता प्राप्त कर लेते हो क्योंकि तुम्हारे पास ओर कोई ऐसी पवित्र चीज है ही नहीं सिवाय अश्रुओं के जिसे तुम उनके लिये बहा सको अथवा उन्हें अर्पण कर सको। कोई आरती, कीर्तन, श्लोक आदि भी तुम्हें ईश्वर के अधिक समीप नहीं ला सकेंगे। जितना करीब आंसू ला सकते है क्योंकि तुम्हारे आंसूओं में तुम्हारे हृदय का भाव भी घुला होगा वह केवल और केवल तुम्हारे होते है। ये आरती, कीर्तन, श्लोक, पाठ आदि तो सब किसी किताबों में देख कर या रट कर तुम ऊपर-ऊपर से पढ़ लेते हो केवल कि हो गई पूजा आरती। ये सब तुम दूसरों से सीखकर बोलते हो, करते हो लेकिन जब तुम्हारी प्रार्थना, तुम्हारे आंसू बन कर निकलती है तो वह तुम्हारे हृदय को कंपित करके आती है और उन्हीं कम्पनों से, भाव लहरों से ईश्वर का संबन्ध, गुरु का संबन्ध तुम से जुडता है। आंसूओं से भरी हुई झिलमिल आंखों से ही तुम अपने ईष्ट का, ईश्वर का साक्षात दर्शन कर पाओगे।
और भक्त रोता है, उसके आंसू ही उसकी प्रार्थना बन सकते है और भक्त करे भी क्या? उसके पास और कोई रास्ता भी नहीं है सिवाय आंसूओं के। तुम्हारी यह दो छोटी-छोटी जो आंखे है वह बड़ी करामाती है इनके द्वारा तुम अपने प्रेमी को ईश्वर को भी अपने वश में कर सकते हो। जब प्रार्थना के समय तुम्हारी आंखों से आंसू निकलते है तो केवल उन्हीं अश्रुओं का लेखा-जोखा ईश्वर रखता है। तुम्हारे कथा, कीर्तन, व्रतों आदि का लेखा-जोखा तो शायद ही मिले मेरे विचार से क्योंकि आंसू हृदय की आंतरिक गहराई से शुद्ध भावों के उठने पर ही निकलते है तथा तुम्हारी तरंगों से ईश्वर की तरंग का स्पर्श होता है और तुम्हारी उपस्थिति दर्ज हो जाती है वही तुम्हारे पुण्य का लेखा-जोखा है।
भक्त के रोने पर समाज हंसता हैं क्योंकि समाज के लोगों की नजर में, समझ में यह बात नहीं आती कि वह व्यक्ति किन कारणों से रोता है जैसे रामकृष्ण परमहंस को देख कर लोग हंसा करते थे कि यह तो पागल है, सनकी है, साईको है, महाकाली की मूर्ति के समक्ष खड़े होकर वे बाते करते थे तो उनके हाव-भाव देखकर लोग और अधिक उनका मजाक उड़ाते थे। वे मूर्ति से बातें करते-करते कभी-कभी रूष्टता का भाव लाते प्रसन्न होकर नाचने लगते है। वे कभी मां से मनुहार करते तो कभी झगड़कर मंदिर के कपाट ही बंद कर देते। इन सब क्रियाओं से लोग हंसते थे, उनकी समझ में रामकृष्ण की बातें, क्रियायें नहीं आती थी लेकिन अंदर की बातें तो रामकृष्ण जानते थे या फिर मां काली जानती थी।
आंखे ईश्वर प्राप्ति का एक सशक्त माध्यम है आंखों के माध्यम से ही सद्गुरु अपनी तपस्या का प्रवाह (शक्तिपात) शिष्य के अंदर करते है। तुम स्वयं किसी दूसरे मित्र के साथ अथवा किसी के भी साथ डेढ-दो घंटे एकांत में बैठो और एक दूसरे की आंखों में गहराई से भाव पूर्वक देखने का अभ्यास करो तो कुछ ही देर में तुम्हे बहुत कुछ अनुभव हो सकता है। तुम एक दूसरे के अंदर उतर सकते हो, पहचान सकते हो। जब प्रेम के अश्रु निकलते है तो उनके आगे परम बुद्धिमान व्यक्ति हो अथवा सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी उनकी बुद्धि व ज्ञान एक तरफ रखा रह जाता है यह प्रेम की धारा ऐसी ही विलक्षण है।
भगवान श्री कृष्ण के सखा उनके मित्र उद्धव भी परम बुद्धिमान थे तथा बहुत बड़े ज्ञानी थे, उन्हें भी अपने ज्ञान का बड़ा घमण्ड था। लेकिन प्रेम की शक्ति न जानते थे भगवान ने उन्हें एक बार कहा कि हे सखा उद्धव! ब्रज में मेरी याद में मेरे माता पिता नन्दबाबा व यशोदा मैया है उन्हें जाकर आनन्दित करो तथा वहां की गोप बालाओं को मेरे विरह में जो प्रतिपल तडपती है उन्हें केवल मेरे ही प्रतिमोह है उन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया है उन्हें ज्ञान का उपदेश देकर मेरे प्रति मोह से मुक्त करो। वे गोपियां मेरा स्मरण करते-करते ज्ञानशून्य ही हो जाया करती है तुम तो परम ज्ञानी हो। उद्धव तब कहते है – हे कृष्ण! मैं ब्रज में जाकर उन गोपियों के प्रेम बल को देखता हूँ जो ज्ञान बल को निरर्थक कहती है तथा उन्हें अपने ज्ञान के द्वारा आपके मोह से मुक्त करता हूँ। और भगवान कृष्ण ने उद्धव को एक पत्र मे अपना सन्देश गोपियों के लिये दिया।
उद्धव पहुँचते है ब्रज में और गोपियों में यह समाचार फैलता है कि श्याम का सखा आया है उनका सन्देश पत्र लेकर हमारे लिये। तो वे तो रूक न सकी सभी दौड पड़ी उद्धव की ओर। और उद्धव तो उन गोपियों को योग की दीक्षा देने आये थे तथा श्याम का संदेश पत्र खोलकर उन्हें पढ़कर सुनाना चाहा ही था। गोपियां तो टूट पड़ी उद्धव के हाथों में लिये हुये उस प्रेम पत्र पर। तथा उस ज्ञान के पत्र को (उद्धव की दृष्टि से) टुकड़े-टुकड़े बांट कर अपनी छाती से लगा लिया और आनन्द में झूमने लगी कि इस कागज के टुकड़े पर मेरे श्याम के हाथ लगे है। उनका संदेश इन पर लिखा है। इतना ही हमारे लिये पर्याप्त है। और उद्धव कहते है कि तुमने उस ज्ञान को नष्ट कर दिया है जो मेरे सखा ने तुम्हारे लिये तो दिया ही था आगे भी और के लिये भी वह ज्ञान प्रदान करता लेकिन गोपियों को उद्धव की यह बातें सुनने की कोई सुध नहीं थी। वे तो आनन्द से परिपूर्ण हो भाव विभोर होकर नृत्य कर रही थी। इन्हें देख कर उद्धव के ज्ञान की बातें निरर्थक हो रही थी और उद्धव उन्हें देख-देख कर स्वयं विस्मयचकित हो रहे थे कि यह तो बड़ा उच्च कोटि का प्रेम है। उन्हें देखते-देखते उनके अन्दर भी प्रेम का अंकुर फूट पड़ा और वह स्वयं भी राधारानी तथा गोपियों के दर्शन पा कर भाव समाधि में खो गये। ऐसा आनन्द उन्हें जीवन में कभी नहीं मिला था और वह भी नृत्य करने लगे। उनका ज्ञान, बुद्धि, चिंतन सब एक तरफ रखें रह गये।
इसी प्रकार एक शिष्य भी अपने प्रेम भावनाओं के द्वारा ईश्वर को अपने समीप पा सकता है। गुरु को अपने अंदर समाहित कर सकता है, उनके दर्शन कर सकता है इस के लिये अपने हृदय में प्रेम के अंकुर उपजाने की आवश्यकता होती है उनके लिये अपनी आंखों में कभी अश्रुओं को बहने तो दो तो आप पाओगे कि जो आनन्द अब तक जीवन में नहीं मिला वो सब आप प्राप्त कर रहे हो।
परम पूज्य सद्गुरुदेव
कैलाश चन्द्र श्रीमाली
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,