जो भगवान शंकर पूर्वोत्तर दिशा में चिताभूमि वैद्यनाथ धाम के अन्दर सदा ही पार्वती सहित विराजमान हैं और देवता व दानव जिनके चरणकमलों की आराधना करते हैं, उन्हीं श्री वैद्यनाथ नाम से विख्यात शिव को हम प्रणाम करते हैं।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक महासिद्ध ज्योतिर्लिंग है जो रामायण के समय से है। यह झारखण्ड के देवघर नामक स्थान पर स्थित है। इसकी महत्ता के कारण यह स्थल वैद्यनाथ धाम, बैजनाथ बाबा और देवघर धाम नाम से भी जाना जाता है। अनेक छोटे मंदिरों से घिरे एक भव्य मंदिर के मध्य भगवान शंकर का लिंग स्वरूप केवल ग्यारह अंगुल ऊंचा है लिंग स्वरूप का शिरोभाग तनिक दबा हुआ सा जैसे किसी ने अंगूठे से दबा दिया हो। श्री वैद्यनाथेश्वर ज्योतिर्लिंग एक सिद्ध पीठ है, जहां भगवान शिव अपने भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करते हैं। यहां के दिव्य शिवलिंग को कामना पूर्ति लिंग भी कहा जाता है। इस ज्योतिर्लिंग की कथा भी बहुत रोचक है।
लंकाधिपति रावण ने इच्छित वर प्राप्ति के लिए हिमालय पर्वत पर भगवान शंकर की आराधना प्रारम्भ की। धीरे-धीरे उसकी तपस्या की उग्रता बढ़ती गई। गर्मी में पंचाग्नि तप, वर्षा में खुले स्थान पर और जाडे़ में बर्फीले पानी में खड़े होकर वह तपस्या करता रहा, किन्तु उसे शिव ने दर्शन नहीं दिए। तब रावण ने एक गड्ढे में यज्ञकुण्ड स्थापित करके विधिवत पूजा-अर्चना की। इसके बाद मंत्र पाठ करते हुए अपना एक-एक सर काटकर उसने शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू कर दिया। एक-एक कर उसने अपने नौ सिर काट कर चढ़ा दिए। जब वह दसवाँ सिर काट कर चढ़ाने को उद्यत हुआ, तभी प्रसन्न हो भगवान शंकर उसके समक्ष प्रकट हो गए। उनकी कृपा से रावण के दसों सिर पूर्ववत हो गए और भगवान ने रावण को अतुलित बलशाली होने का वरदान दिया। रावण ने करबद्ध प्रार्थना की कि इस पार्थिव लिंग के रूप में शिव सदैव लंका में निवास करें। शिव जी ने यह स्वीकृति भी दे दी किन्तु यह भी कहा कि यदि तुमने इस शिवलिंग को धरती पर कहीं भी उतारा तो यह वहीं पर स्थापित हो जायेगा।
सभी देवी-देवता इस वरदान से बडे़ चिंतित थे, वे अच्छी तरह जानते थे कि यदि शिव जी के रूप में शिवलिंग लंका में स्थापित हो जायेगा तो रावण और लंका दोनों अजेय हो जाएगी तब सभी ने ठान लिया कि कुछ भी हो यह शिवलिंग लंका तक नहीं जाना चाहिए।
महादेव की चेतावनी के बावजूद भी रावण बहुत आदरपूर्वक हाथों मे लिंग स्वरूप को लेकर लंका की ओर चल पड़ा। उधर सभी देवतागण इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने अपनी लीला रची और उन्होंने वरूण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा। जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर लंका की ओर चला तो उसे देवघर के समीप तीव्रता से लघुशंका अनुभव हुई।
उसने अपने आस-पास देखा कि कहीं कोई मिल जाए जिसे वह शिवलिंग थमाकर लघुशंका कर सके, कुछ दूरी पर ही उसे एक ग्वाला नजर आया। कहते हैं उस ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु वहां आए थे। रावण ने उस ग्वाले से कहा कि वह शिवलिंग को पकड़ कर रखें, साथ ही साथ यह भी कहा कि भूल से भी वह शिवलिंग को भूमि पर न रखें। रावण के शीघ्र न लौट आने पर ग्वाले के रूप में मौजूद भगवान विष्णु ने रावण से कहा कि अब बहुत देर हो चुकी है। अब मैं और शिवलिंग उठाये खड़ा नहीं रह सकता इतना कहकर उसने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया। वह स्थान चिताभूमि व श्मशान भूमि था। रावण ने वापस आकर उस शिवलिंग को उठाना चाहा, किन्तु वह न उठा, मानो वह अचल हो चुका था।
वह सारा माजरा समझ गया। पूरी ताकत लगाने के बाद भी वह शिवलिंग को हिला न पाया। शिवलिंग को उठाने के प्रयत्न में रावण के हाथ के अंगुठे से शिवलिंग का ऊपरी भाग तनिक दब भी गया। हताश होकर वह वहां से चला गया। सभी देवताओं और ब्रह्मा जी ने वहां आकर उस लिंग की पूजा-अर्चना की और भगवान शिव ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर उसे ज्योतिर्लिंग रूप में प्रतिष्ठित किया।
इस दिव्य शिवलिंग की बहुत मान्यता है। यहां दूर-दूर से तीर्थ स्थलों का विशेषतः गंगा का जल लाकर शिवलिंग पर चढानें की अत्यन्त प्राचीन परंपरा है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिग में भगवन शिव और शक्ति एक साथ विराजमान है। पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रहार से मां शक्ति के हृदय का भाग यही पर कट कर गिरा था। बैद्यनाथ दरबार माता शक्ति के 51 शक्ति पीठों में से एक हैं।
बैद्यनाथ धाम के बारे में कहा जाता है कि यहां मांगी गई मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है। भगवान श्री राम और भगवान हनुमान ने श्रावण के महीने में यहां कावड़ यात्रा की थी। शिव पुराण और पद्म पुराण के पाताल खण्ड में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा पाई गई है।
मंदिर के निकट एक विशाल तालाब स्थित है। बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मंदिर सबसे पुराना है, जिसके आसपास और भी अनेकों मंदिर बने हुए हैं। मां पार्वती और शिव जी का मंदिर आपस में जुड़ा हुआ है। हर वर्ष श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु सुल्तानगंज से जल भरकर कावर के जरिए बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।
निधि श्रीमाली
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