भारतीय संस्कृति में विवाह को जन्म-जन्मान्तर का सम्बन्ध माना जाता है और पति को परमेश्वर और पत्नी को घर की लक्ष्मी माना जाता है। इस परम्परा को स्थायी बनाने के लिये भारत में तीज एवं करवाचौथ जैसे अनेक व्रत-उपवासो की परम्परा गतिशील है। भारत में विवाह का अर्थ है एक-दूसरे के प्रति समर्पण। इस संस्कृति में विवाह के बाद मैं का भावना का लोप हो जाता है एवं हम की भावना का उदय होता है।
आज-कल वैवाहिक जीवन की बड़ी ही दयनीय स्थिति देखने को मिलती है, दिन-प्रतिदिन इसमें ह्रास होता ही प्रतीत होता है। अधिकतर वैवाहिक रिश्तों में तनाव की स्थिति देखने को मिलती है, पति-पत्नी दोंनो एक-दूसरे के विचारों को समझने के लिये तैयार ही नहीं होते। जबकि गृहस्थाश्रम रूपी रथ के पति एवं पत्नी दो पहिये हैं। इन दोनों पहियों पर ही यह रथ चलता है। जहां एक पहिये की खराबी से ही रथ की गति में अवरोध उत्पन्न हो जाता है। वहां यदि दोनो ही पहियें खराब हुये तो रथ का चलना ही कठिन हो जाता है।
ऐसे में गृहस्थ जीवन को सुख-सौभाग्य युक्त बनाने हेतु सुख सौभाग्य वृद्धि दीक्षा तुलसी विवाह के दिव्यतम अवसर पर सभी दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर रहे लोगो को आत्मसात करना चाहिये। यह विशिष्टतम दीक्षा जहां एक ओर गृहस्थ जीवन के सभी सुखों आत्मिक प्रेम, सामंजस्य, एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान, अपनत्व की भावना, त्याग, सहनशीलता, धैर्य, सौम्यता प्रदान करता है, वहीं सुहाग की रक्षा भी होती है, अर्थात् जो साधिका इस दीक्षा को ग्रहण करती है, उसके पति को पूर्ण आयु प्राप्त होती है व संतान सुख में वृद्धि होती है, साथ ही किसी भी आकस्मिक घटना-दुर्घटना से उसकी रक्षा होती है।
इस दीक्षा से पति-पत्नी का आत्मिक सम्बन्ध अक्षुण्ण रूप से गतिशील रहता है, मधुरतम प्रेम जीवन पर्यन्त जीवन्त जाग्रत रूप में बना रहता है। साथ ही इस दीक्षा द्वारा पति अपनी पत्नी के सम्मोहन, आकर्षण, सौन्दर्य प्रेम से संतुष्ट होता है। यह दीक्षा वर्तमान में जीवन की अनेक न्यूनताओं को समाप्त करने में सहायक है, अतः प्रत्येक स्त्री को इसे अवश्य ही धारण करना चाहिये। जिससे उसका गृहस्थ जीवन सौन्दर्य, आकर्षण, सम्मोहन, सौभाग्य सुहाग शक्ति से आपूरित होता है और परिवार में सुख-शान्ति प्रेममय वातावरण का निर्माण होता ही है।
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