मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण तथा उसकी विभिन्न मनः स्थितियों का आकलन काम के विवेकशील धरातल पर ही होता है। काम का तात्पर्य कामना है, जिसके द्वारा व्यक्ति के पारिवारिक, सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन का विकास होता है। इसके साथ यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि काम का धार्मिक आधार व्यक्ति को उसकी इन्द्रियों की तृष्टि, अदम्य एवं कुभावनाओं से विरत करता है, जिससे व्यक्ति आत्मिक उत्थान की ओर अग्रसर होकर धार्मिक बनता है, मनुष्य का प्रेम, स्नेह, अनुराग एवं आकर्षण उच्चतर अवस्था में ईश्वर के प्रति आकृष्ट होता है, जो पूर्णता का मार्ग है। वह निरन्तर अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर के प्रति अनुरक्त होता जाता है और अत्यधिक भोगों के प्रति उसमें विरक्ति आती है। जो जीवन के मूल उद्देश्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
काम के अधिष्ठात्र देव अनंग है और स्त्री शक्ति की अधिष्ठात्री देवी रति है। काम और रति का संयोग शिव और शक्ति का मिलन है। संसार में केवल काम ही प्रधान ना हो जाये और मनुष्य पशु नहीं बनें, मनुष्य केवल विपरीत लिंग के आकर्षण में ही बंधा रहकर जीवन के अन्य कर्तव्यों को नहीं भूल जाये, इसलिये मृत्युजंय देव महादेव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म तो कर दिया लेकिन शिव और पार्वती ने अनंग अर्थात् कामदेव तथा स्त्री शक्ति प्रतीक रति को यह वरदान भी दिया कि संसार में तुम्हारी निरन्तर उपस्थिति रहेगी और इस जगत में आकर्षण, सम्मोहन, स्पर्श, दृश्य, भाव-अभिव्यक्ति द्वारा संसार में तुम सदैव विद्यमान रहोगे और जो व्यक्ति विशेष विधान द्वारा करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी और उसका गृहस्थ जीवन आनन्दमय, रसमय होगा।
कामदेव का सप्त स्वरूप भोग, दृष्टि, माया, इच्छा, भावना, कामना व विचार है। इन सप्त भावों के कारण से ही संसार चल रहा है। काम का तात्पर्य केवल स्त्री-पुरुष मिलन अर्थात् संभोग ही नहीं है अपितु इन्हीं सात स्वरूपों में काम की पूर्ण व्याख्या की जाती है।
अनंग-रति की चेतना बालक से लेकर वृद्ध तक सभी के लिए आवश्यक है। जीवन में आकर्षण, सम्मोहन, ऊर्जा, शक्ति, ज्ञान, सौन्दर्य, पराक्रम, बल, बुद्धि और श्रेष्ठ सफलता इसी दिव्य चेतना शक्ति के माध्यम से प्राप्त होती है। काम ही कामनाओं की पूर्ति का आधार है, जो जीवन को सौन्दर्य, आनन्द, उल्लास, उत्साह, रस, ऊर्जा से भर देता है। वंसतोमय चेतना युक्त दिवसों में इस दिव्य चेतना से युक्त होकर साधक-साधिकायें अपने जीवन की सभी सुकामनाओं की पूर्ति करने में समर्थ हो सकेंगे साथ ही उनका सांसारिक गृहस्थ जीवन प्रेम, रस, आनन्द, आकर्षण युक्त बन सकेगा।
तीन पत्रिका सदस्य बनाने पर यह दीक्षा उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी
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