ऐसे अभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न होकर सुख-शांति प्रदान करते हैं।
अच्छे स्वस्थ के लिये कच्चे दूध के साथ गिलोए की आहुति मंत्रोच्चार के साथ दी जाती है। इसके बाद दूब, बरगद के पत्ते अथवा जटा, जपापुष्प, कनेर के पुष्प, बिल्व पत्र ढ़ाक की समिधा, काली अपराजिता के पुष्प इन के साथ भी घी मिलाकर दशांश हवन करें।
मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिये द्रोण और कनेर पुष्पों का हवन करें।
क्रूर ग्रहों की शांति के लिये मृत्युजंय मंत्र का जप करते हुये घी, दुग्ध और शहद में दूर्वा मिलाकर हवन करना अति उत्तम होता है।
राज्य के उपभोग, राज्य प्राप्ति व सर्वकामनाओं की सिद्धि के लिये इस मंत्र का जप काफी प्रभावकारी माना गया है।
शिवरात्रि पर इस मंत्र का घी, खीर व सुगंधित पुष्पों के साथ 11 हजार जप करने से राज्य प्राप्ति की संभवना बढ़ जाती है। आजकल बढ़ती बेरोजगारी और सरकारी नौकरी के इच्छुक व्यक्ति व प्रशासन में अपने बड़े पद की प्राप्ति के लिये इस मंत्र का हवन काफी लाभकारी माना गया है। इतना ही नहीं शिवरात्रि पर इस मंत्र की होमी हुई भस्म को लाल कपड़े में बांधकर रखने से घर में शांति का वातावरण बनता है। घर में समृद्धता आती है। परिवार में प्रेम बढ़ता है। कभी धनाभाव नहीं रहता। साथ ही शिशुओं व गर्भवती स्त्रियों को कई रोगों से राहत मिलती है।
इस मंत्र का रविवार या सोमवार बीस हजार जाप के बाद उसका दशांश हवन करने से डिप्रेशन, हृदय रोग, पीलिया, क्षय रोग, हाई ब्लड प्रेशर आदि रोगों से निवृत्ति मिलती है। हवन के समय रोगी का बैठकर भगवान शिव का ध्यान करना अति आवश्यक है।
इस मंत्र का जप विशेष कर गुरुवार को करना चाहिये। इसकी 11 हजार मंत्रों के जाप के साथ हवन करना चाहिये। इन सभी मंत्रों के जाप के लिये महाशिवरात्रि व श्रावण मास सर्वोत्तम माना गया है। जप व मंत्र शक्ति का प्रयोग पूर्ण श्रद्धा के साथ, ब्रह्मचर्य का पालन करते हुये और एकाग्रचित्त होकर करना चाहिये।
इस मंत्र का जप रामबाण औषधि है। तेज बुखार व टाइफाइड से राहत पाने के लिये इस मंत्र की आहुति ओंगा की संविदाओं द्वारा पकाई गई दूध की खीर से देनी चाहिये। अकाल मृत्यु निवारण के लिये इस मंत्र से हवन में दही का प्रयोग करना चाहिये। इसका जाप आप किसी भी सोमवार को कर सकते हैं।
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