शास्त्रों का कथन है कि हथेली के अग्रिम भाग में लक्ष्मी का वास है, कर अर्थात् हथेली के मध्य भाग में केशव अर्थात् विष्णु का वास है तथा हथेली के सबसे नीचे वाले भाग में ब्रह्मा का वास होता है। अत एवं प्रातः काल उठते ही सभी को अपनी दोनों हथेलियों के दर्शन करने चाहिए। इससे व्यक्ति का सम्पूर्ण दिन अच्छा व्यतीत होता है।
हथेली का रंग दिन में तीन बार तथा उसमें स्थित रेखाएं तीन माह में एक बार बदलती हैं।
ये परिवर्तन नाड़ी संस्थान द्वारा जैव-विद्युत के माध्यम से संचालित होता है। हथेली से व्यक्ति की प्रकृति का अध्ययन किया जा सकता है। प्रातः जागरण के पश्चात आप अपनी प्रकृति का अध्ययन स्वयं कर सकते हैं।
अगर आपकी हथेली की त्वचा रूखी, हथेली में मांस-रक्त की न्यूनता, नाखूनों का रंग नीला, शीघ्र टूट जाने वाले, चमक रहित तथा अंगुलियां पतली हों, तो वह हथेली वातल हथेली कहलाती है। हथेली की त्वचा ढ़ीली, रंग मटमैला हो तो जीवन वात-विकारो, जोड़ों में दर्द, पेट में गैस, घबराहट एवं निराशा से व्यक्ति पीडि़त रहता है। ऐसी हथेली में अक्सर शनि ग्रह की प्रधानता होती है।
प्रायः ऐसे व्यक्ति अन्तर्मुखी होते हैं तथा उनमें गम्भीरता, उदासीनता, एकांतवास, कायरता आदि की भावनाएं देखी जाती हैं। वातल हथेली को प्रातः काल देखते रहने से शारीरिक एवं मानसिक परेशानियां दूर होती हैं।
जिस हथेली का रंग गहरा लाल या पीला होता है तथा त्वचा चुस्त एवं चमकदार होती है, उसकी हथेली पित्तल हथेली कहलाती है। यह हथेली अगर दृढ़ पीली तथा रुखी हो तो पित्त विकार, त्वचा विकार, ज्वर जलन, दाह आदि कष्ट होते हैं। ऐसे लोग स्वभाव से बर्हिमुखी, क्रोधी एवं आक्रामक होते हैं। हथेली का प्रातः दर्शन करते रहने से सभी दोषों का नाश होता है। जिस हथेली की त्वचा नर्म, हथेली व नाखून भरी हुई एवं मांसल, रंग सफेद-गुलाबी होते हैं, वह हथेले श्लेष्म हथेली कहलाती है। ऐसे हथेली वाले लोग कफ विकार, खांसी, वादी, मधुमेह, सूजन तथा हृदय रोग से पीडि़त होते हैं। वे स्वभाव से उदार, सहनशील, विद्वान तथा धैर्यवान होते हैं। ऐसे व्यक्ति जब प्रातः काल अपनी हथेली के दर्शन करते हैं। तो उनका सौभाग्य बढ़ता है तथा उनमें स्थित बीमारियां दूर होती हैं।
प्रातः काल उठते ही जिस स्त्री-पुरुष की नजर सर्वप्रथम हथेली के अग्र भाग पर पड़ती है, उसे कुछ लाभ अवश्य होता है। इसी प्रकार हथेली के मध्य भाग पर नजर पड़ने पर इच्छा की पूर्ति, मित्रों से मेल-जोल तथा हथेली के मूलभाग (सबसे नीचे) प्रथम नजर पड़ने पर परेशानियों से छुटकारा मिलता ही है।
अध्ययन करने वाले बच्चों को प्रातः काल उठकर अपनी हथेलियों के दर्शन कराग्रे वसेत सरस्वती का तीन बार उच्चारण कर करना चाहिए। इसके बाद भूमि को प्रणाम करके, उस पर पैर रखें तथा माता-पिता के चरण छूकर आशीर्वाद् लें।
इससे विद्या, बुद्धि एवं बल की वृद्धि होती है और दिन अच्छा व्यतीत होता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातः उठकर अपनी हथेलियों के प्रथम दर्शन करता है, वह संसार की सभी बाधाओं को पराजित करने में समर्थ होता है, परन्तु हथेली दस अंगुलियों पर स्थित है, अतः अंगुलियों के माध्यम से कर्म करने पर ही जीवन में लाभ-हानि, जय-पराजय की स्थितियां प्राप्त होती हैं, तात्पर्य यह कि दसो अगुंलियों से जो भी कार्य करेंगे उसी के अनुरुप हथेली पर सौभाग्य, धन, आयु रेखा निर्मित होती है।
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