शंकराचार्य अपने आप में अद्भुत महायोगी थे, उन्होंने कई सौ वर्षों बाद भारत की लुप्त विद्याओं को पुनर्जीवित करने का सफल प्रयास किया और उन विद्याओं को ढूंढ़ निकाला, जो लुप्त हो गई थी या जो पुस्तकों में ही सिमट कर रह गई थी, उन साधनाओं में परकाया प्रवेश, दिव्य दृष्टि साधना, दिव्य श्रवण साधना, मनः शक्ति साधना आदि थी।
तंत्र एक मात्र ऐसा माध्यम है, जिसमें अनेक ऐसी विद्याएं, अनेक ऐसे प्रयोग है, जिनका ज्ञान यदि व्यक्ति प्राप्त कर लेता है तो उसके माध्यम से वह किसी भी देवी-देवता का आबद्ध करने में समर्थ हो सकता है। शंकराचार्य तो तंत्र के उच्चकोटि के ज्ञाता थे, तंत्र ही उनका वह सबल माध्यम था, जिसके द्वारा शंकराचार्य कम उम्र में ही अपने लक्ष्य को पूर्णता से प्राप्त कर सके।
शंकराचार्य ने साधारण लोगों के लिए सगुण ब्रह्म उपासना और दुर्बलों को विष्णु, शिव आदि की उपासना की पद्धति प्रदान की। वहीं उन्होंने मुमुक्षु व्यक्तियों के लिए संन्यास और ब्रह्म ज्ञान की व्यवस्था भी की। चित्त शुद्धि हेतु अपने वर्णाश्रम के अनुसार निष्काम कर्म विधियों का अनुमोदन किया। सभी धर्मो के लोगों ने उनके ज्ञान को उदार हृदय से अपनाया। इसीलिये वे जगद्गुरु रूप में प्रतिष्ठित हुये।
शंकराचार्य के जीवन का गोपनीय तथ्य ही है, कि संन्यासी होते हुये भी, संन्यस्त धर्म का पालन करते हुये भी किसी के समक्ष याचना नहीं की, वरन स्वयं तो समर्थ हुए ही, साथ ही सब कुछ प्रदान करने में सक्षम भी हुये।
जो सक्षम गुरु होते हैं, वे अपने ज्ञान का विस्तार केवल अपने जीवन काल तक ही सीमित नहीं रखते अपितु आने वाले सैकड़ों हजारों वर्षों का उन पर उत्तरदायित्व होता है। भगवद् पाद् शंकराचार्य एक दिव्य विभूति हैं, जिनके ज्ञान, चेतना से आज भी सांसारिक मनुष्य अपने जीवन में सुस्थितियों की प्राप्ति हेतु उनके द्वारा प्रशस्त मार्ग का अनुसरण करता है। भगवद् शंकराचार्य जी को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है।
वैशाखी सप्तमी 09 मई शंकराचार्य जयंती के चैतन्य तंत्र सिद्धि दिवस पर 7 माला चैतन्य तंत्र सामग्री युक्त साधना, दीक्षा द्वारा सम्पन्न करने से अक्षुण्ण लाभ की प्राप्ति होती है और साधना में सिद्धि के योग बनते हैं। यह दिवस अपने आप में पूर्ण तांत्रोक्त चैतन्य दिवस है, क्योंकि महान विभूतियां अपने अवतरण दिवस पर पूर्ण चैतन्य भाव में भाव-विह्नलता से साधनात्मक स्वरूप में आह्वान करने वाले मनुष्य की सभी कामनायें निश्चित रूप से पूर्ण होती ही है।
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