कालान्तर में अनेक कारणों से इस परम्परा में ह्रास आ गया। जीवन मूल्यों में आये परिवर्तन और व्यक्ति की प्राणश्चेतना में न्यनूता के कारण जीवन का गौरव और अलौकिक ज्ञान शक्ति की उपलब्धि प्राप्त करना दुरुह बन गया, किन्तु ऐसा भी नहीं है कि ये विद्याएं, यह ज्ञान, इन अलौकिक शक्तियों को आत्मसात नहीं किया जा सकता।
जो विज्ञ, चेतनावान, जाग्रत हैं, वे इस तथ्य से परिचित हैं, कि सद्गुरुदेव नारायण अपने सामान्य से बाह्य स्वरूप के अन्तर्गत परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी महाराज का विराट व्यक्तित्व समाहित किये हैं, जिसकी दिव्यता और साधनात्मक श्रेष्ठता के समक्ष सम्पूर्ण विश्व के योगी प्रणम्य और नतमस्तक हैं। आज भी जाग्रत शिष्यों के मध्य उनकी उपस्थिति सर्वश्रेष्ठ तपस्वी, आत्मीय चिन्तक, ब्रह्म ज्ञाता और सबसे बड़ी बात सर्वोच्च गुरु स्वरूप में उपस्थित हैं। केवल वर्णन और विवरण की दृष्टि से ही नहीं, अपितु साकार रूप में उनकी उपासना, साधना, ध्यान करने वाले साधकों पर उनकी दृष्टि निरन्तर बनी रहती है। उनकी विराटता आदि से अनन्त तक असीमित है, परमहंस स्वामी जी ऋषि परम्परा के ऐसे महान विभूति हैं, जिनके ज्ञान, चेतना से वर्तमान युग में भी ऋषित्व ज्ञान की गंगा निरन्तर प्रवाहमान है। उनके ज्ञान गंगा को आत्मसात कर हजारों-हजारों ऋषि स्वरूप साधक, शिष्यों ने पूर्णता के मार्ग का अनुसरण कर निरन्तर उस पथ पर गतिशील हैं।
ऐसे महानतम सद्गुरु के ऋषित्व भाव, चेतना को अपने अन्तःकरण में आत्मसात करना जीवन का अहोभाग्य है। क्योंकि ऋषित्व भाव की प्राप्ति किये बिना भौतिक-आध्यात्मिक दोनों ही जीवन का समन्वय बना पाना संभव ही नहीं है। इसलिये गृहस्थ साधकों को अनिवार्य रूप से परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी के ऋषित्व स्वरूप की उपासना साधनात्मक दीक्षा के माध्यम से कर जीवन के उन पक्षों को जाज्वल्यमान बनाने का प्रयास करना चाहिये, जिनके कारण जीवन उच्चता और श्रेष्ठता की प्राप्ति नहीं हो पा रही है। वास्तव मे एकमात्र सद्गुरुदेव निखिलेश्वरानंद की चेतना शक्ति द्वारा ही भौतिक- आध्यात्मिक जीवन के महासंग्राम में पूर्ण विजयश्री की प्राप्ति हो सकती है।
ऋषि पंचमी के दिव्यतम अवसर पर सद्गुरुदेव के ऋषि स्वरूप की चेतना आत्मसात कर साधक उनके तपस्यांश शक्ति को अपने भीतर आत्मसात करने की योग्यता से आपूरित हो जाता है तथा निरन्तर साधना, दीक्षा आत्मसात करते रहने से साधक के ज्ञान, चेतना, क्षमता में विस्तार होता रहता है, जिसके द्वारा वह अपने भौतिक जीवन को सुदृढ़ करता हुआ आध्यात्मिक पथ पर भी उच्चता प्राप्त करने की क्षमता से युक्त होता है।
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