लक्ष्मी तो मंथन अर्थात् प्रयत्न, अथक प्रथम गहनतम साधनाओं का वह सुन्दर परिणाम है। जो साधक को उसकी साधनाओं के, उसके कार्यो के श्रीफल के रूप में उसे प्राप्त होती है, साधक उस लक्ष्मी को अपने पास स्थायी भाव से रख सकता है, आवश्यकता इस बात की है कि वह कुछ करे और इस कुछ करने के लिए उसके पास उचित मार्ग हो।
केवल धन की प्राप्ति ही सब कुछ नहीं है, धन तो लक्ष्मी का एक अंश है। पूर्ण लक्ष्मी होने का तात्पर्य सौभाग्य में वृद्धि हो, राजकीय सुख एवं शक्ति प्राप्त हो, वह जो कार्य करे, उसी के अनुरुप उसे यश प्राप्त हो और वह यश श्रेष्ठ दिशा में होना चाहिए। जब व्यक्ति लक्ष्मी को पूर्ण रूप से प्राप्त कर लेता है, तो वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है, भौतिक सुख पूर्ण रूप से प्राप्त होने पर ही जीवन आध्यात्मिक भाव का उदय होता है। इसलिए लक्ष्मी को पूर्णता से प्राप्त करना आवश्यक है।
जिस प्रकार अग्नि के ऊपर राख का आवरण आ जाये और समय पर उसे चैतन्य नहीं किया जाये, तो धीरे-धीरे वह अग्नि ही बुझ जाती है और यदि फूंक माकर कर राख हटा कर अग्नि को घी की आहुति दी जाये, तो वह एकदम से प्रबल होकर ज्वाला रूप में प्रज्ज्वलित हो जाती है। लक्ष्मी का भी ऐसा ही विधान है, यदि साधना नहीं करेंगे, लक्ष्मी प्राप्ति का प्रयत्न नहीं करेंगे, इसको तीव्र नहीं करेंगे, तो धीरे-धीरे यह बुझ जायेगी, शान्त हो जायेगी और जीवन में केवल राख ही अर्थात् अलक्ष्मी की स्थितियां ही प्राप्त होंगी।
और अक्षय तृतीया का सिद्ध मुहुर्त उसी दीपक को जाज्वल्मान बनाये रखने का दिवस है। इस दिवस को अक्षय तृतीया इसलिये कहा गया है, कि इस दिन जो स्त्रियां सौभाग्य की कामना हेतु पूजन करती हैं, उन्हें पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति होती है, जो व्यक्ति इस दिन लक्ष्मी साधना सम्पन्न करता है, उसे लक्ष्मी अक्षय रूप से प्राप्त होती है अर्थात् लक्ष्मी का उसके जीवन में स्थायी आवास होता है। इसीलिये यह अक्षय लक्ष्मी प्राप्त करने का पूर्ण दिवस है, सौन्दर्य, लावण्य, आभा प्राप्त करने का सिद्ध मुहुर्त है, व्यक्तित्व को प्रखरता प्रदान करने का चैतन्य अवसर है।
वृहद रस सिद्धांत महाग्रन्थ में अक्षय तृतीया के सम्बन्ध में लिखा है कि यह दिवस जीवन रस की अक्षय खान है, उसमें से जितना प्राप्त कर सको, उतना ही रस बढ़ता जाता है। सत्य भी यही है कि लक्ष्मी का विशेष स्वरूप गृहस्थ से ही जुड़ा होता है और गृहस्थ व्यक्ति के ही जीवन में इच्छायें, कामनायें जुड़ी होती हैं और इनकी पूर्ति केवल लक्ष्मी के माध्यम से संभव हो पाती है, साथ ही इनकी पूर्ति से ही जीवन में रस, आनन्द की पूर्ति हो पाती है।
साधना विधान
अपने सामने बाजोट पर पीला सुन्दर रेशमी वस्त्र बिछाकर उसके बीचो-बीच चावल की दो ढ़ेरी बनाकर उस पर पुष्प रखें और फिर शुभ-लाभ प्राप्ति मोती शंख स्थापित कर दें। इन दोनों मोती शंख के सामने विशिष्ट अक्षय महालक्ष्मी यंत्र किसी पात्र में श्रीं अंकित स्थापित कर दें। अब सभी सामग्री का पंचोपचार पूजन कर मोती शंख पर केसर, पुष्प अर्पित करें और यंत्र को तीन बार अपने ललाट पर स्पर्श करायें। पश्चात् निम्न मंत्र का अक्षय सिद्धि माला से 5 माला मंत्र जप करें।
मंत्र-
।। ऊँ श्रीं ह्रीं अक्षय धनदा शक्तिये सिद्धिं देहि देहि फट् ।।
जप पश्चात् लक्ष्मी व गुरु आरती सम्पन्न करें और सभी सामग्री किसी पवित्र नदी अथवा गुरु चरणों में व्यक्तिगत रूप से आशीर्वाद प्राप्त करते हुये अर्पित करें।
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