यही भगवान शिव का भी प्रतीकार्थ है। कंठ में विष और मस्तक पर चन्द्रमा धारण करने वाले देवाधिदेव का तात्पर्य यही है, कि इसी जगत की विसंगतियों के मध्य रह कर भी निरन्तर आनन्द की अनुभूति की जा सकती है, जिसे प्राप्त करने के लिये योगीजन घर-परिवार, संसार त्याग कर वन का आश्रय लेना अधिक उचित समझते हैं।
शिव ज्ञान, योग, वैराग्य, भक्ति के भण्डार ही नहीं, अपितु आगम, तन्त्र, मन्त्र, यन्त्र, नृत्य, वाद्य, संगीत, व्याकरण आदि समस्त कलाओं और विद्याओं के आचार्य भी हैं, उनका वास्तविक स्वरूप अत्यन्त सौम्य एवं शान्तिदायक कर्पूरगौरं करूणावतारम् है।
जिस प्रकार समस्त नदियां अपने-अपने मार्ग पर प्रवाह करती हुई, समुद्र में विलीन हो जाती है। उसी प्रकार सारे मनुष्य अपनी जीवन यात्रा क्रम पूर्ण कर भगवान शिव में विलीन हो जाते हैं। भगवान शिव-शक्ति के साथ मिलकर सृष्टि की रचना करते हैं। उसकी निरन्तरता कायम रखते हैं। भगवान शिव रस के आराध्य देव हैं। जिसने शिव को समझ लिया और शिव भाव को ग्रहण कर लिया, वह अपने संकल्पों को तीव्र करता हुआ ऊर्ध्वगामी यात्र करता है और उसे प्राप्त होता है, गौरी शक्ति, विघ्नहर्त्ता गणपति, पराक्रमी कार्त्तिकेय, ट्टद्धि- सिद्धि, शुभ-लाभ यही तो रहस्य है शिव परिवार का।
जीवन के अनेक विसंगतियों के विष को समाप्त करने की साधनात्मक क्रिया 19-20-21 फ़रवरी को महाकाल शिव-गौरी साधना महोत्सव उज्जैन म- प्र- में सम्पन्न होगी। भगवान शिव के औघढ़दानी वरदायक स्वरूप को पूर्णता से आत्मसात कर साधक अपने जीवन को शिव-गौरी परिवारमय निर्मित करने की चेतना से आपूरित हो सकेंगे। जिससे उनका जीवन सभी भौतिक सुखों से युक्त होकर धन-धान्य, सुख-समृद्धि, अखण्ड सौभाग्य, पूर्ण आयु, आज्ञाकारी संतान, पति-पत्नी में आत्मीयता, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व शिव आनन्दमय चेतना से परिपूर्ण हो सकेगा। आपके आने से निश्चित ही यह महाशिवरात्रि महापर्व आपका जीवन में अनेक सुस्थितियां निर्मित कर सकेगा।
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