यह आत्मीय रिश्ता सदैव सद्गुरुदेव द्वारा जाग्रत ज्ञान-चेतना का दीपक से जाज्वलयमान रहे, इसी का प्रयत्न निरन्तर किया जा रहा है कि किस प्रकार आपको नवीन, विशिष्ट साधनात्मक दिव्य ऊर्जा रूपी चेतना से अभिभूत रहें, जिससे आप में वह प्रज्ञता, ओज, तप शक्ति क्रियाशील रहे, जिसे हम सद्गुरुदेव में देखते हैं।
हम सभी को अपना जीवन सुखी एवं समृद्ध बनाने की कामना होती है, कोई भी दुःखी, रोगी, दीन नही रहना चाहता, कष्ट किसी को भी प्रिय नही होता, कोई भी अस्वस्थ नही रहना चाहता। जिस प्रकार हम समय-समय पर घर-गाड़ी कि मरम्मत करवाते हैं ताकि आंधी-तुफान, तपिश-बारिश आने पर हम हर स्थिति में सुरक्षित रहे, साथ ही जीवन यात्रा भी निर्विघ्न सम्पन्न हो।
हम अपने शरीर-स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं, व्यायाम-योग प्राणायाम करते हैं, पौष्टिक आहार खाते हैं, ताकि हम बीमार न पड़े। लेकिन क्या हम अपने आत्मा मन की शुद्धिकरण या हमारे कर्मो की मरम्मत हेतु कोई प्रयास करते हैं ? और इसी के फल स्वरूप हम निरन्तर जाने-अनजाने कुकर्म करते हैं व उसका फल भोगते हैं। यह निरन्तर चलता रहता है, इन कर्म के फल स्वरूप मिलने वाले कष्टों के निवारण के लिए विभिन्न प्रयोजन करते हैं, इसमें सफलता मिलती है परन्तु उसके लिए हमें काफी प्रयास व समय, ऊर्जा देनी होती है, परेशान व्यक्ति दसों जगह मूर्ख की तरह भागता है।
तो जिस प्रकार हम समस्या या संकट आने से पूर्व ही घर एवं शरीर का ध्यान रख सकते हैं तो क्यों न हम एक साधक की तरह साधना की तप शक्ति से आत्मा एवं मन को सशक्त एवं योग्य बनाए ताकि कष्ट आने पर हम कमजोर न पड़े, उसका समाधान निकाले व उसमें विजयश्री प्राप्त कर सकें। क्योंकि ऐसा तो नही है कि हमारे जीवन में समस्या आयेगी ही नहीं, समस्या तो आएगी ही पर हम कितने सशक्त हैं, कितने तैयार हैं, हममें कितनी साधना की तप शक्ति है और यह एक दिन में संचित नही होगी, इसे कुबेर के घड़े कि भांति नित्य मन्त्र जप-साधना-ध्यान से भरना होगा, इसका रोज मनन करना होगा कि पिछले 24 घंटों में क्या-क्या जीवन संचित किया। प्रातः काल में उठकर एक माला गुरु मंत्र की करनी होगी और इसमें कोई ज्यादा समय भी नही लगता, आपको सप्ताह में एक बार साधना सम्पन्न करनी होगी। अगर आप स्वयं के उत्थान के लिए इतना समय भी नही निकाल सकते तो आपका जीवन निरर्थक है। जीवन में वो ओज-ऊर्जा आ सकती है, जीवन सार्थक बन सकता है अन्य किसी व्यक्ति के जीवन में वह सुख है, तो आपके जीवन में भी हो सकते है क्योंकि सभी की रचना ईश्वर ने एक ही स्वरूप में की है, उसे पाने के लिये आपको नियमबद्ध रूप से मंत्र जप-साधना-ध्यान करना ही होगा।
पत्रिका के माध्यम से गुरुदेव के ज्ञान से, साधना से आप सब सीख सकते हैं, अपने जीवन में नवीनता प्राप्त कर सकते हैं, पत्रिका के हर अंक में विभिन्न तरह के लेख प्रकाशित होते हैं, आप इसे पढ़ेंगे तभी आप इसके ज्ञान को आत्म सात कर सकेंगे। इस ज्ञान से आपका जीवन सुख-समृद्धि की ओर बढ़ सकता है, ज्ञानी व्यक्ति तो प्रत्येक समस्या समाधान निकाल ही लेता है। अज्ञानी केवल विचार ही करता रहता है और उसी फलस्वरूप समस्याओं का अम्बार लगता रहता है।
आप भी इस नव वर्ष पर संकल्प के साथ गुरुदेव के उस ज्ञान चेतना को आत्मसात करें। वर्ष के प्रथम दिन अगर आप स्वयं की ज्ञान-चेतना ऊर्जा के लिए कुछ समय तो देना ही होगा—-इस नव वर्ष आप नूतन वर्ष सर्व सफलता प्राप्ति दीक्षा प्राप्त करें।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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