आध्यात्मिक दृष्टि से सूर्य को प्राण ऊर्जा का स्रोत कहा गया है। ऋग्वेद में सूर्य को जगत की आत्मा बताया गया है। इसका तात्पर्य है, कि पृथ्वी पर जो चेतना एवं हल-चल है, उसका उद्गम स्रोत सूर्य ही है। सूर्य से केवल गर्मी या रोशनी ही नहीं मिलती, इसके अतिरिक्त वह भी मिलता है जो चेतना शक्ति से सम्बन्धित है।
सूर्य से समस्त चराचर जगत में प्राणश चेतना का संचार होता है। सूर्य उपासना सम्पन्न करने से साधक के व्यक्तित्व में स्वतः ही परिवर्तन आने लगता है, उसके अन्दर अडिगता तथा दृढ़ संकल्प जैसे गुणों का समावेश होने लगता है, वह रोगों से मुक्त हो जाता है और एक अद्वितीय तेजस्विता साधक की देह में समाहित होकर समस्त विषम परिस्थितियों को समाप्त कर देती है। साथ ही सूर्य उपासना के माध्यम से शरीर की अलौकिक शक्तियों को सुप्त अवस्था से उठाकर जागृति में लाया जाता है और यह जागरण इतना अनुकूल होता है कि उसके माध्यम से अपने सारे कार्य सिद्ध किये जा सकते हैं। जिस प्रकार भौतिक जगत में विभिन्न कार्य के सम्पादन के लिये शरीर में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसी तरह ऊर्जा शक्ति के सृजन और वर्धन करने के लिये प्राणों को चेतना शक्ति की आवश्यकता होती है।
इसीलिये जब साधक गुरु के शक्तिमय स्वरूप की आराधना करता है, तो सद्गुरु उसी रूप में साधक के आत्म तत्व में स्थापित हो जाते हैं और फिर जैसे-जैसे साधक साधनाओं में निरत होकर निरंतर साधनाओं की प्रक्रिया पूर्ण करता जाता है तो यही शक्ति पूर्ण वृक्ष बन जीवन में छाया प्रदान करती है।
सद्गुरु भास्कर शक्ति दीक्षा के माध्यम से साधक के अन्दर जिस गुरुत्व शक्ति को स्थापित किया जाता है, उसी के फलस्वरूप साधक जीवन पर्यन्त गतिशील भी रहता है। जिस प्रकार अग्नि तीव्र होने पर ऊपर उठती है, उसी प्रकार साधक के भीतर भास्कर शक्तिमय तत्व का विकास होने पर वह अपने जीवन में उच्चतम स्थितियों को आत्मसात करता हुआ श्रेष्ठताओं से युक्त होता है। जिस तरह जीवन के लिए ऑक्सीजन की परम आवश्यकता है, उसी तरह समृद्धि, सम्पन्न, सुख-शांति व आध्यात्मिक सफलता हेतु यह दीक्षा प्रत्येक शिष्य को अनिवार्य रूप से आत्मसात करना चाहिये।
सूर्य ग्रहण के दिव्य अवसर पर सूर्य की तेजस्विता ग्रहण करने का तात्पर्य यही है कि हम अपनी ऊर्जा शक्ति को और अधिक सुदृढ़ बना सकें और जब हम शक्ति और ऊर्जा के आपूरित हो सकेंगे, तब ही सांसारिक क्रियाओं में सफलता मिलनी प्रारम्भ होती है और साधक निरन्तर उन्नति-प्रगति करता हुआ अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर पाता है, साथ ही सांसारिक जीवन में सुख-सौभाग्य, आनन्द, प्रेम, उल्लास की प्राप्ति होती है।
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