विष्णु कार्य हैं, ब्रह्मा क्रिया और महेश्वर कारण हैं, भगवान रूद्र ने ही सांसारिक मानव के कल्याण हेतु ये तीन रूप धारण किये, जिस प्रकार ब्रह्माण्ड की समस्त शक्तियों को आद्या शक्ति का स्वरूप माना गया है, इसी प्रकार भगवान सदाशिव सृष्टि के सभी क्रियाओं के कारक हैं। शिव शब्द का अर्थ ही जीवन के सभी पाशों, दुख, कष्ट, संताप से मुक्त करना व शुभ, मंगलदायक, जीवन में पूर्णता देना है, भगवान शिव अग्रणी देव हैं, उनका रूप विलक्षण होते हुये भी पूर्ण है।
जीवन का मतलब सुख और शांति की प्राप्ति के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करना होता है, हम अपने जीवन में प्रयत्न और परिश्रम इसीलिये तो करते हैं कि हमारा जीवन सुखमय हो, हम अपने जीवन में जितना परिश्रम करें, उतना फल हमें मिल जाये, हम अपने जीवन में जो कुछ करें उसका परिणाम प्राप्त हो।
पर अधिकतर ऐसा नहीं होता, हम अपने जीवन में देखते हैं कि बहुत अधिक परिश्रम करने के बाद भी न्यून सफलतायें हमें मिल पाती हैं। व्यापार में हम दिन रात मेहनत करते रहते हैं और समय आने पर उसका जो लाभ होना चाहिये, वह लाभ नहीं मिल पाता है, हम अपनी तरफ से परिवार में कोई कलह या मन मुटाव नहीं चाहते, परन्तु फिर भी प्रयत्न करने के बावजूद भी परिवार में जो सुख शांति और आनन्द होना चाहिये वह नहीं हो पाता। जिसका मूल कारण है जीवन का पाशों के अधीन होना, जिसके कारण जीवन में निरन्तर दुःख, कष्ट, संताप, बाधा, असफलता, धनहीनता पूर्ण स्थितियां बनी रहती हैं।
भगवान शिव को पाश विमोचन कहा गया है जिसका तात्पर्य है कि जो सभी तरह के असुरमय कुस्थितियों से मुक्त करने वाले महादेव हैं। भगवान शिव के इस स्वरूप की साधना द्वारा साधक समस्त प्रकार के पाशों व संताप दोषों से मुक्त हो जाता है, उसके सभी दुख, कष्ट, बाधा, अड़चन, अष्ट पाश, कलुषता शिव के त्रिनेत्र ज्वाला से भस्म हो जाते हैं और उसका जीवन भगवान शिव की ही भांति दैदीप्यमान ज्योति से जाज्वल्यमान हो जाती है।
और जब साधक जीवन के समस्त बंधन स्वरूप दोषों से मुक्त हो जाता है, तब उसका थोड़ा सा परिश्रम भी अधिक लाभ प्राप्ति के योगों से युक्त होता है। छोटे व्यापार में भी लक्ष्मी की अधिक प्राप्ति करने में सफल होता है और सुखद, सफल जीवन व्यतीत करने लगता है, उसका गृहस्थ जीवन सभी तरह के विपदाओं से मुक्त हो जाता है और जीवन में सुख-शांति, समृद्धि, ऐश्यर्व, पद, प्रतिष्ठा, संतान सुख, आरोग्यता, दीर्घायु जीवन व शिव-गौरी परिवारमय स्थितियों से युक्त होता है।
अमोघ शिव कवच में कहा गया है-
हे महारुद्र! आप सर्व तेजमय स्वरूप हैं, कल्याण के अवतार हैं, दुःख रूपी दावग्नि को दूर करने वाले हैं, आप महाभैरव कालभैरव तथा कल्पान्त भैरव रूप हैं आपकी सदैव जय हो।
श्रावण तृतीय सोमवार 05 अगस्त नाग पंचमी के विशेष दिवस पर साधक पीले वस्त्र धारण कर रात्रि 9 बजे के बाद पूजा स्थान में बैठ जाये, लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछायें तथा उस पर केसर से शं बीज अंकित कर महाकाल भैरव यंत्र स्थापित कर उसके ऊपर नाग पाश विमोचन गुटिका रख दें, यंत्र का पूजन पुष्प, अक्षत व चंदनसे करें तथा धूप, दीप प्रज्ज्वलित कर दें। सर्व संताप हरण माला से इस मंत्र का 5 माला जप करें-
साधना पूर्णता पर शिव आरती सम्पन्न करें व यंत्र, गुटिका, माला मौली में लपेट कर अगले दिन किसी शिव मंदिर में अर्पित कर दें।
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