भगवती बगला पीताम्बरा, स्वर्ण पीठ पर विराजमान, एक हाथ में मुद्गर लिए तथा दूसरे हाथ से शत्रु की जीभ पकड़े हुये अर्थात् शत्रु भाव को स्तम्भित करते हुये, इन्हें सिद्ध विद्या कहा गया है। ये शीघ्र फल प्रदान करने वाली देवी हैं। इसीलिए कलियुग में इनकी उपासना अत्यधिक की जाती है।
बगला शक्ति का मूल तात्पर्य प्राण चेतना से है। ये प्राण चेतना प्रत्येक प्राणी में सुप्त अवस्था में होता है और साधना, दीक्षा, मंत्र जाप द्वारा इसे जाग्रत व चैतन्य किया जाता है। जब यह प्राण चेतना जाग्रत हो जाती है, तो व्यक्ति अपने सामने बैठे व्यक्ति पर वह साथ ही दूर स्थान पर स्थित व्यक्ति को भी सम्मोहित कर अपने अनुकूल कर लेता है। बगलामुखी साधना से प्राण चेतना को जाग्रत किया जा सकता है। इस जाग्रतता से व्यक्ति अपने जीवन में स्तम्भन, वशीकरण व कीलन की शक्तियां प्राप्त कर लेता है। भगवती बगला की साधना अपने प्रभाव को इतना अधिक विस्तरित कर देने की साधना है, जिससे साधक जीवन की हर परिस्थिति पर विजय प्राप्त करता हुआ अपना मनोरथ पूर्ण कर सके।
भगवती बगलामुखी 16 शक्तियों से युक्त है-
उक्त मंत्र की 16 माला इस शुभ दिवस पर दीक्षा-
सामग्री के साथ करने से रोग, शोक, तनाव, पीड़ा, दरिद्रता व शत्रु भाव आदि इन सभी पर वज्र की तरह प्रहार करने की क्षमता प्रदान करती हैं भगवती बगलामुखी।
बगलामुखी साधना, दीक्षा जीवन की श्रेष्ठ व अद्वितीय क्रिया है। जो साधक विशेष काल समय में उक्त 16 स्वरूपों में साधना, दीक्षा आत्मसात करता है तो उसके जीवन से सम्पूर्ण बाधाओं का निवारण होता ही है।
बगलामुखी जयन्ती ऐसा ही अन्यतम सिद्ध चैतन्य दिवस है, जिस दिन साधक बगलामुखी साधना, दीक्षा द्वारा जीवन में सर्वत्र विजयश्री युक्त स्थितियों से युक्त हो सकता और अपने जीवन में चतुर्वग प्रगति की सशक्त नींव स्थापित करता है।
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