कच्चे एवं पके दोनों प्रकार के केलों का उपयोग होता है। कच्चे केलों की सब्जी बनायी जाती है। पके केलों का छिलका उतारकर सीधे ही खाया जाता है। कच्चे केलों के द्वारा रायता एवं पकोड़े भी बनाये जाते हैं। केलों में मिठास का कारण उसमें उपस्थित ग्लुकोज है। जो ग्लुकोज प्राकृतिक शक्कर है। यह स्वाद में मिठास युक्त होने के अलावा स्नायुओं के लिये पोषण एवं शक्ति प्रदान करता है।
पोषक तत्वों की दृष्टि से केला अद्वितीय खाद्य पदार्थ है। केला में विटामिन ए, बी, सी, डी, ई, जी एवं एच विटामिन काफी मात्रा में है। केलों में कार्बोहाइड्रेट 20 से 22 प्रतिशत होता है जो अन्य फलों की तुलना में अधिक है। इसमें विभिन्न खनिज लवण जैसे कैल्शियम, मैग्निशियम, पॅफ़ास्फोरस, तांबा, लौह आदि भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसमें उपस्थित लौह ऐसे रासायनिक पदार्थों से सम्बन्धित है, जिनका रक्त के तत्व में शीघ्र ही रूपान्तर हो जाता है।
केले का जल शीतल, मलरोधक, तृषा, मृत्रकृच्छ, प्रमेह, कर्ण रोग, अतिसार, रक्त का गिरना, स्फोटक, रक्तपित्त, दाह, रुधिर विकार, योनी रोग एवं शोष को दूर करता है। इसके मूल तने एवं पत्तों का भी उपयोग औषधि में किया जाता है। केले के फूल स्निग्ध, मधुर, कसैले, ग्राही, कटु, अग्नि प्रदीपक, वातनाशक रक्त पित्त, कृमि, क्षय एवं कोढ़ जैसी बीमारियों को दूर करता है।
उदर रोगः विभिन्न उदर रोगों में भोजन के रूप में केले का सेवन रोग निवारण में सहायक है। सभी प्रकार के दस्त, अमाशयशोथ, वृहदान्त्रशोथ एवं अमाशय व्रण (गैस्ट्रिक अल्सर) में केले का सेवन भोजन के रूप में करना हितकारी है। गैस्ट्रिक अल्सर में दूध एवं केले का एक साथ सेवन लाभप्रद है। केला खाते हुये दूध पीना लाभदायक है, यह आंतडि़यों की सूजन मिटाता है।
उल्टीः केले के वृक्ष के रस में शहद मिलाकर पीने से उल्टी बंद हो जाती है।
दस्तः दो केला आधा पाव दही के साथ कुछ दिन खाने से दस्त, पेचिश आदि में लाभ होता है।
पेचिशः केला नींबू के साथ खाने से भोजन का पाचन शीघ्र होता है एवं पेचिश दूर हो जाती है।
अम्ल पित्तः पेट से कण्ठ तक जलन होने पर दो केलों को मथकर चीनी-इलायची मिलाकर खाना लाभप्रद है। पित्त की अधिकता शान्त करने हेतु पके हुये केले पर घी डालकर खाना लाभप्रद है।
हृदय दर्दः हृदय में दर्द होने पर दो केला एक तोला शहद के साथ मिलाकर लेने से लाभ होता है।
नकसीरः नाक से रक्त स्त्राव होने पर एक गिलास दूध में शक्कर मिलाकर दो केलों के साथ सेवन करने से लाभ होता है। इसे कम से कम 10-15 दिन नित्य सेवन करना चाहिये।
क्षयः केले के पत्तों का रस शहद में मिलाकर पिलाने से फेफडों के घाव भर जाते हैं। फेफड़ों से रक्त स्त्राव बंद हो जाता है एवं बलगम कम होता है।
कच्चा केला क्षय रोग को दूर करने में प्रभावी है। केले के पेड़ का ताजा रस भी क्षय रोग को दूर करने की रामबाण औषधि है। क्षय रोग होने या जिन्हें कष्टप्रद खांसी होती हो, अधिक मात्रा में बलगम निकलता हो, रात में अधिक पसीना आता हो, दस्त आता हो, भूख न लगती हो, तेज बुखार आता हो, उन्हें केले के मोटे तने के टुकड़े का रस निकालकर एवं छानकर एक-दो कप ताजा रस हर दो घण्टे से घूंट-घूंट पिलाना चाहिये। 2-3 दिन के रस सेवन से ही आशातीत लाभ मिलता है। यदि 2 माह तक इस चिकित्सा को निरन्तर अपनाया जायें तो रोग मुक्ति हो सकती है। ध्यान रखें केले के पेड़ का रस हर दिन ताजा ही निकाला जाये।
आग से जलनाः जलने पर केले को पीसकर लगाने से आराम मिलता है।
उच्च रक्तचापः केले में सोडियम कम होता है एवं पोटेशियम पर्याप्त मात्रा में होता है, जिससे उच्च रक्तचाप नियंत्रित रहता है।
हिचकीः केले की पत्तों की राख एक माशा, एक तोला शहद में मिलाकर चाटने से हिचकी बन्द हो जाती है।
दुर्बलताः भोजन करने के बाद 2-3 पके केले कुछ महीने तक निरन्तर खाने से दुर्बलता दूर होती है, शरीर पुष्ट बनता है। दो केले खाकर ऊपर से पाव भर दूध पीने से शरीर मोटा होता है। केला मांसवर्द्धक है।
बार-बार पेशाब आनाः एक केला खाकर आधा कप आंवले के रस में स्वादानुसार शक्कर मिलाकर पीने से लाभ होता है। मूत अवरोध (पेशाब रूकना) केले के तने का रस चार चम्मच, घी दो चम्मच मिलाकर पिलाने से पेशाब खुलकर आता है।
छालेः एक केला गाय के दूध से बना दही के साथ 6-7 दिन निरन्तर प्रातः काल सेवन करने पर जीभ के छाले दूर होते हैं।
बच्चों के लिये पौष्टिक आहारः केले में विभिन्न पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इस दृष्टि से केला बच्चों के लिये पौष्टिक आहार है। केले में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज लवण पर्याप्त मात्रा में विद्यमान होता है। केले में रक्त वृद्धि करने वाले तत्व लौह, तांबा एवं मैगनीज होते हैं। लौह तत्व पर्याप्त मात्रा में होने से यह रक्त को लाल एवं साफ रखता है। बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास के लिये इसमें कैल्शियम एवं पॅफ़ास्फोरस होती है। इसमें कैल्शियम एवं मैग्नेशियम भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। केले में वसा कम मात्रा में होता है, यही कारण है कि केले के साथ दूध का सेवन करना अत्युत्तम माना जाता है केले के साथ दूध को सम्पूर्ण आहार कहा गया है।
पके केलों को छाया में सुखाकर, कूटकर कपड़े से छानकर दूध में मिलाकर छोटे बच्चों को भी आसानी से दिया जा सकता है। इस आहार से बच्चे की भूख शान्त होने के अलावा बच्चे का तेजी से विकास होता है।
यदि बच्चे का विकास समुचित रूप से ना हो रहा हो तो ऐसे बच्चों के लिये केला उपचार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। केले में विटामिन ए, बी, सी, डी होने से बच्चों का अनेक रोगों से बचाव होता है।
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