पारिवारिक जीवन को मधुर बनाने का प्रमुख गुण निःस्वार्थ प्रेम है। यदि प्रेम की पवित्रता से परिवार के समस्त सदस्य संगठित रहें, एक दूसरे की मंगल कामना से सहयोग करते रहें, तो परिवार सकुशल अग्रसर रहता है। वास्तव में परिवार एक पाठशाला है, यह एक ऐसी शिक्षा संस्थान है, जहां हमें सच्चे प्रेम का ज्ञान होता है।
पारिवारिक सुख की वृद्धि के लिये प्रथम आवश्यकता त्याग की होती है। जो पुरुष या स्त्री अपने निजी सुख व स्वार्थो को पूरे परिवार के हित के लिये अर्पित करने के लिये तत्पर रहते हैं, उनका ही पारिवारिक जीवन पूर्णता सफल हो पाता है। परन्तु आज-कल परिवार में आये दिन इस बात का झगड़ा रहता है कि हमें अधिकार दीजिये, नवयुवक-नवयुवतियां तथा अन्य सदस्य अधिकारों की रट लगायें रहते हैं। अधिकार मांगने की प्रवृत्ति परिवार में विखण्डन प्रारम्भ करती है और अंहकार में वृद्धि होता है, अधिकार से युक्त व्यक्ति में जब निजी स्वार्थो की भावना जाग उठती है, तो परिवार की सुख-शान्ति समाप्त हो जाती है। यह निजी स्वार्थ और अंहकार ही वह कारण है कि वर्तमान में प्रत्येक पुरुष अपने से छोटे सदस्यों से अनुचित व्यवहार करता है और कहता है कि यह मेरा अधिकार है। पति-पत्नी व सास-बहू पर अनुचित अधिकार जमाती है। बड़ा भाई छोटे भाई से दुर्व्यवहार करता है।
अधिकार मांगने वाला दूसरे से ही पाना चाहता है, परन्तु वह यह भूल जाता है, कि अधिकार और कर्तव्य साथ-साथ चलते हैं, इसमें प्राप्त करने से पहले प्रदान करना पड़ता है। यही कारण है कि अब परिवारों में सुख-शान्ति नहीं रही। एकाकी प्रणाली पारिवारिक जीवन होने पर भी पति-पत्नी अपने-अपने अधिकारों के लिये लड़ने लगे हैं।
प्रेम, समता, त्याग, समर्पण ये सभी ऐसी दैवी शक्तियां हैं, जिनसे गृहस्थ पारिवारिक जीवन आनन्दमय बन जाता है। जहां पर सभी सदस्य को अपने कर्तव्य का बोध होता है। परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपने-अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते रहना चाहिये। यदि वह अपने कर्तव्य का निर्वाह करता चले, तो स्वतः ही उसका जो अधिकार है, वह प्राप्त होता रहेगा। लेकिन यदि कर्तव्य की बात भूलकर केवल अधिकारों की मांग होगी, तो यह भी निश्चित है, कि वह परिवार, वह गृहस्थी जीवन भर क्लेशों से हमेशा घिरी रहेगी।
सद्गृहस्थ जीवन की भाव-भूमि को जीवन्त, चैतन्य और अपने उत्तरदायित्वों के मूल चिंतन में वृद्धि के द्वारा अधिकार सम्मत होने की साधनात्मक क्रिया सभी विवाहित-अविवाहित युवक-युवतियों सम्पन्न कर अपने जीवन में प्रेम, मधुरता, लगाव, स्नेह से परिपूर्ण हो सकेंगे।
अपने गृहस्थ जीवन का मजबूत आधार और पारिवारिक कुटुम्ब प्रेम की चेतना परम पूज्य सद्गुरुदेव व वन्दनीय माता जी की वैवाहिक वर्षगांठ महोत्सव 06-07-08 जुलाई कैलाश नारायण धाम दिल्ली में जीवन को शिव-गौरीमय बनाने हेतु साधनात्मक दीक्षा, हवन, अंकन आदि सुक्रियाओं द्वारा कलुषितता, दूषितता, कलह, क्लेश, अर्नगल चिंतन, तनाव, असम्मान, मानसिक-शारारीक शोषण आदि विषमतायें भस्मीभूत हो सकेंगी, जिससे परिवार में सुख- शांति, समृद्धि की वृद्धि होगी व जीवन में सर्व आनन्दमय मंगलमय वातावरण का निर्माण हो सकेगा।
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