इस दिवस को नवान्न पर्व भी कहा जाता है। यही भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतरण का भी दिवस है और प्रखर परशुराम के अवतार का भी दिवस है। अक्षय तृतीया गृहस्थ साधक के जीवन का सौभाग्य है, भविष्य पुराण में वर्णित है कि इस दिन जो भी साधना, जाप, कर्म किया जाये उसका फल अक्षय रूप में प्राप्त होता है अर्थात् उसके शुभ फलों में कोई भी न्यूनता नहीं आती।
गृहस्थ साधक के जीवन का आधार होती है लक्ष्मी अर्थात् धन-सम्पदा, श्री, वैभव व लक्ष्मी का प्रत्येक स्वरूप और अक्षय तृतीया तो लक्ष्मी, मां भगवती अन्नपूर्णा एवं भगवान विष्णु का संयुक्त फलदायक दिवस है। सांसारिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा रहती है, कि उसके पास लक्ष्मी का स्थायी वास हो और वह हर प्रकार से समृद्ध, सम्पन्न हो। लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन ही नहीं है, यह तो लक्ष्मी का एक स्वरूप है, जिसकी आपूर्ति तो होनी आवश्यक ही है, परन्तु महाकाव्यों आदि ग्रन्थों में लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन आया है, जिसे पूर्ण रूप से प्राप्त करना ही सही रूप में अक्षय लक्ष्मी को प्राप्त करना है।
लक्ष्मी का तात्पर्य है- सौभाग्य, समृद्धि, धन-वैभव, सफलता, सम्पन्न प्रियता, लावण्य, आभा, कान्ति तथा राजकीय शक्ति ये सब लक्ष्मी के स्वरूप हैं और इन्हीं गुणों के कारण भगवान विष्णु ने भी लक्ष्मी का वरण पत्नी रूप में किया और जब इन सब गुणों का समावेश होता है, जो इनको प्राप्त कर लेता है, वही वास्तविक रूप से लक्ष्मीपति है।
भगवान शिव के स्वर्ण खप्पर स्वरूप की उपासना कर रावण ने सोने की लंका की प्राप्ति की, उस समय में रावण संसार का सर्व सम्पन्न, समृद्धिशाली व अद्वितीय विद्वान था। लेकिन छल-झूठ से आयी लक्ष्मी हो या स्वर्णनगरी उसका नाश होना निश्चित है। इसीलिए कर्म पराक्रम, भाग्य, गुरु भक्ति से ही लक्ष्मी को सिद्ध किया जा सकता है।
मनुष्य को भाग्य और कर्म के अधीन बताया गया है और लक्ष्मी को कर्म प्रभाव प्रकाशिनी कहा गया है अर्थात् कर्म के प्रभाव से ही जीवन में प्रकाश का उदय होता है तात्पर्य भाग्य उसी का साथ देता है जो कर्मशील है। जब कर्म और भाग्य दोनों का संयोग होता है तो मनुष्य के जीवन में अभूत पूर्व उन्नति होती है। अक्षय तृतीया के दिव्य चैतन्य दिवस पर स्वर्ण खप्पर अक्षय लक्ष्मी दीक्षा आत्मसात कर साधक अपने रोम-रोम में अक्षय तत्व समाहित कर सकेंगे। जिससे जीवन में किसी भी तरह का क्षय नहीं होता और साधक आर्थिक, भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति कर सकेंगे। इस दिवस पर प्राप्त की हुई दीक्षा से साधक जीवन में चहुमुखी विकास करता है तथा उसके जीवन में समृद्धि व शुभता स्थायित्व रूप से बनी रहती है।
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