काम भाव आपसी सम्बन्धों का आधार है लेकिन जब तक इसमें भावनाओं का पूर्ण समावेश ना हो तब तक सम्बन्धा केवल ढ़ोने की क्रिया मात्र ही रह जाते हैं। शारीरिक-मानसिक-आत्मिक रूप से जुड़े सम्बन्धा ही आपसी सम्बन्धों को प्रगाढ़ता प्रदान कर सकते हैं। कामरूपी शक्ति को सही रूप में आत्मसात करना आवश्यक है क्योंकि दैहिक संतुष्टि के साथ-साथ मानसिक-आत्मिक संतुष्टि का होना अनिवार्य है तब ही जीवन में रस, आनन्द, उत्साह और सकाम भाव का संचार होता है।
जीवन में पूर्ण पौरुषता का तात्पर्य है प्रबल व बिजली की तरह कड़कता हुआ व्यक्तित्व, जिसकी आंखें देखकर ही सामने वाले की आंखें झुक जायें। पूर्ण पौरुषता का तात्पर्य है जोश और उमंग, एक ऐसा व्यक्तित्व जो सभी खतरों से जूझने का हौसला रखता हो। जिसमें चुनौती देने व चुनौती लेने का भाव हो। ऐसे प्रबल पौरुष से भरे सौन्दर्य का स्वामी हजारों-हजारों की भीड़ में भी अलग खड़ा दिखाई देता है।
लेकिन आज-कल अनियमित जीवनचर्या, अनर्गल खान-पान के कारण पीलेपन युक्त उदास व निस्तेज चेहरा, असमय बाल पक जाना, आंखों के नीचे गड्ढ़े पड़ जाना, मुस्कराहट ना होना, यह सब सामान्य लक्षण ही बनते जा रहे हैं। जिन्हें देखकर आश्चर्य होता है कि क्या ये वही लोग हैं जो अपने गोत्र का उच्चारण करते समय किसी ऋषि का नाम लेते हैं ? क्या बचा है इन लोगों में उन महानतम ऋषियों का ? कहाँ है उनका वह ओज, कहाँ है उनकी वह उदारता ?
आज का दूषित वातावरण, समय से अत्यधिक पूर्व मिल जाने वाला यौन ज्ञान, चाहे वह सड़क पर लगे पोस्टरों से मिले या फुटपाथ पर फैली किताबों से या टी-वी-, इन्टरनेट, मोबाईल से। असमय ही कुप्रवृत्तियों में लगकर युवा जीवन के उस तत्व को खो देते हैं जिसे पुरुष का ओज कहते हैं, जो कि जीवन का सारभूत तत्व है। जिसके अभाव में व्यक्ति के अन्दर शून्यता ही बचती है, इसी के फलस्वरूप व्यक्ति विवाह के उपरान्त अनेक दुर्बलताओं से ग्रस्त होकर रति क्रिया से संतुष्ट नहीं हो पाता ना ही उसके गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी के मध्य आनन्द का भाव रहता है। यह असंतुष्टि का भाव ही दोनों के लिए गृह-क्लेश और तनाव का कारण बनता है, जिससे जीवन विषाक्त हो जाता है। सौन्दर्य, बल, क्षमता तो ऐसी होनी चाहिए कि आपके चेहरे पर झलकती जवानी की गुलाबी आभा को देखकर कोई भी नारी दीवानी बन जाये और आपके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना ना रह पाये, आपसे बात करने के लिए व्याकुल हो जाये।
रस, आनन्द, उत्साह, काम शक्ति के इस भाव को कामदेव अनंग साधना कहा गया है, जिसे सफलता पूर्वक संपन्न कर व्यक्ति ऊर्जा और शक्ति से युक्त नव यौवन को प्राप्त कर लेता है, पूर्ण पौरुष शक्ति और गठीला शरीर भी पा सकता है। साथ ही यदि वह नियमित रूप से साधना में प्रवृत्त रहे तो इससे शरीर के आंतरिक व बाह्य रूप का कायाकल्प भी होता है।
व्यक्ति के लिये आवश्यक नहीं कि वह अपने ढ़ीले पड़ गये शरीर को पुनः वही जोश व ताजगी देने के लिए आयुर्वेद की जटिल और उबाऊ पद्धतियों में अपना समय खपाये या बाजारू औषधियों के चक्कर में पड़ें या नीम हकीमों के घर के चक्कर लगायें। यद्यपि आयुर्वेद के उपाय भी प्रामाणिक होते हैं किन्तु उन्हें अब पूर्णता समझ कर जीवन में उतारने का धैर्य व्यक्ति में नहीं बचा है। आयुर्वेदिक उपायों में व्यक्ति के शरीर की संरचना के अनुकूल औषधि प्रदान करना भी योग्य वैद्य द्वारा ही संभव है, और कोई आवश्यक नहीं कि आपको अपने स्थान के आस-पास अनुभवी वैद्य मिल ही जाये। इसके विपरीत साधना प्रयोगों में ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती, इसमें किसी भी प्रकार का कोई बन्धन नहीं होता और सामान्य पढ़ा लिखा व्यक्ति भी सफलता पूर्वक इन प्रयोगों को अपना कर अपने जीवन में सुखद व मनोनुकूल परिवर्तन ला सकता है।
जीवन में काम कोई अश्लील स्थिति नहीं है और पूर्ण स्वस्थ पुरुष व स्त्री के मिलन में जिस सुख की उत्पत्ति होती है वह अपने आप में जीवन के मधुरतम क्षण होते हैं। जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण किन्तु प्रायः उपेक्षणीय और अछूते पक्ष को जहां यह साधना पूर्णता से स्पर्श करती है और व्यक्ति को न केवल शारीरिक सक्षम बनाती है सम्बलता भी प्रदान करती है साथ ही उसके मन में कामकला के अनेक भेद भी स्वतः स्पष्ट होने लगते हैं। अनंग अर्थात् कामदेव ही जब पुरुष में आकर समाहित हो जाये तो उसके जीवन में न्यूनता ही क्या रह सकती है? कामदेव की यदि विशिष्ट साधना साधक को सिद्ध हो जाती है, तो उसे अप्सरा साधना, किन्नरी साधना अथवा यक्षिणी सिद्ध करने में सफलता प्राप्त होने की संभावना कई गुना अधिक हो जाती है। क्योंकि यह वर्ग स्वयं ही आतुर हो उठते हैं ऐसे सिद्ध साधक के शरीर में समाहित होने को।
जीवन में मधुरता घोलने की इस विशेष साधना में कोई भी जटिलता नहीं है। इस साधना में जो आवश्यक तत्व है वह यह है कि आपके मन में संकल्प व विश्वास हो कि अब आपको अपने जीवन में नव यौवन घोलने का एक अवसर मिल रहा है, होता यह है कि जिस क्षण हम आनन्द युक्त होकर साधना करते हैं उन्हीं क्षणों में हमारे शरीर के तन्तु सम्बन्धित मंत्र जप का सीधा प्रवाह ग्रहण कर लेते हैं, यह प्रवाह भीतर जाकर हमारी शक्ति, ऊर्जा में वृद्धि करते हैं, यह सीधा प्रवाह ग्रहण करना ही जीवन में अनुकूल परिवर्तन व साधना में सफलता का आधार होता है।
यह साधना 20 दिसम्बर गुरुवार को सम्पन्न कर सकते हैं। रात्रि में 10 बजे के पश्चात् शान्त व एकान्त कक्ष में वातावरण को सुसज्जित एवं सुगन्धित करें। श्रेष्ठ वस्त्र पहन कर, स्वयं भी इत्र लगायें और यदि संभव हो तो गुलाब के फूलों की माला पहनें। सामने ताम्रपत्र पर स्थापित कामदेव यंत्र पर पुष्प, गुलाल, अक्षत, केसर व इत्र चढ़ाकर आप अपनी जिस प्रकार की भी दुर्बलता से मुक्ति पाना चाहते हैं, उसकी स्पष्ट शब्दों में प्रार्थना करें व निम्न मंत्र जप अनंग शक्ति माला से करें। यह माला ही अपने आप में पूर्ण सिद्धि है, जिसे व्यक्ति धारण कर निरन्तर अपने अन्दर यौवन की ऊष्मा का प्रभाव बनाये रख सकता है।
इस साधना में चार लघु नारियलों की भी आवश्यकता रहती है, जो जीवन में चारों पुरुषार्थों के प्रतीक हैं। मंत्र जप के उपरांत पुष्प की पंखुडि़यों से इनका पूजन कर इन्हें पीले वस्त्र में बांध कर अपने शयन कक्ष में स्थापित कर दें। इस साधना में उपरोक्त मंत्र की केवल 5 माला मंत्र जप करना पर्याप्त होता है। यदि यह मंत्र जप व्यक्ति निरन्तर कर सके तो उत्तम रहता है। अन्यथा चार गुरुवार तक इस साधना क्रम को दोहराते रहें। अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद चारों लघु नारियल, यंत्र व माला पीपल के वृक्ष के नीचे रख दें।
अनंग साधना का ही पूरक है काम चेतना साधना। व्यक्ति नित्य प्रातः स्नान के पश्चात् उपरोक्त मंत्र की एक माला अवश्य जप करें। इस मंत्र जप से साधना का फल द्विगुणित हो जाता है। साथ ही शरीर की क्रियाशीलता में वृद्धि होती है, स्फूर्ति, ताजगी का एहसास होता है और शरीर पर असमय दिखने वाला बुढ़ापा धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है। व्यक्ति ऊर्जा से भरपूर बन जाता है और अपने जीवन में पूर्ण वैवाहिक सुख भोगने के साथ साथ समाज में विशिष्ट स्थान बनाने में सक्षम होता है।
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