पौराणिक कथा अनुसार हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद में अपने जैसे दुर्गुण भरने व धर्म मार्ग से हटाने व नीति-अनीति सभी तरह का प्रयोग कर लिया परन्तु प्रहलाद को धर्म से विचलित ना कर सके। तब उसने प्रहलाद को मारने के षड़यंत्र रचे मगर वह सभी में असफल रहे। प्रहलाद भगवान नारायण के परम भक्त होने से वे हर संकट से सुरक्षित बच जाते।
एक दिन हिरण्यकश्यप ने क्रोधित होकर प्रहलाद से पूछा कि बता तेरा भगवान कहां है, प्रहलाद ने विनम्र भाव से कहा कि प्रभु तो सर्वत्र व्याप्त हैं। क्रोधित हिरण्यकश्यप ने कहा क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खम्भे) में भी है। प्रहलाद ने हां में उत्तर दिया। यह सुनकर हिरण्यकश्प ने खम्भे पर प्रहार कर दिया।
तभी खम्भे को चीर कर श्री नृसिंह भगवान प्रकट हो गये और हिरण्यकश्प को पकड़कर अपनी जांघों पर रख कर उसकी छाती को नखों से चीर डाला और उसका वध कर दिया। साथ ही भगवान नृसिंह ने प्रहलाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया कि आज के दिन मेरी उपासना, साधना करने वालों की मैं हर क्षण रक्षा करुंगा।
नृसिंह अवतार का गूढ़ार्थ रहस्य यही है कि हिरण्याकश्यप रूपी पैशाचिक शक्तियों पर मनुष्य विजय प्राप्त कर अपने जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से युक्त कर सके। पैशाचिक शक्तियां भी हिरण्याकश्यप की भांति हैं, जिसे ना आप देख सकते हो, ना समझ सकते हैं, ना ही उनकी क्रियायें अनुभव में आती हैं, ये स्थितियां ऐसी होती हैं, जहां शत्रु अस्पष्ट होता है और गुप्त शत्रु से भय की दशा में स्थितियां कितनी भयावह हो जाती है, इसकी तो कोई कल्पना ही नहीं कर सकता। केवल भुक्त भोगी ही समझ सकता है।
भगवान नृसिंह की उपासना इन्हीं सब स्थितियों का पूर्णता से समाधान है। भगवान नृसिंह की साधना से साधक ऐसी किसी भी तामसिक शक्ति के प्रकोप से मुक्त हो जाता है, साथ ही यदि उस पर किसी शत्रु द्वारा कुविचारों से तंत्र बाधा, पिशाच बंधन आदि क्रियायें सम्पन्न की गयी हैं, तो वे भी पूर्णतः समाप्त होती ही हैं। वास्तव में देखा जाये तो तंत्र बाधा भी इन्हीं इतर योनि शक्तियों का प्रकोप है।
विशिष्ट देव शक्तियोंमय दिव्य दिवसों पर साधना, मंत्र जाप करने से उस दिवस के सुयोगों का प्रभाव जीवन भर बना रहता है। भगवान नृसिंह असुरी शक्तियों के प्रकोप को पूरी तरह समाप्त कर जीवन में निर्भयता प्रदान करते हैं और साधक को सिंह की भांति जोश, उत्साह, ऊर्जा, वर्चस्व से आपूरित करते हैं। देव शक्तियों के माध्यम से जीवन में विजय प्राप्त कर ले।
नृसिंह जयन्ती 17 मई एक ऐसा ही दिव्य दिवस है, जिसकी चैतन्यता में साधना, दीक्षा आत्मसात कर साधक पूर्ण रूपेण जाज्वल्यमान व्यक्तित्व की प्राप्ति करने में सफल होता है।
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