जिस तरह पूर्णिमा का चांद सम्पूर्ण धरा को स्निग्ध प्रकाश से आलोकित करता है। उसी तरह सद्गुरु भी निरन्तर शिष्यों के अन्धकार (अज्ञानता) का विनाश कर अपने ज्ञान से उसे प्रकाशित करते रहते हैं। सद्गुरु सदैव अपने शिष्यों के उत्थान के बारे में ही सोचते हैं। इसीलिए गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं——सही अर्थों में आप पूर्ण ब्रह्म स्वरूप हैं——–सही अर्थों में शंकराचार्य हैं——–सहीं अर्थों में ब्रह्मा और विष्णु है——– सही अर्थों में जगद्गुरु हैं———मैं आपके सभी स्वरूपों को नतमस्तक होता हुआ प्रणाम करता हूं, कि आप हमें जीवन का सौभाग्य, जीवन का आनन्द, जीवन की पूर्णता दें।
और शिष्य अपने जीवन में सौभाग्य, आनन्द और पूर्णता की प्राप्ति तभी कर सकता है, जब वह ऐसे मार्ग पर अग्रसर हो जाता है, जिस पर अपने आपको पूर्ण रूप से पहचान सके, अपने भीतर जो तत्व छिपा है, उसे उजागर कर सके। यदि शरीर में कोई फोड़ा या नासूर हो जाये, तो आप हाथ लगाने से ही डरते हैं और डाक्टर को तो उसे चीरा लगाने की अनुमति दे देते हैं और वह नासूर, वह फोड़ा ठीक भी हो जाता है।
इसी प्रकार जीवन में यदि चिन्ता रूपी, कष्ट रूपी, दुःख, भय रूपी, नासूर हो गया है, तो शांत भाव से अपने आपको श्री सद्गुरुदेव के प्रति समर्पित कर दे, तब आपकी जिम्मेवारी समाप्त हो जाती है, तब वे इस चिन्ता रूपी नासूर को चीरा लगाकर औषधि देकर उस नासूर को, आपके विकार को, आपकी गन्दगी का निस्तारण कर पूर्णरूपेण स्वच्छ, निर्मल बनाते हैं, इसके साथ ही सद्गुरुदेव को यह भी देखना होता है, कि यह विकार भीतर तक से समाप्त हो जाये, जिससे फिर कोई नया नासूर न बन सके, उसके पश्चात् ही गुरु तत्व का संचार हो पाता है।
गुरु तत्व को अपने रोम-रोम में स्थापित करना, उनसे पूर्णतः एकाकार हो जाना शिष्य जीवन का परम सौभाग्य है। लेकिन अधिकांश साधक गुरुत्व से अछूते रह जाते हैं, क्योंकि सांसारिकता के मकड़जाल में वे उलझे हुये होते हैं, जिससे गुरुत्व भाव को समझना व उसे आत्मसात करना उनके लिए सरल नहीं होता है। आशा-निराशा, शंका-कुशंका में डूबा शिष्य केवल भटकता ही रहता है।
गुरु पूर्णिमा जीवन के उसी सौभाग्यता का दिवस है, जब शिष्य पूर्ण रूप से विकार मुक्त होकर सद्गुरुमय चेतना से युक्त होता है। चन्द्र ग्रहण युक्त वेद व्यासमय गुरु पूर्णिमा पर्व पर सद्गुरु तत्वाभिषेक चन्द्रोदय दीक्षा से वह गुरु तत्व को अपने रोम-रोम में आत्मसात करने में समर्थ बन पाता है और इसी के फलस्वरूप शिष्य अपने सांसारिक, भौतिक- आध्यात्मिक जीवन को सर्व अनुकूलताओं से युक्त करते हुये धर्म, अर्थ, काम आदि के द्वारा जीवन का पूर्ण आनन्द प्राप्त करता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,