त्रिपुरान्तकारी स्वरूप में भगवान शिव मानव जीवन के पाशों का शमन कर उसे पूर्णता प्रदान करते हैं। जिस प्रकार सूर्य की किरणों से पककर ककड़ी (उर्वारूक) अपने मूल बन्धन से मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार शिव तत्व को आत्मसात करने वाला साधक सभी सांसारिक बाधाओं से मुक्त होता है। त्रिपुरान्तकारी का तात्पर्य है जो त्रि-स्वरूप अर्थात् भूत-वर्तमान व भविष्य के विषमताओं का हरण कर जीवन सुमंगलमय चेतना से आपूरित करें।
लिंग महापुराण में वर्णन है-
परम परमेश्वर महादेव सभी जगह, समस्त जीवों, त्रिगुणात्मक प्रकृति, इन्द्रियों तथा अन्य देवताओं और गणों में उसी प्रकार अधिष्ठित है, जैसे फूलों में सुगन्ध विद्यमान है। इस श्लोक में शिव भक्त द्वारा प्रार्थना की गई है कि- हे महादेव! समस्त संसार की पुष्टि करने वाले मुझे संताप, कष्ट रूपी बंधन से मुक्ति प्रदान कर पूर्णता दें।
भगवान शिव कहते हैं- मैं तुम्हें मृत्यु तुल्य जीवन से मुक्ति प्रदान करता हूं अर्थात् जीवन के सभी पाप, दोष, रोग- शोक, दुःख, दरिद्रता, संकट आदि स्थितियों से मुक्त करता हूं। इसीलिये सदाशिव को त्रयम्बकेश्वर, महामृत्यंजय, महाकाल, अमृतेश्वर कहा गया है, शिव ही काल पर अधिष्ठित महाकाल हैं, मृत्यु को जीतने वाले महामृत्युंजय हैं, जीवन के सभी मृत्यु रूपी स्थितियों से निवृत्त कर अमृत फल देने में समर्थ प्रदान करने वाले महादेव हैं।
शिव उपासना के द्वारा ही परम तत्व अथवा शिव तत्व की प्राप्ति सम्भव है। अतः उनकी कृपा दृष्टि प्राप्त करने के लिये उनका ही अवलम्बन ग्रहण करना चाहिये। वे अपने भक्त की अल्प आराधना से भी शीघ्र ही प्रसन्न होकर उसकी मनोकामना तत्क्षण पूर्ण करते हैं।
इस संसार का कर्म फल देने के लिए ही सृष्टि हुयी है। व्यक्ति अपने जीवन में अनेक प्रकार के सुख और दुख भोगता हुआ अन्ततः पूर्णता की प्राप्ति के लिये प्रयासरत रहता है। भगवान शिव पूर्णता प्रदान करने वाले देवों में अग्रणी हैं, जो साधक के जीवन के सभी दुखों को हर लेते हैं, इसीलिये उनकी प्रार्थना में भी हर-हर महोदव कहा जाता है अर्थात् जो सभी विपदाओं का हरण करने वाले हैं, वे ही महादेव त्रिपुरान्तकारी शिव हैं।
त्रिपुरान्तकारी संकट निवारण साधना द्वारा साधक जीवन की सभी कलुषताओं से मुक्त होता है और उसका जीवन श्री, कीर्ति, कान्ति, ऐश्वर्य, भोग-विलास युक्त बनता है। साथ ही गृहस्थ जीवन की सभी सुकामनाये सिद्ध होती हैं।
श्रावण द्वितीय सोमवार 29 जुलाई को प्रातः 6 बजे स्वच्छ वस्त्र धारण कर अघोर शिव यंत्र दाहिने हाथ से ललाट पर स्पर्श कर किसी पात्र में कुंकुम से अंकित ऊँ पर स्थापित कर दें, पश्चात् दोनों हाथ में पुष्प लेकर ध्यान करें-
अब इस मंत्र का त्रिपुरान्कारी माला से 3 माला मंत्र जप करें, जिससे भूत-वर्तमान-भविष्य की सभी विषमतायें, संकट, दोष पूर्ण स्थितियों का शमन पूर्णता से हो सके।
मंत्र जप पश्चात् शिव व गुरु आरती, समर्पण स्तुति सम्पन्न करें, साधना पूर्णता पर सभी सामग्री गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित कर दें।
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