भगवती तारा अपने साधाक को अभ्युदय प्रदान कर उसके जीवन के दुःख, रोग, तंत्र दोष, धन हीनता, ऋण, संतान अभाव, पाप कर्म व अज्ञानता से अष्ट स्वरूपों में तारती हैं, इसीलिये इन्हें अष्ट तारिणी कहा जाता है। सूर्य ग्रहण के तेजस्वी चेतनामय काल में ऐसी दिव्य ओजस्वी दीक्षा ग्रहण कर निश्चय ही आप जीवन के मुख्य अष्ट विषमताओ से मुक्त होने की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
इस अक्षुण्ण फ़लदायी अवसर पर ऐसी साधनात्मक क्रियायें जीवन में धन-धान्य की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जिससे साधक के जीवन में धन रूपी अभाव का आगमन चिरकाल तक संभव नहीं हो पाता। साथ ही कार्य व्यापार वृद्धि, प्रमोशन आदि कार्य में उच्च स्तर की सफ़लता प्राप्ति होती है।
सांसारिक जीवन में धन की अनिवार्यता उसी तरह हैं, जिस तरह जीवन जीने के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। बिना धन के जीवन निरीह और विवशता से भरा होता है। इस हेतु आप को अवश्य ही सूर्य ग्रहण के दिव्य अवसर पर शुभ-लाभ प्रदायी अष्ट तारिणी तारा महाविद्या दीक्षा ग्रहण करने से अष्ट स्वरूपो में भगवती तारती हैं, जिससे साधक अपने जीवन को उन्नति-प्रगति-वृद्धि को आत्मसात करते हुये सभी भौतिक सुखो का भोग कर पाता है और अपने परिवारिक कर्तव्यों का पालन व आवश्यकताओं की भली-भांति पूर्ति करने से जीवन सुख-समृद्धि, प्रसन्नता व आनन्द युक्त होता है।
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