मनुष्य जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिये जिन विशिष्ट गुणों की आवश्यकता होती है, उन्हें भगवान गणेश की चेतना को आत्मसात करने से ही प्राप्त किया जा सकता है। भगवान गणेश की साधना से ऐसे विशिष्ट गुणों से आप्लावित हुआ जा सकता है, जिसके द्वारा जीवन सर्वत्र आनन्दमय व प्रसन्नता से युक्त होता है।
प्रतिज्ञा और ज्ञान की भी एक सीमा अवश्य होती है, व्यक्ति अपने प्रयत्नों से किसी भी कार्य को श्रेष्ठतम रूप से पूर्ण करने का विचार करता है, लेकिन उसकी बुद्धि एक सीमा से आगे नहीं दौड़ सकती। अड़चन और बाधायें उसकी बुद्धि एवं कार्य के विकास को रोक देती हैं और यही मूल कारण है कि हमारे शास्त्रों में पूजा, साधना, उपासना का विशेष महत्व दिया गया है। गणेश का स्वरूप शक्ति और शिवतत्व का साकार स्वरूप है और इन दोनों तत्वों का सुखद स्वरूप ही किसी कार्य में पूर्णता ला सकता है, वहीं भगवान गणेश में अनन्त तत्व भी पूर्णता से विद्यमान है, यही कारण है कि उनकी प्रतिमा गणेश अनन्त चतुर्दशी को विसर्जित की जाती है।
इस साधना से जीवन में सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, जो भी मन की कामना हो उसे मूर्त रूप दिया जा सकता है। यह साधना उच्चकोटि की साधनाओं का सार है, जिसे सम्पन्न करने पर यदि साधक के जीवन से लक्ष्मी रूठ गई हो, तब भी उसे आना ही पड़ता है, आप का व्यापार या कारोबार बन्द होने लगा हो, रोगों से आप त्रस्त होकर जीवन से आप निराश होने लग गये हों या कर्ज के बोझ से दबते चले जा रहे हों, जीवन के किसी भी क्षेत्र में असफल होने लगे हों तो अनन्त शुभ-लाभ प्राप्ति साधना से आप अपने जीवन को सर्व स्वरूपों में शुभता से सराबोर कर सकते हैं।
सांसारिक जीवन को सभी स्वरूपों में सुखद व प्रसन्नता युक्त बनाने के लिये अनन्त तत्व का होना आवश्यक है। जिस प्रकार विष्णु को अनन्त कहा गया है, उसी प्रकार गणपति का भी कोई विकल्प नहीं है। भगवान गणपति के अनन्त तत्व की साधना से साधक के शरीर में ही नहीं, जीवन में आये दोषों का भी शमन होता है और तेज, कर्मशीलता के उद्भव से वह विशालता की ओर, श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होता है।
जहां गणपति और अनन्त स्वरूप में भगवान विष्णु हों, वहां लक्ष्मी स्वतः ही चली आती है। क्योंकि जहां गणपति ऋद्धि-सिद्धि के प्रदाता हैं वही विष्णु की शक्ति योगमाया भगवती लक्ष्मी हैं। इसीलिये इस साधना से जीवन में अर्थ का अभाव तो रह ही नहीं सकता है। इसके द्वारा साधक को पूर्ण वैभव युक्त जीवन प्राप्त होता ही है, जहां किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होती, धन-धान्य, वाहन, भवन, कीर्ति, आयु, पुत्र, पौत्र से जीवन पूर्ण होता है।
इस साधना को करने से साधक में सात्विक विचारो और सात्विक वातावरण का निर्माण होता है, पुत्र-पुत्रियों में सदाचार एवं शुद्ध विचारों का उदय होता है। वे सुसंस्कारों से युक्त होकर श्रेष्ठ कार्यों में संलग्न होते हैं। जिससे अभिभावकों की यशवृद्धि होती है। पत्नी पतिव्रत्य और कुटुम्ब धर्म के प्रति उसकी चेतना प्रबल होती है, उसमें संतान के कल्याण के प्रति जागरूकता बढ़ती है। इस साधना को सम्पन्न करने से साधक ऋद्धि-सिद्धि को अनन्त स्वरूप में ग्रहण करने में पूर्णतः समर्थ होता है। जिससे जीवन अनन्त स्वरूपों में शुभ-लाभ, सुख समृद्धि, धन, ऐश्वर्य से युक्त होता है।
गणेश चतुर्थी, राधाष्टमी, महानन्दा नवमी, भुवनेश्वरी जयन्ती, अनन्त चतुर्दशी इन पंच चैतन्य दिवसों में किसी भी दिन इस साधना को सम्पन्न करने से पूर्ण शिव-गौरी गणपति विनायक अनन्त शुभ-लाभमय चेतना से साधक आप्लावित होता है और उसके जीवन में अनंत संभावानाओं का मार्ग प्रशस्त होता है।
स्नान आदि से शुद्ध होकर पीला आसन बिछाकर पूर्व की ओर मुंह कर बैठ जायें और सामने गणपति यंत्र व अनन्त शुभ-लाभ प्राप्ति जीवट स्थापित कर दें। यंत्र का दूध, दही, घृत, शहद, शक्कर से स्नान कराकर, पुनः शुद्ध जल से स्नान करायें और यंत्र को पौछ कर दूसरे पात्र में चन्दन से ‘गं’ बीज मंत्र अंकित कर उस पर यंत्र स्थापित कर दें। यंत्र का पंच पूजन करें। फिर जीवट पर चन्दन का तिलक लगायें और एक सफेद पुष्प अर्पित करें।
साधक उक्त मंत्र का 5 माला जप शुभ-लाभ प्राप्ति माला से करें। मंत्र जप के पश्चात् गणेश अष्टक का पाठ कर गणेश आरती सम्पन्न करें। जिस जल से यंत्र का स्नान सम्पन्न किया गया था, उसे पंचामृत स्वरूप में ग्रहण करें। यह साधना अत्यन्त प्रभावयुक्त है, इससे साधक की भौतिक जीवन की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती हैं। साधना समाप्ति पर सभी सामग्री गुरु चरणों में अर्पित करें।
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