ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों के शमन से सम्बन्धित अनेक उपाय शास्त्रों में बताये जाते हैं। जिनके द्वारा ग्रहों की अशुभता का शमन कर शुभ फल की प्राप्ति संभव हो पाती है। इन्हीं पद्धतियों में टोटका पदार्थ प्रयोग द्वारा ग्रह कष्टों का निवारण सहज ही हो जाता है। इन प्रयोगों को सामान्य रूप से कोई भी व्यक्ति, महिला सरलता से सम्पन्न कर सकते हैं।
सूर्यः यदि जातक की जन्म कुण्डली में सूर्य की स्थिति नेष्ट हो तो उसकी शांति के लिये रात्रि के समय जलती आग को दूध से बुझायें तथा प्रातः काल पीडि़त जातक मुंह में गुड़ या कोई शुद्ध मिष्ठान डालकर ऊपर से जल ग्रहण करे।
मंगलः कुंडली में मांगलिक दोष दूर करने के लिए जातक प्रातःकाल उठते ही नित्य कुएं के जल से दातुन करें।
बुध: बुध ग्रह का अशुभत्व शमन करने के लिये कौडि़यों को आग से जलाएं और राख को उसी दिन नदी में प्रवाहित कर दें।
बृहस्पतिः बृहस्पति ग्रह को शुभ करने हेतु पीपल वृक्ष में पानी डालें और देखभाल करें।
शुक्रः शुभ फल की प्राप्ति हेतु गाय को घास-ज्वार खिलाया करें।
शनिः यदि शनि की साढ़े साती, ढैय्या के कारण अशुभ फल की प्राप्ति हो रही हो तो शनि मुद्रिका के साथ माणिक्य धारण करें।
राहुः यदि जन्म कुण्डली में राहु की स्थिति अशुभ फलदायी हो तो कोयला नदी में प्रवाहित करें, कुप्रभाव समाप्त होगें।
केतुः लाल किताब में केतु को श्वान एवं पुत्र की संज्ञा दी गई है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने के साथ-साथ अपने धुरी पर भी घूमती है। पृथ्वी के दक्षिण एवं उत्तर में स्थित चुम्बकीय प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालते है। यह प्रवाह दक्षिण से उत्तर की ओर होता है, अतः जब हम कोई कार्य दक्षिणाभिमुख होकर करते हैं, तो हमारे स्नायु, पाचन तंत्र एवं शरीर में स्थित ऊतक कमजोर हो जाते हैं। जिससे हमें किसी भी शुभ कार्य का सकारात्मक परिणाम नहीं प्राप्त होता है। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके व्यावसायिक चर्चा करने पर हमारे निर्णय सटीक नहीं हो पाते है।
चुम्बकीय प्रवाह मानसिक प्रवाह को पीछे की ओर धकेलता है, जिससे हमारे निर्णय प्रतिकूल होते हैं। इसीलिये दक्षिण दिशा विपरीत दिशा मानी जाती है, जिसके कारण डरावने-बुरे सपने, नींद ना आना, चौंक कर उठना, चक्कर आना, उन्माद आदि परेशानियां होती हैं।
मानव शरीर में स्थित नौ द्वार में से किसी एक द्वार से प्राण विसर्जित होता है। मल-मूत्र द्वार से प्राण निकलना अशुभ माना जाता है। इसलिये मृत्यु के समय व्यक्ति को उत्तर की ओर मुख कर लिटाया जाता है, जिससे चुम्बकीय प्रवाह उसके प्राणों को ऊपर के द्वार से ही निकले।
पढ़ते समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह नहीं करना चाहिये, क्योंकि चुम्बकीय प्रवाह मन को स्थिर नहीं रहने देता, जिससे एकाग्रता नहीं बन पाती।
ऑफिस में बैठक की दिशा ऐसी होनी चाहिये, जिससे मुंह पूर्व की ओर हो, क्योंकि चुम्बकीय प्रभाव से कार्य में वृद्धि होती है।
दक्षिणमुखी घर-दुकान में पुरुषों को अंशाति तथा स्त्रियों को कष्ट का अनुभव होता है, ऐसे घरों में बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता। दक्षिणमुखी दुकान में कारोबार करने वाले भी परेशान रहते हैं। इस दोष के निवारण हेतु घर के प्रवेश की दीवार को नीला गहरा और दुकान को गहरा लाल या महरून रंग से रंगायें। नीला रंग चुम्बकीय प्रवाह को रोक कर नकारात्मक ऊर्जा का शमन करता है।
आपकी माँ
शोभा श्रीमाली
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