वास्तव में जीवन में अपने लक्ष्य का भेदन करने हेतु हमारे भीतर वह शक्ति होनी चाहिये, जिसके आधार पर जीवन पूर्णतया निर्भर हो, तंत्र शास्त्र तो सम्पूर्ण रूप से शक्ति पर आधारित है। श्रेष्ठ साधनाएं, उपलब्धियां व लक्ष्य शक्ति के द्वारा ही तो प्राप्त हो पाती हैं। उच्चकोटि के साधनात्मक ग्रंथों का निष्कर्ष यही है, कि विभिन्न साधनाओं और यौगिक क्रियाओं के माध्यम से अपनी शक्ति को जाग्रत कर, स्वयं को शक्ति सम्पन्न बनाने पर ही लक्ष्य की प्राप्ति हो पाती है।
साधना जगत में सिंहत्व का अर्थ होता है, कि साधक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी भी चुनौती को स्वीकार करने को तत्पर हो गया है अर्थात उन दुर्गम पथों पर भी चलने के लिए राजी हो गया है, जिन्हें सर्व सामान्य ने कठिन मान कर हार स्वीकार कर ली हो। गुरुदेव ने सिंहत्व की परिभाषा इसी प्रकार दी है, उन्होंने एक अवसर पर स्पष्ट किया था, जो सिंह होता है उसे चुनौतियों से भिड़ने में ही आनन्द आता है—- और उन्होंने इस तथ्य को एक उदाहरण से स्पष्ट किया था। उन्होंने बताया- जब जंगल में शिकारी सामने आकर खड़ा हो जाता है, तब अन्य जानवर तो मुंह मोड़कर पीछे लौट जाते हैं, किन्तु सिंह ठीक उसी शिकारी के सिर पर छलांग लगाकर आगे बढ़ जाता है।
सिंहत्व चेतना प्राप्ति दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का मार्ग खुल जाता है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते हैं। जीवन में सर्वांगीण विकास और श्रेष्ठतम उन्नति हेतु साधक और शिष्य को सिद्धाश्रम प्रणीत सिंहत्व चेतना लक्ष्य भेदन दीक्षा पूर्ण रूपेण रोम-रोम में स्थापित कर मानसिक, आत्मिक, शारीरिक रूप से बलिष्ठ हो सकेंगे। साथ ही साथ जीवन के सभी मनोरथों की पूर्णता स्वरूप नूतन वर्ष सुमंगलमय बन सकेगा।
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